अभिषेक अभिनव

जीवन की प्रगति में मनुष्य का अहंकार बहुत बड़ा बाधक है। इंसान की एक फितरत है कि जब उसके पास कोई भी चीज अत्यधिक हो जाती है तो उसको अहंकार होने लगता है। जब इंसान अहंकार में अंधा हो जाता है, तब उसे अपनी गलतियां नहीं दिखती हैं। वह हमेशा खुद के फायदे का सोचकर दूसरों को कष्ट देता जाता है। वास्तव में अहंकार की परिणति विनाश है। अहंकार की रुचि प्रदर्शन में होती है। प्रतिभा का प्रदर्शन भी होना चाहिए, लेकिन अगर प्रतिभा में दिखावे की चमक हो तो अहंकार पैदा होगा और अगर सूर्य-सा प्रकाश हो तो प्रतिभा का निरहंकारी स्वरूप सामने आएगा।

अहंकार के भाव में डूबे इंसान को न तो अपनी गलतियां दिखती हैं और न ही दूसरों में अच्छी बातें। और इसी चक्कर में कुछ लोग अपने आसपास के बहुत अनमोल लोग खो देते हैं। यह एक ऐसा अवगुण है जो इंसान को कभी महसूस नहीं होने देता कि जो वह कर रहा है, वह गलत है या सही। वह हमेशा अपनी धुन में सवार होता है और उसका व्यवहार एक अज्ञानी की तरह हो जाता है, जहां उसकी आंखों पर अज्ञानता की पट्टी बंधी होती है। स्वामी महावीर कहते हैं- ‘अज्ञानी आत्मा पाप करके भी अहंकार करती हैं।’ अहंकार हमें खुद की नजरों में तो मजबूत करता है, लेकिन दुनिया की नजरों में गिरा देता है। जब तक हमें इसकी अनुभूति होती है, तब तक हम विनाश की सीमा पार कर चुके होते हैं।

यों तो व्यक्ति के अहंकारी होने के कई कारण हैं, लेकिन वर्तमान में धन-संपदा और भौतिकता के प्रदर्शन का घमंड लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। विशेषकर अचानक धनी बने लोगों का व्यवहार उनके दंभ को किसी न किसी रूप मेंं उजागर कर देता है। दरअसल, जब व्यक्ति के पास आवश्यकता से अधिक धन आ जाता है तो वह यही सोचने लगता है कि उसके पास सब कुछ है। वह दूसरों को अपने से हीन समझने लगता है। अगर वह व्यक्ति अज्ञानी और अशिक्षित हो तो यह प्रवृत्ति अधिक मुखर होकर दिखती है। अगर उस व्यक्ति ने अनैतिक कार्यों से धन अर्जन किया हो तो उसके घमंडी होने की आशंका और प्रबल हो जाती है। ऐसे व्यक्ति का सर्वनाश निश्चित होता है।

अगर कोई धन के प्रति घमंड करता है तो उसके बुरे दिनों में कोई भी उसकी सहायता करने से संकोच करता है। घमंड का एक और रूप होता है, जिसे यूनानी भाषा में ‘ईविस’ कहते हैं। यूनानी भाषा के विद्वान विलियम बार्कले के अनुसार ईविस से आशय ऐसे घमंड से है, जिसमें क्रूरता भरी हुई हो। यह घमंड का ऐसा स्वरूप है, जिसमें लोग दूसरों को नीचा दिखाने के लिए बेरहमी से उनकी भावनाओं को रौंदते हैं। हालांकि इसके बाद उनका विनाश तय माना जाता है, क्योंकि धन या बल से सब कुछ खरीदा जा सकता है, लेकिन मान-सम्मान और चरित्र नहीं।

जहां अहंकार का वास होता है वहां नम्रता, बुद्धि, विवेक, चातुर्य कोई गुण विद्यमान नहीं होगा। घमंड जिस इंसान पर हावी होता है, वह सबसे पहला काम यही करता है कि उसके भीतर अन्य गुणों का प्रवेश न हो। व्यर्थ के अहं भाव के कारण उसकी नजर में हमेशा सब लोग निम्न स्तर के होते हैं। वह सदैव दूसरों की राह में बाधाएं उत्पन्न कर प्रसन्नता पाता है और औरों को गिराकर अपनी राहें बनाता हैं।

दुनिया में हर व्यक्ति से बड़ा कोई न कोई अवश्य होता है और चक्र ऐसा है कि कोई भी अपने आप को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ होने का दावा नहीं कर सकता और इसका अहंकार नहीं पाल सकता। वक्त रहते अगर हम अहंकार रूपी अंधकार को दूर कर सकें तो जीवन को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण साबित होता है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम सामने वाले के साथ विनम्र व्यवहार करें, जिससे कि हमें एक अच्छा इंसान बनने में सहायता मिले और लोगों का दिल जीत सकें।

विनम्रता व्यक्ति का गहना होती है। इसकी शुरुआत अहंकार के अंत से ही होती है। जीवन में हमें शांति और आनंद का अनुभव तभी होता है, जब हम लोगों के समक्ष विनम्रता का भाव प्रकट करते हैं। हमें विनम्रता के आभूषण का वरण कर अपनी आंतरिक असीम शक्ति को जागृत करना चाहिए। अगर हम ऐसा कर पाते हैं, तो निश्चय ही सभी तरह के मानसिक मनोविकारों से भी खुद को बचा सकते हैं, अपने खुशहाल जीवन की नींव रख सकते हैं।

हमें अपने अंदर विद्यमान अहंकार के भ्रम को खत्म कर देना चाहिए, ताकि हम वास्तविकता को देख सकें और भविष्य की हर कठिनाई से लड़ने और जोखिम उठाने में परिपक्व हो जाएं। अपने अहंकार को भी नष्ट करना चाहिए, ताकि हम दुनिया की वास्तविक खूबसूरती को देख कर सुकून की अनुभूति कर सकें। इतिहास ऐसे प्रमाणों से भरा है, जहां बड़े से बड़े विद्वान और शूरवीरों को भी अपने घमंड का दंड भुगतना पड़ा था।