अमिताभ स.
कई लोग अपनी नौकरी, गाड़ी, घर, दोस्त आदि सब कुछ बदलने में लगे रहते हैं। जबकि खुद को बदलना सबसे जरूरी है। मगर खुद को न बदलते हैं, न बदलने की कोशिश करते हैं। नतीजतन, सुकून उड़ जाता है। बेमतलब की चिंताओं में डूबते जाते हैं और हर पहलू के प्रति नाकारात्मक रवैया अपनाने लगते हैं। कबीर के दोहे का यही सार है- ‘चाह मिटी, चिंता गई मनवा बेपरवाह/ जिसको कुछ नहीं चाहिए वही शहंशाह।’
दरअसल, बाहरी नहीं, बल्कि अंदरूनी बदलावों की जरूरत होती है। तथ्य भी है कि लोहे को कोई नष्ट नहीं कर सकता, सिवाय उसके अपने जंग के। इंसान को भी केवल उसकी मानसिकता तबाह करती है। सारी परेशानियां हालात से ज्यादा इंसानी सोच से उत्पन्न होती हैं। इसीलिए खुद को और अपने खयालात को बदलते ही हालात बदलने लगते हैं। महात्मा बुद्ध कहते हैं, ‘हर इंसान अपनी आरोग्यता या रोग का स्वयं रचयिता होता है।’
इसलिए हालात जैसे हैं, चिंताएं पाले बिना प्रसन्नचित रहना चाहिए। धन-दौलत या मौज-मस्ती के शाहखर्च तामझाम से नहीं, बल्कि हम जो भी करते हैं, उसी से खुशी का अनुभव हो सकता है। अगर सुबह की मामूली चाय की प्याली से खुशी मिलती है, तो इसे पूरे शौक और शानदार ढंग से बनाएं। कप खरीदें, किस्म-किस्म की चाय पत्तियों से चाय बना कर पिएं। ऐसी छोटी-छोटी खुशियों को अपना जुनून बना लें। यही हमारे भीतर से अनचाहे खयालात का सफाया करेंगी। फिर आसपास की हर चीज खुशनुमा लगने लगेगी और खुद को बदलने की जिज्ञासा बढ़ेगी।
मछलियां समुद्र से बाहर झांक-झांक कर कूदती-फांदती क्यों हैं? उन्हें पानी से बाहर की दुनिया को जानने की जिज्ञासा होती है। हर पल और जानने की ऐसी ही प्रबल इच्छा इंसान के विकास और तरक्की का बड़ा जरिया बनती है। इसलिए खुद को सीमित दायरे से बाहर निकालना जरूरी है। रुकावटों में भी दिमाग उड़ान भरते रहना चाहिए। हर हाल में खुद को ज्ञान और हुनर से लैस करते रहना चाहिए।
कमजोर जिज्ञासा असफलता का बड़ा कारक बनता है। सफल होना है, तो अपनी आंख-कान खुले रखना चाहिए, एक ही जगह नहीं ठहर जाना चाहिए। कामयाबी के रास्ते में खासा मायने रखता है कि हम कितने ज्ञानवान और हुनरमंद हैं। ऐसे लोगों या किताबों के साथ रहा जाए, जिनसे कुछ सीखा जा सके, खुद को बदला जा सके।
इस संबंध में डा. एपीजे अब्दुल कलाम एक मिसाल देते हैं। अगर बंदर के सामने केले और पैसे रख दें, तो वह केले लेने के लिए लपकेगा, क्योंकि वह नहीं जानता कि पैसे से केले खरीदे जा सकते हैं। इसी प्रकार, अगर इंसान के सामने पैसा और ज्ञान दोनों साथ रख दिए जाएं, तो वही पैसा उठा लेगा, जो बेखबर है कि शिक्षित और ज्ञानी होकर निस्संदेह ज्यादा पैसा और खुशहाली कमा सकते हैं। इटली के महान चित्रकार लिओनार्दो दा विंची के साथ-साथ हर शिक्षित की राय है कि समझदार इंसान सिर्फ और सिर्फ ज्ञान की ख्वाहिश रखता है।
इसलिए दुख के दिनों को भूलते जाने में ही समझदारी है। पतझड़ की कहानियां सुन-सुन कर उदास होने से कुछ नहीं बदलेगा। नए मौसम का पता ढूंढ़ना चाहिए। जो बीत गई, सो बात गई। तय है कि ग्रीष्म ऋतु जितना सताएगी, वर्षा ऋतु उतना ही आनंद देगी। पतझड़ के बाद वसंत भी सुहावना मौसम बन कर आता है। लेकिन कष्टदायक और खुशनुमा दिन अपने-अपने समय पर ही आते-जाते हैं। सच है कि दुख है, तभी सुख है। सुख के दिन बेशक फुर्र से उड़ते हैं, जबकि दुख घिसटते-घिसटते ही जाता है।
जब-जब चुनौतीपूर्ण हालात पैदा होते हैं, तब-तब इंसान अपनी सामान्य अवस्था से ऊपर उठ कर, बहुत अधिक बेहतर बन सकता है। कह सकते हैं कि जितना बड़ा दुख, उतना ही क्षमतावान इंसान। इसी आशा का भाव मन में सदा संजोए रखना सुकून देता है कि जीवन के सबसे सुखद दिन अभी आने बाकी हैं। इसी आशा के साथ चल कर तरक्की मुमकिन है। दृढ़ विश्वास बांधे रखना चाहिए कि हर दौर और हालात में इंसान अपना विधाता खुद बनता है। अगर खुद पर भरोसा और नित्य सीखने की ललक नहीं है, तो कोई किसी को सफल नहीं कर सकता।
खुद पर अटूट विश्वास से ही राहें निकलती हैं। इंसान को कतई हार नहीं माननी चाहिए और समस्याओं से खुद को हराने नहीं देना चाहिए। ओशो इसकी यों व्याख्या करते हैं- ‘हम जिसके लिए लड़ते हैं, आखिर वही हम हो जाते हैं। लड़ो खूबसूरती के लिए, तो तुम खूबसूरत हो जाओगे। और लड़ो सत्य के लिए, तो तुम सत्यवान हो जाओगे। लड़ो श्रेष्ठ के लिए तुम सर्वश्रेष्ठ हो जाओगे।’ इसी प्रकार, खुशहाल होने के लिए लड़ोगे, तो पक्का खुशहाल हो जाओगे। मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने फरमाया ही है- ‘खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है।’