स्वाति
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जन्म के साथ ही मनुष्य सामाजिक बंधनों, परंपराओं, रिश्तों से जुड़ जाता है। गर्भनाल कटने से लेकर अंतिम संस्कार के मुखाग्नि तक वह सामाजिक सरोकारों और पैरोकारों के इर्द-गिर्द रहता है। सरल भाषा में कहें तो मनुष्य का जीवन समाज के बिना असंभव-सा है। वह समाज से सीखता है, अनुभव करता है और फिर उसी में जोड़-घटाव करके लौटा देता है। सुख-दुख, जन्म मृत्यु, प्रेम-घृणा, यश-अपयश, कर्म-निष्क्रमण, दया-निर्दयता, विश्वास-अविश्वास ये सारे मानवीय भाव यहीं समाज से उपजते हैं।
फिर वहीं विस्तार पाते हैं और आखिरकार समाहित हो जाते हैं। समाज का सकारात्मक साथ और सहयोग व्यक्ति को आत्मिक, भावनात्मक और मानसिक दृष्टिकोण से सबल तथा शीर्षस्थ करता है, लेकिन इसी समाज का साथ अगर न मिले या नकारात्मक हो तो व्यक्ति प्राण तक से गंवा बैठता है।
भारत में ‘डायन’ या ‘डाकन’ की धारणा एक त्रासदी है
उद्दंडता, उच्छृंखलता को रोकने के लिए कई नियमों में समाज ने स्वयं को बांधा। मगर जब ये नियम, सोच या विचार स्वार्थ लिए हों या वर्चस्व या प्रभुत्व स्थापित करने के लिए हों, तो फिर यह त्रासदी ही साबित होती है। ऐसी ही एक त्रासदी है भारत में ‘डायन’ या ‘डाकन’ की धारणा! सही तरीके से समझा जाए तो यह बस एक कुत्सित, कुंद और विक्षिप्त सोच है, पर यह सोच हर साल कई महिलाओं की जान ले लेती है। बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम और राजस्थान से लेकर भारत के कई कोनों में ‘डायन’ और ‘जादू-टोना’ के नाम पर सामूहिक और संगठित हत्याओं को अंजाम दिया जा रहा है।
झारखंड के किसी कोने से कभी ‘डायन’ के नाम पर औरतों को निर्वस्त्र करके घुमाने की घटना सामने आती है, तो कभी असम के किसी कोने से मैला खिलाने की! वर्ष 2015 में रांची से एक ऐसी घटना सामने आई थी, जिसने सबका दिल दहला दिया था। एक औरत को ‘डायन’ बताकर ‘शुद्धीकरण’ के नाम पर भयावह यातनाएं दी गई थीं। इंसानियत की हत्या करते हुए ‘डायन’ घोषित करके सामूहिक बलात्कार और यौन हिंसा तक की घटनाएं सामने आ चुकी हैं।
इस तरह की बर्बर सोच की इंतिहा तब होती है जब ‘डायन’, ‘डाकन’, ‘चुड़ैल’ के नाम पर सार्वजनिक रूप से पीट-पीट कर उनकी हत्या कर दी जाती है। इसी तरह की एक घटना हाल ही में बिहार के पूर्णिया जिले में हुई, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। गांव के किसी परिवार का एक बच्चा बीमार हुआ और लोग उसे ओझा के पास लेकर गए। बच्चे को बचाया नहीं जा सका। कुछ ही दिनों बाद उसी परिवार के एक और बच्चे की तबियत खराब हुई।
टोले के लोग फिर उसी ओझा के पास गए, जिसने एक अन्य परिवार की महिला को ‘डायन’ घोषित कर दिया। इसके बाद दो-ढाई सौ लोगों ने उस घर की महिलाओं और पुरुषों को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया और फिर उन्हें जला दिया। परिवार का एक बच्चा किसी तरह जान बचाकर भागा और पुलिस को वारदात की जानकारी दी। कुछ लोगों को नामजद और लगभग डेढ़ सौ अज्ञात लोगों के नाम प्राथमिकी तो दर्ज हो गई, लेकिन क्या गुनहगारों को सजा मिल पाएगी?
300 साल पुरानी ‘डायन’ के अवशेष ढूंढने में जुटे अधिकारी, लगा था शैतान से संबंध बनाने का आरोप!
कभी जमीन-जायदाद, संपत्ति हड़पने के नाम पर, कभी किसी विवाद में, कभी बच्चों के बीमार होने पर, कभी गांव की फसल खराब होने पर तो कभी बिना किसी बात के भी गांव के तथाकथित ओझा-गुनी, तांत्रिक आदि गांव की किसी भी स्त्री को ‘डायन’ घोषित कर विपदा का कारण बता देता है। कम शिक्षित या अनपढ़ या फिर बहुत सारे कथित पढ़े-लिखे लोग भी उसे ही सच मानकर उस स्त्री की अस्मिता और प्राण हरण पर तुल जाते हैं। शिक्षा का अभाव, कठोर कानून की कमी, अंधविश्वास, स्वार्थ, प्रभुत्व जमाने की मंशा, मानवता का क्षरण, गांव वालों का एक जैसा सोचना-समझना जैसे कारण उभर कर सामने आए हैं, जिसके आधार पर उन सबको एक साथ एक विवेकहीन भीड़ में तब्दील कर दिया जाता है।
इस तरह की जड़ता और इसकी हिंसा के विरुद्ध बिहार, झारखंड और असम आदि कुछ राज्यों में कानून हैं, मगर ऐसे मामलों में जुर्म साबित करना सबसे कठिन काम होता है। ‘डायन’ घोषित चाहे कोई तांत्रिक या व्यक्ति विशेष करता हो, मगर उकसाने से लेकर अमानवीय व्यवहार या हत्या जैसे काम गांव या टोले के लोगों का होता है, जो किसी आपराधिक गिरोह की तरह घटना को अंजाम देते हैं। ऐसे में गवाह और सबूत निकालना प्रशासन के लिए भी टेढ़ी खीर साबित होता है। कुछ लोग गिरफ्तार हो भी जाते हैं तो अक्सर असली अपराधी बच निकलता है। जब कानून का खौफ ही नहीं होगा तो लोग बेफिक्र होकर ऐसे अपराधों को अंजाम देंगे।
भारत आज चांद और मंगल तक पर पहुंच गया है। मगर विकास के सफर में रोशनी के बीच अंधेरे की तरह समाज में मानवीयता और संवेदनशीलता को चुनौती देने वाली कुछ मिथ्या धारणाएं या जड़ विकृत सोच अभी तक हमारे समाज पर कुंडली मार कर बैठी हुई हैं। आखिर किन वजहों से ऐसा होता है कि देश के दूरदराज इलाकों में स्मार्टफोन या मोबाइल टावर जैसी तकनीकी सुविधाएं तो पहुंचा दी जाती हैं, लेकिन लोगों की जड़ता पर चोट करने वाली सोच को खत्म करने, अंधविश्वासों को दूर करने के लिए कोई सामाजिक विकास नीति नहीं दिखती।
यह स्थिति बने रहने में किसका फायदा है और कौन इस तरह की यथास्थिति को बने रहने देना चाहता है? किसी भी देश की सामाजिक सोच उस देश के विकास के रथ को खींचती है। सामाजिक और कानूनी स्तर पर ऐसे प्रयास होने चाहिए, जिससे इस तरह की किसी भी कुप्रथा की समाज में कहीं भी जगह न बचे।