किसी साधन की जरूरत और उसके उपयोग में जब असंतुलन पैदा होता है, तब उसका सीधा असर उसके उपयोगकर्ता पर पड़ता है। मसलन, मोबाइल और इंटरनेट आज के वक्त की सबसे प्राथमिक जरूरतों में से हैं, मगर क्या सभी लोग इसका उपयोग इसकी जरूरत के मुताबिक ही करते हैं? इस जरूरत के विस्तार का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अब रोटी, कपड़ा और मकान के साथ आधारभूत आवश्यकताओं में इंटरनेट को शामिल कर लेने का मुद्दा उठ रहा है। इसमें दो राय नहीं कि इंटरनेट ने व्यक्ति को बहुत-सी सहूलियतें दी हैं। लोगों के जीवन को आसान बनाया है। किसी जानकारी और ज्ञान के रास्ते की बाधाओं को कम किया है। उसने ज्ञान पर कुछ लोगों, कुछ भाषाओं के वर्चस्व को तोड़ने की भूमिका बांधी है। उसने बेजुबानों को आवाज दी है, अब आगे अपरिवर्तित मान ली गई स्थितियों को गतिशील बनाया है। जाति, राज्य, राष्ट्र, धर्म और संस्कृति की भौगोलिक-सांस्कृतिक सीमाओं को तोड़ते हुए हर व्यक्ति को वैश्विक समाज का सदस्य बनने की योग्यता दी है।

व्यक्ति ने कई बहुत-सी चीजों को आसान बनाकर भी स्वयं व्यक्ति को जटिल बना दिया है

दरअसल, इंटरनेट ने और भी बहुत कुछ किया है, लेकिन इसने व्यक्ति को स्क्रीन तक सीमित भी किया है। स्क्रीन के माध्यम से आने वाली हर जानकारी हमारे लिए अंतिम सच की तरह हो गई है, भले ही हमारे अपने जीवन से उसका कोई सामंजस्य न हो। व्यक्ति ने कई बहुत-सी चीजों को आसान बनाकर भी स्वयं व्यक्ति को जटिल बना दिया है। हमारे समय का एक बड़ा भाग स्क्रीन को समर्पित रहता है। दिमाग में कुछ आते ही उसे सर्च करना अब आदतों में शुमार हो गया है। व्यक्ति की याददाश्त दिन-ब-दिन कम होती गई है।

हमारे मन में कुछ होता है, खोलते ही कुछ और दिखता है, हम उसी को देखने लगते हैं

हालत यह है कि इंटरनेट पर कोई शब्द या वाक्य टाइप करते हुए वैकल्पिक शब्द दिखने की सुविधा की वजह से लोग अब शब्दों की वर्तनी या अंग्रेजी के शब्दों के अक्षर भी भूलने लगे हैं। हमारी कौन-सी और किस तरह की क्षमता को इंटरनेट ने हमसे छीन लिया है, इसे हम कभी सोचना जरूरी नहीं समझते। जिस तरह दफ्तर का एक निर्धारित वक्त होता है, उसी तरह इंटरनेट का क्यों नहीं हो सकता? तात्कालिक जरूरतों या ज्यादातर गैरजरूरी चीजों के लिए की गई इंटरनेट पर खोज एक तरह से समय का अपव्यय ही है। हमारे मन में कुछ होता है, खोलते ही कुछ और दिखता है, हम उसी को देखने लगते हैं और काम की बात भूल जाते हैं।

अन्य सब कार्यों की तरह अगर इंटरनेट का भी समय नियत कर दिया जाए तो काफी हद तक इस समस्या को कम किया जा सकता है। इससे हमारी याददाश्त पर भी थोड़ा जोर पड़ने से उसके बने रहने की संभावना रहेगी। कहते हैं, दिमाग भी यंत्र की तरह ही है। उसे जितना चलाया जाए, ज्यादा चलता है। हम अपने कार्यों को लिखकर एक साथ निबटा सकते हैं। इससे हमें यह भी पता लगता है कि हमारी कार्यक्षमता कितनी है।

इंटरनेट के लिए एक वक्त निश्चित करने से हम जानेंगे कि हमें इस पर कोई काम ही नहीं है और हमें लगेगा कि इसके बिना काम चलाना मुश्किल नहीं है। बस अनुशासन की जरूरत है। चौबीस घंटे के इंटरनेट ने मनुष्य को एक धुकधुकी वाली मानसिकता दी है। यानी उसके धैर्य को उससे छीन लिया है और बेवजह की बेचैनी दी है। इंटरनेट मनुष्य को स्वयं को भुलाने का एक आसान माध्यम है। यह दरअसल कोई काम करने के लिए है, धीरे-धीरे इस सोच को भुला दिया गया है। सामान्य व्यक्ति के लिए वह एक सुलभ मनोरंजन भर रह गया है।

हालांकि मनुष्य उससे मनोरंजन से कहीं अधिक प्रभावित होता है। अगर इससे महीने में तीन दिन का ठहराव लेकर भी हम देखें तो ये महसूस कर पाएंगे कि यह एक दिमागी भार है, जिसको जबरदस्ती हमने ओढ़ लिया है। इंटरनेट से ठहराव लेना इतना मुश्किल नहीं है, जितना समझा जाने लगा है। फालतू खरीद के इस युग में फालतू देखने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है।

कुछ लोग बड़ी शान से बताते हैं कि उनके रोजाना का डेटा पर्याप्त नहीं पड़ता। उनसे काम पूछा जाए तो किसी के साथ ‘चैटिंग’ या बातचीत के अलावा वे इंटरनेट के बारे में शायद ही कुछ जानते हों। ऐसे लोग हर छोटे-मोटे आनलाइन काम के लिए कैफे जाते हैं और खुद पूरे दिन डेटा लगाकर अपने नुकसान की भरपाई करते हैं। यह सही है कि अब डेटा के बगैर रिचार्ज ही नहीं रह गए हैं। ऐसे में अधिकतर लोग ज्यादा से ज्यादा डेटा का रिचार्ज करवाते हैं। डेटा के पैसे देकर उसे इस्तेमाल में नहीं लेने से कंपनी के फायदा होता है। इसलिए इस फायदे को कम करने के लिए वे अपना घाटा करते हैं।

बिना सोचे इंटरनेट पर कुछ भी चला लेने की प्रवृत्ति ने मस्तिष्क की एकाग्रता को गड़बड़ा दिया है। मनुष्य की जैविक घड़ी एक निश्चित वक्त के हिसाब से चलती है। जब हमारी दिनचर्या में कोई स्थायित्व नहीं होता तो उसकी व्यवस्था सही से नहीं चल पाती। जिस तरह बिना भूख लगे हम खाते हैं, उसी तरह बिना जरूरत खुद को व्यस्त रखने के लिए कुछ भी करते रहते हैं। इंटरनेट ने मनुष्य की इस मानसिकता का फायदा उठाते हुए उसे काबू में कर लिया है। हमें इससे मुक्त होना चाहिए। इंटरनेट मनुष्य के लिए एक माध्यम है, वह माध्यम ही रहना चाहिए। उसे हम पर काबू करने वाले स्थिति तक हमें हरगिज नहीं जाने देना चाहिए।