अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष हर दौर में रहा होगा। हालांकि जितने भी लोग इस विषय पर विचार करते हैं, वे सभी यही सोचते हैं और अपना निष्कर्ष देते हैं कि बुराई की जगह समाज में नहीं होनी चाहिए। यह सही भी है। पर आखिर क्या कारण है कि हम सबके अच्छाई के अभिलाषी होने के बावजूद बुराई से समाज को मुक्ति नहीं मिल पाती! बुराई का प्रतीक मानकर इस वर्ष भी दशहरे के मौके पर रावण के पुतले का दहन किया गया। शायद ही कोई दिन ऐसा हो, जब लोग अपनी बातचीत में बुराई को खत्म करने का सवाल न उठाते हों। इससे यह तो पता चलता ही है कि लोगों को बुराई स्वीकार नहीं है और वे उसे खत्म करने के बारे में कम से कम सोचते हैं। मगर सवाल है कि आखिर क्यों हमारे आसपास बुराई का जाल लगातार फैल रहा है।

आजकल यह जाल इतना अधिक सघन हो गया लगता है कि कोई भी इससे बच नहीं पा रहा। कहीं अव्यवस्था के नाम पर, कहीं अपराध के नाम पर तो कहीं किसी आस्था के नाम पर। यह सुनने में नहीं आता कि बुराई की तोड़ के लिए अच्छाई का दायरा बढ़ रहा है। सवाल है कि अगर हमारी शिकायत है कि बुराई बढ़ रही है तो आखिर यह क्यों बढ़ रही है। क्या यह हमारे अनदेखे-अनजाने ही हो रहा है? क्या इसका असर हमारे ऊपर किसी न किसी रूप में पड़ता है? अगर हां, तब भी हम बुराई की अनदेखी करने के लिए तैयार कैसे हो जाते हैं? यह अनदेखी और लापरवाही हमें किस रास्ते पर लेकर जाता है? बुराई के रूप में गहरे अंधेरे को दूर करने की बातें तो अक्सर होती रहती हैं। मगर हकीकत हम सबके आसपास दिख जाता है।

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अच्छाई अपेक्षाकृत सीमित संसाधनों में कैद है, लेकिन बुराई में विस्तार है। हम सबने देखा होगा कि जब बुराई की अति होती है, तब तक स्थिति भयावह हो जाती है। किसी को कुछ भी नहीं सूझता, सभी हार जाते हैं, सभी के चेहरे निस्तेज हो जाते हैं। तब कहीं किसी कोने से अंधेरे को चीरते हुए एक रोशनी आती है और वह बुराई को काफी दूर तक खदेड़ देती है। मगर क्या इससे बुराई समाप्त हो जाती है? हालांकि जहां सघन अंधेरा है, वहां के लोग प्रकाश क्या होता है, यह प्रकाश के आने के बाद ही जान पाते हैं। जब तक प्रकाश का प्रवेश नहीं होता, तब तक अंधेरा तबाही मचाता रहता है। यह जानते हुए भी कि उजाले के आगे वह टिक नहीं पाएगा। लेकिन आखिर अंधेरे को उत्पात मचाने का इतना समय कैसे मिल जाता है?

सुख दुख के विपरित जाता है

जीवन में सुख-दुख, मान-अपमान, धूप-छांव, अंधेरा-उजाला, अच्छाई-बुराई, छोटा-बड़ा आदि समांतर हैं। दोनों का अपना अलग अस्तित्व है। मसलन, जीवन में सुख-दुख साथ-साथ आते हैं। पर हमें लगता है कि दुख ने हमारे घर में अधिक समय तक बसेरा किया। सुख मेहमान की तरह आया और चला गया। पर सच यह है कि दुख का समय बहुत लंबा नहीं होता, बल्कि हमें उसे सहन करने की आदत नहीं होती। धीरे-धीरे हम उसके आदी हो जाते हैं। फिर कुछ समय बाद हमारे जीवन में सुख का प्रवेश होने लगता है और हमारा चंचल मन फिर सुख की गोद में खेलने लगता है।

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सुख के साथ रहने के कारण इसका कालखंड छोटा लगता है, क्योंकि जब यह जाने को तैयार होता है, तो सहसा ही चला जाता है। यह दुख की तरह धीरे-धीरे नहीं जाता। इसका एकदम से जाना हमें डिगा देता है। हम संभल भी नहीं पाते और यह चला जाता है। हमारे सामने दुख फिर एक अपरिचित की तरह खड़ा होता है। न चाहते हुए भी हमें उसके साथ रहने को विवश होना पड़ता है।

अच्छाई-बुराई जीवन के दो पहलू

ऐसा केवल दुख-सुख के साथ ही नहीं होता, अंधेरे-उजाले और मान-अपमान के बीच भी होता है। अच्छाई-बुराई भी जीवन के दो पहलू हैं। जीवन में दोनों ही आते-जाते रहते हैं। बस हमें इस बात का खयाल रखना होता है कि दोनों को समान भाव से लें। पर ऐसा कर पाना मुश्किल होता है। हमें दुख घनघोर लगता है और सुख कपूर की तरह पल में उड़ जाने वाला। जो लोग इसे समभाव से स्वीकार करते हैं, वे दुखी नहीं होते। इसलिए यह मानकर चलना चाहिए कि बुराई है, इसलिए लोग अच्छाई का सम्मान करते हैं। अच्छे और बुरे व्यक्ति में भी यही होता है। अच्छा हमारे साथ रहना नहीं चाहता और बुरा हमसे अलग नहीं होना चाहता। बुरा व्यक्ति जब अपनी सारी सीमाएं पार कर लेता है, तभी अच्छे का प्रवेश होता है। अंधेरा वहीं है, जहां प्रकाश नहीं है। प्रकाश नहीं जानता कि अंधेरा किसे कहते हैं, पर अंधेरे को पता होता है कि प्रकाश क्या कर सकता है। उसके आने मात्र से ही अंधेरे को भागना होता है। दोनों के बीच एक अघोषित युद्ध चलता ही रहता है।

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जिसने भीषण गर्मी का ताप झेला है, वही समझ सकता है कि वर्षा की बूंदों का क्या महत्त्व है। दुख के घने जंगल से गुजरने के बाद जब हम उजाले की पहली किरण को देखते हैं, तब हमें यह अहसास होता है कि अंधेरे ने हमें उजाले के लिए कितना तरसाया। जिसके पास सुख होगा, आमतौर पर उसने दुखों का साथ भी झेला होगा, तभी वह सुख का मोल समझ सकेगा। जहां लोग दुख से टूटने के बजाय उसकी अहमियत समझते हैं, वहां सुख भी उन्हें बेलगाम और विचलित नहीं करता। ऐसे लोग ही जीवन में सफल होते हैं।