सादगी कभी हमारे जीवन की धड़कन थी, लेकिन अब एक भूली हुई गाथा बन चुकी है। यह जीवन को उसकी मूल भावना में जीने का तरीका है। एक ऐसा तरीका, जिसमें दिखावे का आडंबर नहीं, बल्कि स्थिरता, शांति और आत्मिक संतोष है। पर आज सादगी कहीं गुम हो गई है। अब यह केवल स्मृतियों का हिस्सा बनकर रह गई है, जिसे कभी-कभार हम याद कर लेते हैं और फिर उसी तेज रफ्तार जीवन में लौट जाते हैं। इस संदर्भ में सबसे पहले हमें गांधीजी के जीवन की सादगी याद आती है, जो एक प्रतीक थी। खादी पहनना, चरखा कातना और आत्मनिर्भरता का संदेश देना केवल राजनीतिक विचार नहीं था। यह उनके जीवन-दर्शन का हिस्सा था, जिसमें भौतिकता सीमित थी और आत्मा की शांति सर्वोपरि। उनकी सादगी में विरोध नहीं, बल्कि समर्पण था। लेकिन क्या आज हमारे जीवन में ऐसी कोई सादगी बची है? आधुनिकता के नाम पर हमने इसे त्याग दिया है और इसके स्थान पर एक अंतहीन दौड़ को अपना लिया है। यह दौड़ हमें अपने आप से और हमारे मूल्यों से दूर ले जा रही है।

गांव के कुएं को देखा जा सकता है। यह केवल पानी का स्रोत नहीं था, बल्कि एक संवाद स्थल था। वहां लोग अपनी चिंताओं, सपनों और खुशियों को साझा करते थे। वह संवाद अब डिजिटल हो गया है, जिसमें भावनाओं की गहराई की जगह सांकेतिक भाव-अभिव्यक्तियां या ‘इमोजी’ और प्रतिक्रियाओं ने ले ली है। डिजिटल युग ने हमारे संवाद को ‘तेज’ कर दिया है, लेकिन उसमें आत्मीयता खो गई है। बारिश की पहली बूंदें, जो कभी त्योहार की तरह स्वागत पाती थीं, अब असुविधा बनकर रह गई हैं। बच्चे जो कभी कागज की नाव बनाते थे, अब बारिश के समय घर के भीतर अपने गैजेट्स पर व्यस्त हो जाते हैं। यह बदलाव हमारी मानसिकता को दर्शाता है। प्रकृति, जो कभी हमारे जीवन का हिस्सा थी, अब केवल योजनाबद्ध तरीके से घूमने-फिरने और सोशल मीडिया पर डाली गई तस्वीरों में सीमित हो गई है।

जीवन को सही दृष्टिकोण के साथ देखने की कला है सादगी

सादगी केवल वस्तुओं की कमी नहीं है। यह जीवन को सही दृष्टिकोण के साथ देखने की कला है। हमें यह समझने का मौका देती है कि क्या वास्तव में ‘अधिक चीजें’ अधिक खुशी दे रही हैं या यह केवल एक भ्रम है। ‘अधिक से अधिक’ के सिद्धांत ने हमारे जीवन को नियंत्रित कर लिया है। इसने हमें यह समझने से रोक रखा है कि कम में भी ज्यादा हो सकता है। एक मशहूर कथन है कि सरलता सबसे बड़ा परिष्कार है। यह मात्र एक विचार नहीं, बल्कि जीवन का सत्य है। सादगी न केवल आत्मा को शांति देती है, बल्कि पर्यावरण को भी राहत प्रदान करती है। जब हम उपभोग को कम करते हैं और फिजूलखर्ची से बचते हैं, तो न केवल हम खुद को बेहतर इंसान बनाते हैं, बल्कि यह हमारी धरती के लिए भी एक उपहार है।

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हम यह याद कर सकते हैं कि आखिरी बार हमने कब किसी पेड़ की छाया में बैठकर समय बिताया था, कब हमने सुबह की पहली किरण को अपनी त्वचा पर महसूस किया था या कब हमने किसी बच्चे की खिलखिलाहट को सचमुच सुना था। ये अनुभव जो कभी हमारे जीवन का हिस्सा थे, अब एक शौक और विलासिता बन गए हैं। किसान को हल चलाते देख सकते हैं। उसकी मेहनत, माटी से जुड़ाव और उसका समर्पण जीवन का सच्चा सार बताते हैं। वह सीमित संसाधनों में भी प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। यह हमें सिखाता है कि जीवन का असली आनंद उपभोग में नहीं, बल्कि सादगी और प्रकृति के साथ जुड़े रहने में है।

आधुनिकता ने हमें उपकरण दिए, लेकिन छीन ली आत्मीयता

सादगी केवल एक व्यक्तिगत चयन नहीं है। यह एक सामूहिक दृष्टिकोण है, जो समाज और पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को व्यक्त करता है। यह हमें आत्मविश्लेषण और आत्मसंतोष का समय देती है। यह हमें सिखाती है कि भौतिकता से परे भी जीवन है- एक ऐसा जीवन जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है। बार-बार हम यह सुनते हैं कि आधुनिकता ने हमारे जीवन को आसान बना दिया है। लेकिन क्या यह सच है? आसान जीवन और अच्छा जीवन एक ही बात नहीं है। आधुनिकता ने हमें उपकरण दिए, लेकिन आत्मीयता छीन ली। सादगी वह कुंजी है, जो हमें अच्छा जीवन देती है। यह हमें याद दिलाती है कि खुश रहना जटिल नहीं है। यह केवल एक दृष्टिकोण का सवाल है। दरअसल, सादगी को केवल जीवन जीने के एक तरीके के तौर पर नहीं, बल्कि जीवन के लक्ष्य के रूप में देखने की जरूरत है। सादगी हमें भीतर से स्थिर बनाती है। यह हमें समाज और पर्यावरण के प्रति अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार बनाती है। यह हमें याद दिलाती है कि सादगी न केवल हमारे जीवन को सुंदर बनाती है, बल्कि यह हमें हमारे अस्तित्व का सही अर्थ भी सिखाती है।

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एक जरूरी बिंदु यह भी है कि सादगी को अपनाना केवल भौतिकता से मुक्त होना नहीं है। यह आत्मा से जुड़ने की प्रक्रिया है। यह हमें स्थिरता देती है और वह साहस भी, जिससे हम आधुनिक जीवन की कठिनाइयों का सामना कर सकें। यह खोई हुई धरोहर को पुनर्जीवित करने का समय है, क्योंकि सादगी केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि जीवन का मूल है।