मानव सभ्यता के आरंभ से ही दुख-सुख जीवन के साथी रहे हैं। यह प्राकृतिक स्थिति है कि हम खुशी के अनेक पलों को बखूबी जीते हैं, लेकिन दुख की हल्की छाया से भी हम असहज और चिंतित हो जाते हैं। सुख और दुख एक ऐसा अस्थायी चक्र है, जिससे संसार का कोई भी प्राणी मुक्त नहीं है। कई शोध प्रबंधों ने यह सिद्ध किया है कि खुशी वह भाव तरंग है जिससे व्यक्ति चिंता, तनाव एवं बीमारियों से बहुत हद तक मुक्त रहता है। व्यक्ति की दिनचर्या में यह साक्षात रूप में देखा गया है कि खुश रहना भागदौड़ भरी जिंदगी और एक दूसरे से आगे बढ़ने की अस्वस्थ प्रतियोगिता ने लोगों के चेहरे पर खुशी कम कर दी है।
भौतिक व्यामोह ने जीवन के सबसे अहम पहलुओं में से खुशी के पल को नजरअंदाज किया है। मनोचिकित्सकों का कथन है कि प्रसन्न व्यक्ति की मानसिक स्थिति अच्छी होती है, वे अपने निर्धारित दायित्व पालन में सफल होते हैं, परिवार और समाज के कार्यों में वे अच्छी तरह हाथ बंटाते हैं और कई शारीरिक व्याधियों से वे बचे भी रहते हैं।
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खुशी हमारे चिंतन स्वभाव का हिस्सा
वैश्विक प्रसन्नता सूचकांक के ताजा आंकड़े के मुताबिक, 147 देशों में भारत का स्थान 118 वां है, जबकि वर्ष 2022 में हम 92 वें स्थान पर थे। तो क्या खुशियों का पैमाना क्षरण की ओर अग्रसर है? इसके क्या कारण हैं? खुशी हमारे चिंतन स्वभाव का एक सांवेगिक हिस्सा है, जिसे हम महसूस करते हैं। दुखी होने के कई कारणों में वैसी घटनाएं मानी जाती हैं जो हमारे वैचारिक भूमि से मेल नहीं खातीं, जबकि खुश रहने की स्थितियों में हमारे मन की अनुकूलता की अनुभूति से तारतम्य बनाए रखता है।
अक्सर हम दैनिक जीवन में होने वाली मामूली बातों से अपनी खुशी खो देते हैं। उस समय थोड़े धैर्य से हम यह नहीं विचार करते कि किसी अचानक उपजी स्थिति की गहराई में क्या मर्म है। जब हम खुशी खोते हैं, उस समय हमारे मानसिक प्रवाह की दिशा में उदासी, चिड़चिड़ापन और निष्क्रियता के तरंग उत्पन्न होने लगते हैं, जिसे सामान्य होने में अधिक समय लगता है।
ऐसा ही मन का स्वभाव है, जो छोटी-मोटी बातों को बढ़ा-चढ़कर जीवन के अनुभूति आंगन में प्रवेश कर जाता है, जबकि जो खुशी अंतर्चेतना में मौजूद है, उस पर हमारा ध्यान नहीं जाता। हालांकि खुशी सिर्फ एक व्यक्ति के आनंदित होने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामूहिक संचारी गुण है। पारिवारिक आंगन में यह आमतौर पर देखने को मिलता है कि अगर घर का एक सदस्य खुश है और शेष कई सदस्य दुखी हैं, तो एक की निजी खुशी में स्थायीपन नहीं हो सकता।
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हमारे आसपास के लोगों का सुख-दुख हमारी स्वयं की प्रसन्नता को निश्चित तौर पर प्रभावित करता है। इसी परिप्रेक्ष्य में सभी के सुखी और आनंदित रहने के लिए ‘सर्वे भवंतु सुखिन:’ के पुनीत संदेश लोक जीवन में एक अमूल्य स्थान रखे हुए है। कभी-कभी परिवार या समाज में कोई अप्रिय घटना के कारण अधिकांश लोग दुखी हो जाते हैं, जिसमें हमारी आंतरिक स्थिरता और साहस पीड़ित के लिए सहारा और संबल बन जाती है। ऐसे पल में खुशी के भाव निश्चित रूप में प्रकट नहीं होते, बल्कि वह अचेतन आवरण का तात्कालिक हिस्सा हो जाता है। हमारी खुशी अन्य पर आश्रित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह उनके उत्थान और सहजता का कारण होना चाहिए।
