उपहार लेना और देना हमारी संस्कृति का हिस्सा है। जब कोई हमें उपहार देता है तो हमारा मन अत्यधिक प्रसन्न होता है। सामान्य स्थितियों में उपहार देने वाले के प्रति हम अतिरिक्त अनुराग का अनुभव करते हैं। यही कारण है कि जब हम किसी के प्रति अपना प्रेम, स्नेह, आभार, शुभकामना, सम्मान व्यक्त करना चाहते हैं, तो उपहार देकर करते हैं।

पारंपरिक नजरिए से देखें तो उपहार एक सुंदर तरीका है किसी को धन्यवाद, आभार या शुभकामनाएं देने का। उपहार हमारी हमारी कृतज्ञता, आत्मीयता को सहज ही दूसरे तक पहुंचा देते हैं। हमारे मन में उनके लिए कितना स्रेह, आदर या फिर कौन-सी भावनाएं हैं, यह प्रदर्शित करते हैं। रिश्तों को मजबूत बनाते हैं और एक दूसरे से मजबूती से जोड़े रखते हैं। उपहार देना दूसरों के प्रति हमारे परवाह करने का एक तरीका भी है, जो सामने वाले को बताता है कि वह हमें याद है, हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। उपहार भावनाओं को व्यक्त करने के साथ-साथ स्थायी रिश्ते और यादें बनाने का एक सशक्त माध्यम है और रिश्तों को दीर्घायु बनाने का सुंदर साधन है।

जो बातें समाज में चलन में होती हैं, उसी पर स्थितियों का आकलन होता है

हालांकि ऐसा नहीं है कि अगर कोई व्यक्ति किसी मौके पर अपने किसी प्रिय को उपहार नहीं दे सका तो इससे उसकी अहमियत कम हो जाएगी या इसी से उसकी संवेदना का पैमाना तय किया जाएगा। मगर जो बातें समाज में चलन में होती हैं, हम उसी के आधार पर स्थितियों का आकलन करते हैं। दरअसल, अलग-अलग व्यक्ति द्वारा दिया गया उपहार अलग-अलग भावनाएं अभिव्यक्त करता है। मसलन, अगर उपहार गुरु से मिलता है तो वह प्रेरणा और प्रोत्साहन दर्शाता है। माता-पिता से मिला उपहार उनके निस्वार्थ प्रेम को प्रदर्शित करता है और अपने से आयु में छोटे अनुजों द्वारा प्राप्त उपहार हमारे प्रति सम्मान को दिखाता है।

उपहार देना तभी सार्थक होता है जब इसके साथ हमारी भावनाएं भी स्नेह से भरी और पवित्र हों। अगर हम स्वार्थवश किसी को कोई वस्तु उपहार दे रहे हैं, तो हमें उतनी आत्म संतुष्टि या खुशी नहीं मिल सकती है, जितनी निस्वार्थ भाव से उपहार देने पर मिलती है। अगर हम किसी को उपहार देते हैं और बदले में किसी चीज की आशा रखते हैं तो यह उपहार किसी भी तरीके से नहीं कहा जा सकता। बल्कि इसे लेन-देन या सौदा माना जाएगा या फिर व्यवसाय भी कहा जा सकता है। ऐसे उपहार का संबंध आत्मीयता से न के बराबर होता है।

