मानव का मन हमेशा से ही अपनी सुरक्षा के लिए सचेत रहा है। सभ्यताओं के शुरूआती दौर से लेकर आज तक हमने इस मामले को कभी हल्के में नहीं लिया है। जब हम बहुत सारी चीजों से अनभिज्ञ थे, तब भी हम पत्थर से बने हथियारों को प्रयोग में लाते थे। वहीं आज विश्व में परमाणु हथियारों और युद्ध का दौर है। जिसे देखा जाए, वही अपने आपको सुरक्षित रखना चाहता है। यह समझने की जरूरत है कि यह सुरक्षा किससे और क्यों सुनिश्चित करने की कोशिश की जाती है।
यह सुरक्षा किसी जानवर या अन्य शक्ति से नहीं है, बल्कि इंसान किसी अन्य इंसान से तय करना चाहता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे आर्थिक, राजनीतिक या अन्य कोई भी कारण। गांधी से लेकर नेल्सन मंडेला तक बहुत से अहिंसा के पुजारी और अन्य ऐसे महानतम लोग हमारा पथ प्रदर्शन करते आए हैं कि चाहे जो भी हो जाए, हमें अहिंसा का पालन करना है। ऐसे महान लोगों का मानना था कि अपना विरोध भी अहिंसक नीतियों के तहत ही दर्ज कराना चाहिए। मगर क्या आज के इस विश्व और विध्वंसकारी युग में ऐसा संभव है? हम सभी का उत्तर संभवत: न में ही सामने आएगा।
व्यक्तिगत सुरक्षा हमारी खुद की जिम्मेदारी
राष्ट्रीय स्तर पर तो हमारी सुरक्षा के लिए हमारी सरकार कार्य कर रही है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर इस तरफ हमारा खास ध्यान नहीं है। आतंकवादी हमलों में देश के नागरिक मारे जाते हैं। अगर आत्मरक्षा के कुछ तरीकों को अपनाया जाए तो आत्मबल से हम अपने आपको इन हमलों से बचा सकते हैं। नहीं तो कम से कम सामना तो कर ही सकते हैं। आतंकवादी सिर्फ बाहर ही नहीं है, हमारे आसपास भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो स्त्रियों और बच्चों को अपने आतंक का शिकार बनाते हैं। यह याद रखने की जरूरत है कि हमला सिर्फ कमजोर व्यक्ति पर ही नहीं होता है, बल्कि हमारे आत्मबल की ताकत पर भी होता है। ज्यादातर घरों में आतंक का साया धीरे-धीरे फैलता जा रहा है। बाहरी खतरे से लेकर भीतरी और रहस्यमय अपराधों का जाल काम कर रहा लगता है। इन्हें काटना जरूरी है। सब कुछ दबा-कुचला है। बाहर की ओर सिर्फ सफेद प्लास्टर लगा है, जिसे बाहर निकालकर सफाई करना बेहद जरूरी है।
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अरस्तू ने कहा था कि एथेंस को स्पार्टा की तरह सैनिक शिक्षा को अपनाना चाहिए। हम यहां सैनिक शिक्षा समर्थित राष्ट्रों का गुणगान नहीं करना चाहते, क्योंकि हमारे लोकतांत्रिक राष्ट्र में ऐसा संभव नहीं है और न ही मानवीय दुनिया के लिए यह कोई अच्छा विकल्प है। मगर शिक्षा में आत्मरक्षा का प्रशिक्षण अगर दिया जाए तो व्यक्ति काफी हद तक आने वाली दुर्घटनाओं का शिकार होने से बच सकता है। आत्मरक्षा के लिए कई तरीके हैं, जिन्हें सीखकर व्यक्ति कुछ सीमा तक अपने आपको बचा सकता है। मार्शल आर्ट यानी जूडो-कराटे और इस विधा के साथ अन्य खेल, मुक्केबाजी और कुश्ती आदि। अगर हमारी व्यवस्था हमें यह उपलब्ध नहीं करवा पा रही है तो हम व्यक्तिगत स्तर पर भी अपने बच्चों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण अवश्य दिलवाने चाहिए।
सुरक्षा जीवन का सबसे जरूरी आयाम
जिस तरह से किसी भी व्यक्ति के लिए तैरना सीखना आवश्यक है, उसी प्रकार सुरक्षा भी जरूरी आयाम है, जिसे अपना कर हम अपने जीवन और अस्तित्व को बनाए रख सकते हैं। कितना सुखद क्षण होगा वह, जब अपने देश में कोई भी बेटी घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होगी, क्योंकि वह अपनी रक्षा करना खुद जानती होगी। वह क्षण कितना साहसिक होगा जब कोई हमारे ऊपर गोली चलाने की कोशिश करेगा और हम उसकी बंदूक का रुख उसी की तरफ मोड़ देंगे। इन सब चीजों के लिए हिम्मत के साथ दिमाग का दुरुस्त होना भी जरूरी है। अन्यथा सब बेकार हो जाता है।
आत्मरक्षा के तरीके सीखना आज हमारे लिए एक बेहद आवश्यक पहलू है। हमें अपनी रक्षा के लिए स्वयं ही प्रयास करने होंगे, जैसे कि जंगलों और अन्य असुरक्षित जगहों पर जीवन गुजारने वाले हमारे पूर्वजों ने किए थे। जिस तरह वे लोग जंगली जानवरों और इंसानों के बीच आपसी शत्रुता से पार पा सके और हमारे इस युग का आविर्भाव हुआ, उसी तरह की हिम्मत और ताकत हमें बटोरनी होगी। हमें हिंसक नहीं बनना चाहिए, बल्कि अपने आपको घरेलू और बाहरी आतंक से बचाने की जरूरत है।
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यह तभी संभव है जब सरकार, अभिभावक और अध्यापक बच्चों की इस तरह की शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान दें। निश्चित रूप से पढ़ना आवश्यक है, लेकिन साथ ही जीवन और जीवन-रक्षा भी एक अति महत्त्वपूर्ण विषय है। इसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं है। इस तरह की गतिविधियां हमारा उद्देश्य बनना चाहिए कि आने वाले वर्षों में हमारी पीढ़ियां आत्मबल और आत्मरक्षा के गुर से लैस और परिपूर्ण हों, ताकि भविष्य में न तो हमें बंदूक चलानी पड़े और न ही सामने वाले किसी बेलगाम शख्स में हमारा अंत करने का साहस हो।
पिछले कुछ समय की कुछ घटनाएं यह साबित करती हैं कि हमें सचेत होना होगा, आत्मबल और आत्मरक्षा के गुर से लैस और परिपूर्ण होना होगा। संपूर्ण विश्व आतंक से त्रस्त है, मानवता अब मुश्किल में खड़ी दिख रही है, कुछ स्वार्थी तत्त्वों ने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर इंसानियत को ताक पर रख दिया है तो ऐसे युग में इतना तो होना ही चाहिए कि हम अपने आप को बचाए रखें और यह तभी संभव है, जब हम अपने बच्चों को और स्वयं को मानसिक, बौद्धिक और शारीरिक रूप से सबल बनाएं।