कर्म के अनुसार ही सुख या दुख का भागीदार बनता है शख्स
लोक मान्यता है कि हर व्यक्ति अपने कर्म के अनुसार ही सुख या दुख का भागीदार बनता है। शायद इस तर्क के पीछे यह उद्देश्य रहा हो कि व्यक्ति अच्छे व्यवहार और आचरण का प्रदर्शन करना अपनी दैनंदिनी में शामिल करे। कुछ ऐसे भी दृष्टांत देखे जाते हैं जब किसी को खुश करने के लिए कुछ भी चेष्टा करें, वे दुखी ही बने रहते हैं और यह भी कह देते हैं कि दुख मेरे भाग्य में लिखा हुआ है। यह हालत बाद में मानसिक अवसाद के रूप में प्रकट होने लगता है।
अनेक दार्शनिकों ने कहा है कि खुशी बिल्कुल निशुल्क है जो हम सभी के अंतर्मन में छिपा हुआ है। कुछ लोग कहते हैं कि खुशी धन, दौलत और भौतिक संसाधनों से प्राप्त होती है। कई लोग नियमित रूप से पर्यटन प्रकल्प से जुड़कर अपने को तरोताजा रखते हैं जो खुशी का मनोहारी बिंदु है। हमारा मन एक कामना की पूर्ति होते ही दूसरी इच्छा की पूर्ति के लिए सचेष्ट हो जाता है। इसकी तीव्रता हमें कई ऐसे उपसर्ग से घेर लेती है, जब हम अपनी आंतरिक प्रसन्नता को विचलन की दिशा प्रदान कर देते हैं।
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नकारात्मक वाक्यों को नजरअंदाज करें
आमतौर पर किसी के कटु या अप्रिय बोल हमें असहज करते हुए क्रोध पैदा करते हैं। बौद्ध दर्शन का एक कथन है कि व्यक्ति को नकारात्मक वाक्यों को तुरंत नजरअंदाज कर देना चाहिए। नवजात शिशु के मन भी सुख-दुख की कसौटी पर परखे गए हैं। कोई बात उसके मनोनुकूल न होने पर वह रोने लगता है, लेकिन ज्यों ही उसे मन के अनुसार कोई खिलौने दिए जाते हैं, वह खुश होकर मुस्कुरा देता है।
पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन में सहजता लाएं
जीवन की जटिलता के वर्तमान दौर में खुश रहना आसान भले नहीं लगता, लेकिन यह असंभव नहीं है। हमारी दिनचर्या में अनेक प्रसंग उपस्थित होते हैं जो हमारी प्रसन्नता के पर्याय बन सकते हैं। खुशी अपने भीतर भी होती है। जरूरत है कि हम अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन में सहजता और सरलता लाएं। छोटी-मोटी प्रतिकूल स्थितियों में घबराएं नहीं। हिम्मत बनाए रखें, यह सोचकर कि जरा भी धैर्य खोने से हमारी मानसिक सक्रियता बाधित हो सकती है और उसके कारण आगे के दायित्व पालन में हम शिथिल हो सकते हैं।
अपने स्वजनों, मित्रों और पड़ोसियों के साथ मिल कर उनके प्रति करुणा और दयालुता के भाव प्रदर्शन से खुशी के भंडार में वृद्धि हो सकती है। पशु पक्षी को पूरे दिन में जितने आहार मिलते हैं, वे उसी में मगन रहते हैं और दूसरे दिन के लिए कुछ संग्रह नहीं करते। हमें कुछ दिनों तक प्रयोग कर यह मीमांसा करनी चाहिए कि खुशी का पैमाना क्या है।
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