सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

आजकल सोशल मीडिया के प्रभुत्व वाली दुनिया और सत्यापन की निरंतर आवश्यकता में यह स्पष्ट हो गया है कि हम डिजिटल युग के नागरिक वास्तविकता से संपर्क खो चुके हैं। भारी मन से ही सही, अब निर्णय लेने का समय आ चुका है कि सेल्फी पर लोगों को अपनी ओर लगाम लगाना चाहिए। सोचने, विचारने और खुद में झांककर देखने की जरूरत है।

हम क्या थे और क्या बन गए हैं? सड़कों पर चलते हुए अपने आसपास की दुनिया से बेखबर, इच्छानुरूप भंगिमा में ठहरने और अपने आत्म-चित्रों के लिए नौटंकी करने में तल्लीन अनगिनत लोगों को नजरअंदाज करना असंभव है। फोटोग्राफी कभी पवित्र मानी जाने वाली कला थी। अब भी है, लेकिन सेल्फी नामक आत्ममुग्धता के चलते कैमरा थामने वालों के प्रति एक अजीब भाव उत्पन्न होता है। यह आत्ममुग्धता वाला दौर समाज के सभी कोनों को संक्रमित कर रहा है।

स्मार्टफोन के इस युग में सेल्फी आत्म-जुनून के प्रतीक में बदल गई है। आनलाइन प्रशंसा के क्षणभंगुर पल हासिल करने के लिए खुद को तरह-तरह की रोशनी में नहला कर बाह्य आकर्षण का केंद्र बनने की दुनिया से बाहर निकलने की आवश्यकता है। हम अपने डिजिटल अवतारों को बेहतर बनाने में घंटों बिताते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारे अनुयायी हमारी सावधानीपूर्वक तैयार की गई जीवनशैली और सुखदायक अस्तित्व को पहचानें।

क्या ये उथले आनलाइन संपर्क हमारे वास्तविक मानवीय अनुभवों का त्याग करने लायक हैं? इसलिए एक सरल समाधान प्रस्तावित करने की आवश्यकता है, जिसका उद्देश्य मानवता को आत्म-अवशोषण के अत्याचार से मुक्त करना हो। इसके तहत सेल्फी के प्रति दूरी बनाना जरूरी है। इसके बजाय हमें वास्तविक क्षणों को संजोना चाहिए, ऐसी यादें बनानी चाहिए जो स्मार्टफोन के स्क्रीन की सतह से परे अपनत्व को बढ़ावा देने वाले हों।

अफसोस है कि सेल्फी की दुनिया में उठने-बैठने, जागने-सोने, रोने-धोने वालों की दुनिया में कमी नहीं है। ऐसे लोग उसके पक्ष में तर्क दे सकते हैं कि कभी-कभार पारिवारिक फोटो या सुंदर तस्वीरों से क्या परेशानी! लेकिन सवाल फोटोग्राफी पर रोक का नहीं है। दिक्कत वैसे लोगों से है जो सेल्फी के नाम पर आए दिन अजीबोगरीब कारनामे करते हुए आगे चलकर आत्ममुग्धता में ऐसे डूब जाते हैं कि उन्हें वास्तविक दुनिया में ला पाना सबसे कठिन कार्य हो जाता है।

ऐसे लोगों को अपने चेहरों पर इतना गुमान होता है कि वास्तविकता दिखाने वाले ग्रह को छोड़कर कल्पनाशीलता की दुनिया में विचरते रहते हैं। पारिवारिक चित्रों जैसी चीजें कीमती यादों को संरक्षित करने या हमारे परिवेश की सुंदरता को कैद करने के उद्देश्य से काम करती हैं। कल्पना करें एक ऐसी दुनिया की, जहां लोग वास्तव में चमकती स्क्रीन पर आंख गड़ाए बिना आत्मीय बातचीत में लगे रहते हैं।

एक ऐसी दुनिया, जहां हम अपनी भंगिमा पर ध्यान देने के बजाय सूर्यास्त की सूक्ष्म सुंदरता की सराहना करते हैं। लोग ‘स्नैपचैट फिल्टर’ और संपूर्णता की मुद्रा के बंधनों से मुक्त होकर वास्तविकता की दुनिया में जीना चाहते हैं तो उन्हें सेल्फी की मोहमाया से हटकर वास्तविकता की दुनिया के समीप जाने का प्रयास करना चाहिए।

इसके अलावा, हमें इस प्रस्ताव के आर्थिक निहितार्थों को नहीं भूलना चाहिए। सबसे महत्त्वपूर्ण सेल्फी से पहले दर्पण के सामने साज-सज्जा और केश-विन्यास को बेहतर बनाने में बर्बाद किए गए घंटों के बारे में सोचना चाहिए। सौंदर्य उद्योग, जो अब हमारे आत्म-जुनून पर निर्भर है, को अनुकूलन की आवश्यकता होगी। शायद वे उन उत्पादों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जो झूठी वास्तविकता को बनाए रखने के बजाय वास्तव में हमारी प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाते हैं।

समाज की प्राथमिकताएं बहुत विषम हैं। सेल्फी का चलन और आकर्षण हमारी खोई हुई ऊर्जा और आभासी अजनबियों की वाहवाही के लिए जीने की बढ़ती महामारी का प्रमाण है। इस कोशिश में भाग लेकर हम अपने जीवन को डिजिटल मुखौटे के चंगुल से मुक्त कर सकते हैं और अपने प्रामाणिक अंतर्निहित गुणों को फिर से खोज सकते हैं।

आज हाथ कम और स्मार्टफोन अधिक हैं। जब भी मौका मिलता है, लोग अपनी तस्वीरे खींचने लग जाते हैं। जबकि इसके कारण कई लोगों को खतरों का सामना करना पड़ जाता है। आए दिन ऐसे कई हादसों के बारे में पढ़ने को मिलता रहता है कि इस दौरान लोगों की जान तक चली गई है। इस तरह की दुर्घटनाओं से बचाव के लिए दुनिया में कुछ ऐसे स्थान हैं, जहां सेल्फी लेना प्रतिबंधित कर दिया गया है।

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम ऐसे व्यवहार की अनदेखी करें। मानवीय संबंध के सच्चे सार को अपनाएं। सेल्फी से दूर रहकर हम अपनी मानवता को फिर से प्राप्त करने की दिशा में एक कदम उठा सकते हैं एक ऐसी दुनिया की ओर एक कदम, जहां जीवन जीने के लिए है, न कि ‘पिक्सल’ के माध्यम से ‘फिल्टर’ करने के लिए। साथ मिलकर हम आत्म-जुनून की जंजीरों से मुक्त हो सकते हैं और उस सुंदरता का जश्न मना सकते हैं जो स्मार्टफोन की पहुंच से परे है।