जीवन में सक्रियता मनुष्य के जीवित होने को प्रमाणित करती आई है। फिल्मों में तो अक्सर जीवन के आगे बढ़ने को गतिशीलता के माध्यम से चिह्नित किया जाता रहा है- फिर वह दौड़ते हुए नन्हे पैरों का युवा के पैरों में तब्दील हो जाने का दृश्य हो या फिर घूमते हुए पहिये से समय के बदल जाने को अंकित किया गया हो। महज तीन घंटे में किसी के जीवन के पलों को इस तरह से चित्रित करना वाकई कलात्मक है। हालांकि मनुष्य के जीवन की अवधि फिल्मों की तरह निश्चित घंटे नहीं है। वह अनिश्चित है। इसके कारण एक तरह की जल्दबाजी मनुष्य के जीवन में हमेशा बनी रहती है, यहां तक कि कम उम्र में बहुत कुछ जल्दी से जल्दी पा लेना हमारे यहां समृद्धि से जोड़ा गया है।
जीवन में रफ्तार हमें कामयाबी, खुशियां, संपूर्णता, समृद्धि का बोध कराती आई है। जितनी जल्दी कोई अपने लक्ष्य तक पहुंच जाता है, हम उसे विजेता घोषित करते आए हैं, वहीं लक्ष्य तक पहुंचने के बीच की संघर्ष और मेहनत से भरी लंबी यात्रा को हर तरह की टिप्पणी का सामना करते रहना पड़ता है। कम समय में अधिक पा लेने की चाह अक्सर बनी ही रहती है।
हमारी इस दौड़ लगाती, अपने लक्ष्य तक जल्दी पहुंचने, कम समय में सब कुछ पा लेने की चाह का बाजारीकरण होना भी निश्चित ही था। इंटरनेट क्रांति के बाद पूरी दुनिया वास्तव में हमारी मुट्ठी में आ गई लगती है। हमें ऐसी सुविधा दी गई है कि हम अपने काम की गुणवत्ता भी बढ़ा सकें, साथ ही काम को अंजाम देने की रफ्तार भी। मगर ऐसा महसूस होता है कि अधिकांश लोगों ने गुणवत्ता की जगह रफ्तार का चुनाव किया है, जिसके चलते आज हमारे पास सब कुछ प्रचुरता में उपलब्ध है।
इंटरनेट क्रांति के पीछे भाग रही दुनिया
इन दिनों अक्सर प्रतीत होता है कि मानो मनुष्य ने किसी मजबूरी के चलते नहीं, बल्कि स्वेच्छा से अपने आपको मशीन में ही तब्दील कर लिया है। ठहराव की गुंजाइश के बगैर वह एक जैसा काम लगातार करने में समर्थ हो गया है। बिना किसी खास परिवर्तन के वह बस अपनी छाप सोशल मीडिया के उजले मंचों पर छोड़ता जा रहा है। कभी स्वयं के चित्रों और वीडियो के जरिए तो कभी अपने बेहद हड़बड़ी या उतावलेपन में जाहिर किए गए अपरिपक्व विचारों के माध्यम से। नवीन प्रयोग, विचार कुछ गिनती के देखने को मिलते हैं और बाकी सब उसी की प्रतिलिपि नजर आते हैं। सार्थक सृजन न कर पाने के बाद भी, केवल गतिशील बने रहना ही मनुष्य को खुशी और संतुष्टि महसूस कराने लगा है। यह चिंताजनक स्थिति है।
सकारात्मकता के रथ पर सवार, आज की समय में बदलाव का दृढ़ संकल्प रखने के साथ शुरूआत की जरूरत
सृजन की वास्तविक प्रक्रिया को अगर हम समझें, तो पाएंगे कि कलाकार एक लंबी प्रक्रिया- अध्ययन, अभ्यास, पुनरावलोकन, चिंतन से होकर गुजरता है, तब जाकर कोई एक सार्थक कृति का निर्माण हो पाता है। अगली कृति के लिए फिर से इसी लंबी प्रक्रिया को दोहराना होता है, ताकि नई कृति पहले से बेहतर बन सके। केवल कला का ही क्षेत्र नहीं, लगभग हर क्षेत्र में बेहतर परिणाम के लिए खुद को लगातार परिष्कृत करना पड़ता है। जिस तरह से इन दिनों हर दिन एक नई कृति, भले ही वह कोई लेख हो या विचार के रूप में हो, वीडियो के जरिए अपना हुनर दिखाना हो, बिना अल्प विराम के लगातार प्रसारित हो रहे हैं, संभवत: किसी फोटोकापी मशीन की तरह ही बस हम लगातार एक जैसी चीजें निर्मित करते जा रहे हैं। गति यहां बहुत है, पर क्या हम इंसान के भीतर की वास्तविक संभावनाओं का पूरा उपयोग कर पा रहे हैं?
निजी लाभ के लिए विवेक को दरकिनार कर दे रहे हैं लोग
वहीं किसी गंभीर घटना के होते ही जानकारियों की बाढ़-सी आने लगती है। महसूस होता है कि घटना के सभी पक्षों का अध्ययन कर सटीक जानकारी को उपयुक्त शब्दों में ईमानदारी से ढालकर प्रतिक्रिया देना उतना आवश्यक अब नहीं है। बस जल्दी से जल्दी प्रसारित कर देना सर्वोपरि हो गया है। हमारी नैतिक जिम्मेदारियां और संवेदनाएं अब विलुप्त-सी होती जा रही हैं। हमारे इस हड़बड़ाहट से भरे रवैये का बहुत गहरा असर मनुष्य की मानसिक स्थिति पर पड़ा है। आज का मनुष्य पहले से अधिक अस्थिर और अधीर चित्त का होने लगा है। हमारे त्वरित निर्णय, निष्कर्ष हमें आक्रामक बना रहे हैं। हम अपने भीतर की चेतना को मौन कर चुके हैं, हमारी अपनी विवेकशीलता, संवेदनाओं का अस्तित्व खत्म हो चुका है। हम केवल अनुयायी हैं। जो भी हमें लगातार दिखाया, सुनाया जा रहा है, वही हमारे जीवन का सच बन चुका है।
विवेक को दरकिनार करते हुए चलने वाली इस दौड़ का क्या कारण हो सकता है और इसका लाभ वास्तव में किसे मिल रहा है, यह हमें सोचना होगा। हम सब जानते हैं कि जीवन में प्रगति तभी संभव है जब हम अपने भीतर सीखने, समझने और अपने विचारों पर पुनरावलोकन करने की विनम्रता खुद में विकसित कर सकें। हम अपने आसपास के वातावरण को लेकर पूरी तरह सजग रह सकें। हमारे भीतर सद्भावना और सौहार्द की भावना जीवित रहे।
हमें समझना होगा कि आखिर क्यों थोड़ा-सा ठहराव भी हमें इतना डराने लगा है। क्या हम अपनी ही वास्तविकता से दूर भागने के लिए इस कदर दौड़ लगा रहे हैं? हम किसे दिखाना चाहते हैं और क्या सिद्ध करना चाहते हैं? जीवन इतना भी उथला नहीं हो सकता। यकीनन रफ्तार में ऊर्जा है, सौंदर्य है, रहस्य है और मनोरंजन भी। पर रफ्तार के पहले का ठहराव, जिसमें समर्पण, अनुशासन, अभ्यास, चिंतन है, असल में उसी में जीवन का वास्तविक अर्थ है।