महेश परिमल

एक अजीब दुनिया है भ्रम की, जिसमें बहुत सारे लोग डूबे रहना चाहते हैं। इससे निकलना यानी एक ऐसी जिंदगी को कबूल करना, जो उन्हें पसंद नहीं। इसकी वजह यही है कि ऐसे लोग सच्चाई से दूर भागते हैं। सच की कल्पना उनके लिए किसी भयावह जिंदगी जीने जैसी है। हमारे आसपास ऐसे कई लोग मिल जाएंगे, जिन्हें अगर एक बार भी सच का आईना दिखा दिया जाए, तो वे विचलित हो जाते हैं।

कुछ समय पहले एक परिचित के घर उनके पड़ोसी का पुत्र आया हुआ था। परिचित ने जिज्ञासावश उससे उसका नाम पूछा, फिर उसकी परीक्षा के परिणाम के बारे में पूछ लिया। तब उसने बताया कि वह अपनी कक्षा में प्रथम आया है। हालांकि बाद में पता चला कि वह बच्चा अपनी कक्षा में चौथे नंबर पर आया था। उसके अभिभावक ने उस बच्चे से यह कहा था कि कोई पूछे तो कह देना कि प्रथम आया हूं।

ऐसा अक्सर होता है। लोग मुगालते की सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं। वे सोचते हैं कि हम बहुत ऊपर आ गए, पर यह वास्तविकता नहीं है। उस अभिभावक ने अपने बच्चे को मुगालते की तीन सीढ़ियां चढ़ा दीं, पर वे यह भूल गए कि उन्होंने उस मासूम को एक ऐसी दुनिया दिखा दी, जो सच के धरातल पर नहीं, बल्कि झूठ की लिजलिजी जमीन पर टिकी है।

किसी भी परिचित को अगर बताया जाए कि हम कहां और क्या काम करते हैं, तब ऐसा भी हो सकता है कि वह परिचित हमारे काम की जगह पर अपना प्रभाव होने के बारे में अपना दंभ प्रदर्शित करे। वहां के लोगों के अपने ऊपर निर्भर होने के बारे में कुछ अजीब दावे भी कर सकता है। जबकि यह भी संभव है कि बात इसके उलट हो और वह व्यक्ति या तो झूठ बोल रहा हो या फिर वह खुद ही दूसरों की मदद का तलबगार रहा हो।

ऐसे लोग इसी दुनिया में अलग-थलग रहें, तभी बेहतर है, क्योंकि सच उनके लिए बेहद नुकसानदेह है। वे इस सच को स्वीकार नहीं कर पाएंगे। ऐसा नहीं है कि वे इस सच से वाकिफ नहीं हैं। वे जानते सब कुछ हैं, पर स्वीकार करने की स्थिति में नहीं होते। ऐसे लोग केवल दया के पात्र होते हैं।

विडंबना यह है कि आजकल बहुत सारे लोग भ्रम की दुनिया में अधिक ही जीने लगे हैं। कई लोग यह कहते मिल जाएंगे कि उनके बच्चे कंप्यूटर विज्ञान का पाठ्यक्रम करके किसी दूसरी जगह पर एमबीए या अन्य कोई नए विषय पर डिप्लोमा की पढ़ाई कर रहे हैं। हो सकता है कि यह बात सही हो, पर क्या सभी के बच्चे ऐसा ही कर रहे हैं? किसी बच्चे के नौकरीपेशा पालक से उसके वेतन के बारे में पूछा जाए तो आमतौर पर वे बताएंगे नहीं, अगर बता भी दिया तो इतना अधिक बताएंगे कि जिसे स्वीकार करना मुश्किल होगा। इनका सच तब सामने आता है, जब उनके सामने कोई भारी मुसीबत आती है। तब वे अपनों से उधार मांगते भी दिखाई दे देते हैं।

यह है भ्रम की एक वायवीय दुनिया, जहां दुनिया भर के ऐशो-आराम के सारे सामान हैं, पर सपनों में। यथार्थ की दुनिया में ये सब बेबस हैं। ये समाज में प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं, सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं, पर इन्हें यह सब नहीं मिलता, तो ये सब झूठ का सहारा लेते हैं, ताकि इसी बहाने लोग उन्हें महत्त्व दें। इनके पास बातचीत का भी कोई विषय नहीं होता। अपने कथित अच्छे दिनों की याद वे सदा ताजा रखते हैं।

कभी उन्होंने कोई बड़ा काम किया था या किसी बड़े नेता या अधिकारी के साथ कुछ पल बिताए होंगे, वही उनके लिए एक उपलब्धि होती है। गलती से उनकी किसी ने प्रशंसा कर दी हो, तो ऐसे लोगों के लिए वही रामबाण होता है, जिससे वे हर मर्ज का इलाज ढूंढ़ते हैं। इनकी पूरी दुनिया इन्हीं कुछ शब्दों और घटनाओं पर टिकी होती है।

आजकल ज्यादातर लोग सच की दुनिया में नहीं जीना चाहते। किसी के सपने छोटे नहीं हैं। सभी के पास बड़े-बड़े सपने हैं, पर उसे पूरा करने का माद्दा नहीं है। सपने देखना बड़ी बात है। इसे अवश्य देखना चाहिए, पर इसे पूरा करने का संकल्प भी होना चाहिए। संकल्प का वह जुनून लोगों में दिखाई नहीं देता। इसलिए आज समाज में झूठ का सहारा लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। आज हम भी उसी का एक हिस्सा बनकर रह गए हैं, क्योंकि सच बोलेंगे, तो हंसी का पात्र बनेंगे या फिर समाज में उपेक्षित रह जाएंगे।

यह एक विकट समस्या है। इससे बचना भी मुश्किल है। न तो हम हंसी के पात्र बनना चाहते हैं और न ही समाज में उपेक्षित होना चाहते हैं। घर के मुख्य दरवाजे पर एक कीमती पर्दा लगा दिया है, ताकि भीतर की असलियत लोगों से दूर रहे। पर उस दिन क्या होगा, जब यह महंगा पर्दा भी जवाब दे जाएगा? इसे जानने की कोशिश की है कभी किसी ने?