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विवाह से लेकर त्योहार, जन्मदिन, वर्षगांठ, गृह प्रवेश के अवसरों पर हम अपने सगे-संबंधियों या दोस्तों को उपहार देते रहते हैं। उपहार कितना महंगा है और कितना सस्ता है, प्रेम में यह बिल्कुल महत्त्वपूर्ण नहीं होता है। दोस्त, परिवार या किसी संबंधी के प्रति प्रेम में सिर्फ मनोभाव का महत्त्व होता है। जरूरी नहीं है कि हम किसी को सोना-चांदी या महंगे ब्रांडेड कपड़े, गैजेट उपहार दें, तभी हम किसी का हृदय जीत पाएंगें। दिल से दिया गया छोटा-सा उपहार भी सोने-चांदी और महंगे उत्पाद से ज्यादा अनमोल हो जाता है और हम उसे जीवन भर संभाल कर रखते हैं। दिल से दिया गया उपहार हमेशा किसी महंगे उपहार से बेहतर होता है। चाहे वह साधारण कार्ड या हस्तलिखित नोट ही क्यों न हो। उसमें सबसे ज्यादा महत्त्व रखता है उपहार देने के पीछे कितना लगाव और प्रेम छिपा है।

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सही भावना के साथ दिए गए उपहार बरसों बीत जाने के बाद भी भावनात्मक रूप से अनमोल ही बने रहते हैं। जैसे बचपन में जब हम अपने सगे-संबंधियों में से किसी को कोई खिलौना दिए रहते हैं, तो बड़े हो जाने के बाद भी खिलौने को देख कर उस व्यक्ति की मधुर याद ताजा हो जाती है। रिश्ते को प्राणवायु मिल जाता है, वह पुनर्जीवित हो जाता है। जबकि बड़े हो जाने के बाद उनका मूल्य हमारे लिए कुछ भी नहीं रह जाता है, लेकिन भावनात्मक याद और लगाव बरसों बाद भी रह जाता है।

विज्ञान के पहलू से देखें तो हमारा मस्तिष्क देने की क्रिया पर सकारात्मक क्रिया-प्रतिक्रिया देता है, जिससे हम बहुत ज्यादा खुशी महसूस करते हैं। खुशी का हार्मोन ‘डोपामाइन’ किसी को कुछ देने पर सक्रिय हो जाता है और हमें उतनी ही खुशी महसूस होती है, जितनी कि जब हम अपने मनपसंद व्यक्ति से मिलते हैं या अपना मनपसंद भोजन खाते हैं। मस्तिष्क में आक्सीटोसिन का स्राव होता है, जो सामाजिक बंधन और विश्वास को मजबूत करता है और फिर न्यूरान्स के सक्रिय होने से हम खुशी महसूस करते हैं।

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एक अध्ययन में यह भी पाया गया है कि जो लोग दूसरों पर पैसा खर्च करते हैं, वे उन लोगों की तुलना में ज्यादा खुश रहते हैं, जो खुद पर पैसा खर्च करते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हम सभी देखते हैं कि हमारे माता-पिता जब हमें उपहार देते हैं या कोई भी वस्तु देते हैं तो वे हमसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं।

इसीलिए जब भी किसी को उपहार देना हो तो पूरे आदर, मन और दिल के साथ ही देना चाहिए, ताकि वह जीवन भर उसकी कोमल याद में बना रहे। हमारा देना न सिर्फ उस व्यक्ति की प्रसन्नता का कारक होगा, बल्कि हमारे लिए भी प्रसन्नता का कारक बनेगा। उस व्यक्ति से जिंदगी भर दोस्ती, पारिवारिक संबंध, प्रेम संबंध गहरा रहेगा। कई बार जो बातें हम अपने मुंह से नहीं कह पाते हैं, हमारा उपहार बहुत सटीकता के साथ सामने वाले के समक्ष प्रकट कर देता है।

यह बिना बोले दिल से दिल को जोड़ने की कला है। हम उपहार देकर किसी के लिए अपना प्रेम और स्नेह व्यक्त कर सकते हैं। रिश्तों को मजबूत कर सकते हैं। अपनी कृतज्ञता और आत्मीयता व्यक्त कर सकते हैं। खुशी और सकारात्मकता फैला सकते हैं। अपने बंधनों को और मजबूत कर सकते हैं। सहानुभूति और परवाह प्रदर्शित कर सकते हैं। एक सकारात्मक प्रभाव बना सकते हैं।