अमिताभ स.

झाड़ू-पोंछा करने, बर्तन मांजने समेत तमाम घरेलू काम जब-जब गाते-गुनगुनाते लय में करते हैं, तब-तब तन-मन शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहता है। कठिन से कठिन कार्य लय में करने से सरल हो जाते हैं। देखा गया है कि कई विद्यार्थी गाने सुनते और टहलते हुए ज्यादा फटाफट से रट्टे लगा लेते हैं। खुद को संगीत की लय में सराबोर कर काम निपटाने का आनंद लेने में कोई हर्ज भी नहीं है!

कहीं पढ़ा था कि एक दफा चीनी संत चुअंग तेजु की पत्नी का निधन हो गया। वह अपनी कुटिया के बाहर बैठ मदमस्त वाद्ययंत्र बजाने लगा। उसे सांत्वना देने सम्राट पधारे, तो चुअंग को गाते-बजाते देख हैरान हुए। उन्होंने पूछ लिया, ‘तुमने तो हद कर दी। शोक में शांत तो रहो, लेकिन गाना-बजाना?’ वह तपाक से बोला, ‘क्यों रोऊं? क्यों गमगीन बैठूं? जानता था कि वह ताउम्र जीवित नहीं रहेगी, फिर मैं उसे शांति, सकून, संगीत और प्यार के माहौल में विदाई क्यों न दूं?’

यानी जीवन की लय हर हाल में जारी रखना चाहिए। बोरियत और उदासी को घेरने नहीं दिया जाए। गुनगुनाते-थिरकते जटिल काम करते हुए भी रग-रग रोम-रोम पुलकित होकर झूम उठता है। फेंगशुई में भी टन-टनाटन सुर-ताल उत्पन्न करने वाले यंत्रों को घर-आंगन में टांगना अच्छा माना जाता है। लय में रहने से दिमागी सकून मिलता है, तनाव भागता है, बोरियत भरे कामों को जोश से करने लगते हैं। जर्मन विचारक काउंट केसर्लिंग लिखते हैं, ‘सेहतमंद व्यक्ति मदमस्त गाएगा। वह हरगिज उदास नहीं रहेगा। लय में रहना हर किस्म की बोझिलता और गंभीरता का सफाया करती है।’

गीत गुनगुनाएं, ध्यान लगाएं, योग करें, पैदल चलें, कसरत करें, पौष्टिक खाएं, सुविचार पालें, सुकर्म करें, ताकि अपने सारे काम खुशी-खुशी कर सकें। सेहतमंद और खुशहाल रह कर ही हर काम आसानी से किया जा सकता है। यह बेशक आसान नहीं है। जो रोजमर्रा के तनाव को परे रख कर खुश और उत्साहित है, वही हर काम करने के काबिल है। किसी का सबसे बड़ा उत्साह तब झलकता है, जब वह प्रेम में होता है।

वही उत्साह हर पल जिंदगी में, पढ़ाई में, दफ्तर-दुकान, मैदान में दिखाने वाला कभी पीछे नहीं रह सकता। उत्साह शक्ति का केंद्र है। उत्साहित होकर ही हर सफलता मिलती है। इसलिए जीवन में पल-पल हर मोड़ और हर मुकाम पर उत्साह का भाव अपनाना बहुत जरूरी है। जोशीली उमंग को ही उत्साह कहते हैं।

अगर यह निश्चित हो जाए कि ऐसा करने से सफलता मिलेगी या अमुक स्थान पर जाने से किसी प्रिय व्यक्ति से भेंट होगी, तो उस निश्चय के भाव से यात्रा भी अत्यंत प्यारी हो जाएगी। अंग-अंग की यही प्रफुल्लता कठिनतम कर्मों के समाधान में भी देखी जाती है। जब तक फल तक पहुंचने वाला कर्म-पथ दिलचस्प, सुंदर, मोहक, मधुर या अच्छा नहीं लगेगा, तब तक केवल फल का अच्छा लगना कुछ नहीं। काम की राह और उसे करना सदा रोमांचित करना चाहिए। काम पर निकलने से पहले उमंग से भर जाना ही जीत का मार्ग प्रशस्त कर देता है।

कोई फर्क नहीं पड़ता कि हार चुके हैं, उदास हैं, क्योंकि अगर उत्साह रूपी भीतरी ऊर्जा जुटाना जानते हैं, तो दृढ़ता से चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। कहते भी हैं कि नभ उनका है, जो बिना पंखों से भी उड़ान भरने का हौसला रखते हैं। इसका मनोवैज्ञानिक पहलू है कि अगर इंसान ढीले-सुस्त मन से कोई काम करता है, तो असफलता का भय उस पर हावी हो जाता है। फिर हार करीब निश्चित हो जाती है।

एक उत्साहित व्यक्ति समान समय में एक हतोत्साहित व्यक्ति की तुलना में अधिक और बेहतर काम करता है। यह भी सच है कि जिंदगी की भागमभाग में रमे हुए ऐसे कितने हैं, जो जाने-अनजाने खुद की अनदेखी करते जाते हैं। खुद के खैरख्वाह होने का मतलब भी आत्म-प्रसन्न, आत्म-संपन्न और आत्म-स्वस्थ होना है। रिश्ते-नाते स्थायी नहीं होते, धन- संपत्ति भी आती-जाती है। शरीर हमारी संपत्ति है, जिसे कोई साझा नहीं कर सकता। हम अपना और अपने शरीर का जितना खयाल रखते हैं, यह उतने ही बढ़िया ढंग से साथ निभाता जाता है।

रोजमर्रा के सिरदर्द से बाहर निकलने में ही फायदा है। जब-जब हम दिक्कतों को पार लगाते हैं, तब-तब ज्यादा सक्षम बन कर उभरते हैं। मांसपेशियों के लिए जैसे कसरत जरूरी है, वैसे ही दिमाग के लिए दिक्कतें आवश्यक हैं। सयाने मानते हैं कि जब हम खुद पर विश्वास करते हैं, अपने हुनर को पहचान लेते हैं, अपनी खामियों को स्वीकार करते हैं, तब हमारी ऊर्जा, समय और संसाधन हमारे मन मुताबिक काम करने लगते हैं।

दिक्कतें और कठिनाइयां आनी-जानी हैं। इन्हें रोजमर्रा के कामों की तरह गाते-गुनगुनाते बगैर फिक्रमंदी सरलता से निपटाते जाना चाहिए। गाने गुनगुनाने से मन-मिजाज ठंडा रहता है। वैज्ञानिक तथ्य भी है कि सकारात्मक सोच से दो-तिहाई दिक्कतों के समाधान खुद निकलते जाते हैं। असल में सारी दिक्कतों से कोई दिक्कत पेश नहीं आती, बशर्ते बिना तनाव हंसते-गाते सुलझाया जाए।