हम एक ऐसे सोशल मीडिया के संसार में रहते हैं, जिसने सुंदरता को विकृत कर दिया है। इसने हमें यह सोचने के लिए बाध्य किया है कि सुंदरता एक निश्चित रंग या एक निश्चित आकार है। एक ऐसी दुनिया में जहां युवा दिखने को इतना महत्त्व दिया जाता है कि कभी-कभी हम खुद सोचने लगते हैं कि सौंदर्य के इस मानक में फिट बैठ रहे हैं या नहीं। भले ही आसपास की दुनिया लगातार बताती रहे कि हम सुंदर हैं। महिला हो या पुरुष, आज सभी पर शरीर की छवि को लेकर इतने तरह के दबाव हैं कि थोपे गए या प्रचारित अवास्तविक सौंदर्य मानक हमें व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करने लगे हैं। महिलाओं के बारे में तो स्थिति और भी जटिल है, क्योंकि उनकी तो छवि ही उनके शरीर की बाहरी सुंदरता से आंकी जाती है। जबकि यह उनके संपूर्ण और वास्तविक व्यक्तित्व को कमतर करने का एक जाल है।

उन्हें रात-दिन यही सतर्क भय रहता है कि सबकी आंखें उनकी शारीरिक बनावट को टटोल रही हैं। वे यह मानने लगती हैं कि वे भले ही सुंदर नहीं हों, कम से कम सुंदर दिखना तो जरूरी है ही। और सुंदरता का मानक वह, जो मिथ्या है, बाजार के गणित से तैयार किया जाता है या फिर सामाजिक सत्ता के मानस से तय होता है। दिखने-दिखाने की इसी कशमकश में हम यह भूल जाते हैं कि सुंदरता के मानक जीवनकाल में बदलते रहेंगे। इसलिए समाज द्वारा वर्तमान में सुंदर समझे जाने वाले चीजों को बहुत अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए। याद रखने की जरूरत है कि हमारे निशान, हमारी झुर्रियां, हमारी आंखें, हमारे हाथ-पैर, बाल, हमारी त्वचा- सभी हमारे सुंदर जीवन के साक्षी हैं। वे हमारे साथ बूढ़े होने और हमें उतार-चढ़ाव से उबारने के लिए यहां हैं। वे जीवन भर के लिए आपके दोस्त हैं।

सुंदरता’ से क्या मतलब क्या है?

सबसे पहले यह परिभाषित करना महत्त्वपूर्ण है कि हम ‘सुंदरता’ से क्या मतलब रखते हैं। कोई भी चीज जो इंद्रियों या मन को प्रसन्न करती है। इसका मतलब यह है कि सुंदरता सिर्फ दिखावट और सौंदर्यबोध के बारे में नहीं है, यह अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मायने रख सकती है। ऐसा इसलिए कि सुंदरता के बारे में हमारे विचार और भावनाएं हममें से हर किसी के लिए अलग-अलग होती हैं। कुछ लोग सुंदरता को ‘परफेक्ट’ या संपूर्णता से लैस चेहरे की समरूपता के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। दूसरे लोग सुंदरता को इस बात से जोड़ सकते हैं कि हम खुद की कितनी अच्छी तरह देखभाल करते हैं। फिर भी सुंदरता इस बात से जुड़ी है कि हम खुद को कैसे पेश करते हैं।

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हम जो आत्मविश्वास दिखाते हैं, हम कैसे बात करते हैं और अपने और अपने आसपास के लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। यह हमारी उदारता, दयालुता या हमारे व्यक्तित्व के अन्य आकर्षक पहलुओं में भी देखा जा सकता है। ये सभी गुण इस बात में फर्क डालते हैं कि दूसरे हमें कैसे देखते हैं। एक कहावत है कि ‘सुंदरता देखने वाले की आंखों में होती है।’ अगर सुंदरता केवल देखने वाले की नजर में है, तो सुंदरता के विचार का सत्य या अच्छाई के बराबर आदर्श के रूप में कोई मूल्य नहीं है। अरबों लोगों की दुनिया में कई लोगों के पास सुंदरता के बारे में बहुत अलग-अलग विचार होंगे। आस्कर वाइल्ड ने कहा है कि ‘कोई भी इतना सुंदर नहीं होता कि कुछ परिस्थितियों में वह बदसूरत न लगे।’

जब सुंदरता दिल में रहती है, तो उसे कहीं और दिखने की जरूरत नहीं होती

अगर सुंदरता व्यक्तिपरक है, तो हम इसे अपनी पसंद के हिसाब से परिभाषित कर सकते हैं। हमें आईने में देखने और खुद को सुंदर देखने का विकल्प चुनने का मौका मिलता है। यह एक व्यक्तिगत धारणा है। हम सभी खुद की जांच करते हैं और हम सभी के पास ये ‘फिल्टर’ होते हैं। जब सुंदरता दिल में रहती है, तो उसे कहीं और दिखने की जरूरत नहीं होती। दूसरों को यह तय न करने दिया जाए कि हम कौन हैं। हमें खुद होने का अनुभव किसी और से कहीं ज्यादा है। हममें से हर किसी का इस बारे में एक अनूठा दृष्टिकोण होता है कि इसका क्या मतलब है।

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यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि सुंदरता त्वचा के रंग, आकार और शारीरिक बनावट से परे है। यह केवल उन आकर्षक लोगों तक सीमित नहीं है, जिन्हें हम सिनेमा के चमकीले पर्दे, टीवी या सोशल मीडिया पर देखते हैं। सबसे अहम बात यह है कि हम जिस छवि को प्रदर्शित करना चाहते हैं, उसे हमारे आंतरिक व्यक्तित्व के साथ संरेखित किया जाना चाहिए, ताकि वह बाहरी रूप से सामने आ सके। दूसरे शब्दों में, यह वास्तविक होना चाहिए- हमारी सबसे अच्छी और सबसे सुंदर अभिव्यक्ति। तो क्या इसका अर्थ यह निकाला जाना चाहिए कि बाह्य सुंदरता मायने नहीं रखती? बिल्कुल मायने रखती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह अमूर्त, आकर्षक गुण जो इंद्रियों या मन को प्रसन्न करता है, ठीक वही है जो हम इसे बनाते हैं।

ऐसा होने पर हम इसे दुनिया, अन्य लोगों और अपने आप में देखना चुन सकते हैं। बस, सुंदरता हर चीज का शुरूआती बिंदु भर होनी चाहिए। बाद में वही देखा जाएगा, जो हमारे भीतर है। जान कीट्स कह गए हैं, ‘सुंदरता सत्य है, सत्य सौंदर्य है।’