आजकल मोबाइल से काल करने पर उपभोक्ताओं को बताया जाता है कि वे अनजान काल, लिंक या ओटीपी यानी एक बार उपयोग में आने वाले पासवर्ड साझा करने से बचें। यह साइबर ठगी हो सकती है। दूरसंचार कंपनियों की ओर से काल से पहले इस साइबर फर्जीवाड़ा जागरूकता संदेश के पीछे मुख्य कारण हैं तेजी से बढ़ते साइबर ठगी के मामले। इन संदेशों के बावजूद देश में साइबर अपराध के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में डिजिटल जागरूकता केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि आज की अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है।

देश में आज इंटरनेट और तकनीक हमारे जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं। बैंकों में लेनदेन और अन्य गतिविधियों से लेकर खरीदारी, शिक्षा, चिकित्सा और शासन-प्रशासन से लेकर व्यक्तिगत संवाद तक, सब कुछ अब आनलाइन मंचों पर निर्भर हो गया है। डिजिटल युग ने आम आदमी की जिंदगी को कहीं ज्यादा सुगम और आसान बना दिया है, लेकिन जिस प्रकार सुविधाएं बढ़ी हैं, उसी गति से साइबर अपराधों का भी विस्तार हुआ है।

साइबर अपराध वे गतिविधियां हैं जो कंप्यूटर, इंटरनेट या अन्य डिजिटल माध्यमों के जरिए की जाती हैं। ये अपराध कई रूपों में हो सकते हैं, जैसे नकली ईमेल या वेबसाइट के जरिए व्यक्तिगत जानकारी चुराना, किसी के कंप्यूटर या मोबाइल को हैक कर डेटा चुराना, सिस्टम को लाक कर फिरौती मांगना, आनलाइन ठगी, जैसे फर्जी क्यूआर कोड, नकली नौकरी, लाटरी, ‘अपने ग्राहक को जानें’ यानी केवाईसी प्रक्रिया को अद्यतन कराने के नाम पर ठगी करना, किसी की पहचान चुराना, चरित्र हनन, अश्लील सामग्री फैलाना आदि।

साइबर अपराधों की संख्या प्रतिवर्ष तेजी से बढ़ रही

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के अनुसार, भारत में साइबर अपराधों की संख्या प्रतिवर्ष तेजी से बढ़ रही है। विशेष रूप से छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता की कमी के चलते लोग अधिक ठगी का शिकार हो रहे हैं। एक रपट के अनुसार 2023-24 में इस श्रेणी में 29,082 मामले सामने आए, जिनमें 177 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। वर्ष 2020-24 के बीच बैंकिंग लेनदेन में साइबर ठगी की संख्या 5.82 लाख रही, जिसमें 3,207 करोड़ रुपए की राशि का नुकसान हुआ।

दरअसल, डिजिटल सुविधाओं के अनेक लाभ हैं तो कुछ नुकसान भी हैं। जिन लोगों को डिजिटल बारीकियों की कम जानकारी होती है, उन्हें साइबर अपराधी आसानी से निशाना बना लेते हैं। आए दिन खबरें छपती हैं कि सेवानिवृत्त अधिकारी को ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर लाखों रुपए ठगे, या शेयर बाजार में निवेश के नाम पर धोखा किया गया। साइबर ठगी के सबसे ज्यादा शिकार वरिष्ठ नागरिक बनते हैं। ये लोग तकनीकी जानकारी की कमी और भरोसे के कारण सबसे आसान शिकार बनते हैं। इसके अलावा, छात्र और युवा मुफ्त गेम, छात्रवृत्ति या पार्ट-टाइम नौकरी के नाम पर फंसाए जाते हैं। छोटे व्यापारी आनलाइन भुगतान और आपूर्ति में फर्जीवाड़े से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

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देखने में आया है कि अत्यधिक चालाक और तकनीकी रूप से दक्ष आज के साइबर अपराधी मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाकर लोगों को धोखे में डालते हैं। जैसे खुद को बैंक कर्मचारी या पुलिस अधिकारी बताकर ओटीपी मांगना, नकली मोबाइल एप या वेबसाइट के जरिए जानकारी हासिल करना, सोशल मीडिया पर दोस्त बनाकर जानकारी एकत्रित करना या फर्जी लिंक भेजकर मोबाइल या कंप्यूटर जैसे यंत्रों में वायरस डालना।

सवाल यह है कि इस डिजिटल युग में कैसे हम साइबर ठगी से स्वयं को सुरक्षित रखें। साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ा हथियार ‘जागरूकता’ है। जिस तरह हम घर की सुरक्षा के लिए ताले और सीसीटीवी लगाते हैं, उसी तरह डिजिटल दुनिया में हमें अपने डेटा की सुरक्षा के लिए सजग रहना होगा। डिजिटल जागरूकता का अर्थ है, इंटरनेट का सुरक्षित और विवेकपूर्ण उपयोग करना, संदिग्ध लिंक, ईमेल या फोन काल पर भरोसा न करना, पासवर्ड को मजबूत बनाना और नियमित रूप से बदलना, व्यक्तिगत जानकारी किसी से साझा न करना और साइबर अपराध की स्थिति में तत्काल शिकायत दर्ज कराना।

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साइबर अपराध पर अंकुश लगाने के लिए भारत सरकार ने कई कदम उठाए हैं,। इसमें साइबर अपराध हेल्पलाइन ‘1930’ जारी किए गए हैं, जिसमें ठगी की स्थिति में तुरंत शिकायत दर्ज करने की सुविधा है। आनलाइन शिकायत दर्ज करने के लिए राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल बनाया गया है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2020 में प्रस्तावित साइबर सुरक्षा नीति के तहत साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए कानूनी और तकनीकी उपाय किए गए हैं और युवाओं को साइबर सुरक्षा के प्रति सजग करने के लिए स्कूलों और कालेजों में प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। हालांकि डिजिटल ठगी रोकने के लिए सरकार अनेक कदम उठा रही है, लेकिन ये कदम तब तक कारगर नहीं होंगे, जब तक हम व्यक्तिगत स्तर पर जागरूक नहीं होंगे। ऐसे अपराध का शिकार हो जाने पर सबसे पहले साइबर सेल में शिकायत दर्ज करवानी चाहिए। अपनी बैंक शाखा को तुरंत सूचित करते हुए प्राथमिकी दर्ज कराना चाहिए। सभी डिजिटल सबूत (काल रिकार्डिंग, स्क्रीनशाट, ईमेल, चैट आदि) सहेजकर रखना चाहिए।

डिजिटल धोखाधड़ी से निपटने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को डिजिटल साक्षरता की राह अपनानी होगी। समय की पुकार है कि हम ‘डिजिटल इंडिया’ को ‘सुरक्षित डिजिटल इंडिया’ में परिवर्तित करें, ताकि हमें तकनीक के फायदे मिलें, धोखा या शोषण नहीं। (लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं।)