हमारे शब्द और उनकी अभिव्यक्ति हमको अपने भाव प्रकट करने में मदद करते हैं। अपने विचार को शब्द देकर हम अपने मन की जकड़बंदी से मुक्त होता हुआ-सा महसूस करते हैं। अपने शब्दों को गौर से देख कर ही हम यह कह सकते हैं कि इनका कोई अंत नहीं है। मिसाल के तौर पर किसी की तारीफ करने के लिए हमारे पास अनगिनत शब्द मौजूद हैं। किसी से प्रभावित होकर उसके काम के लिए हमारे मुंह से तारीफ की झड़ी लग ही जाती है- कमाल, शानदार, अद्भुत, अद्वितीय, अलौकिक, बहुत बढ़िया, क्या बात है, क्या कहना, लाजवाब आदि। शब्द एक के बाद एक अभिव्यक्त होते चले जाते हैं। यह सुनकर किसी को भी अच्छा लगता है। खुशी की लहर जाग उठती है। आगे जाकर और अच्छा काम करने का उत्साह जाग जाता है।
उसी तरह कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके पास एक पर्याप्त शब्दकोश होता भी है, मगर वे मितभाषी होते हैं। जनसंपर्क में इतने कुशल नहीं होते। वे खुलकर अपने शब्दों को आवाज नहीं दे पाते हैं। कारण यह है कि वे लोग अपने काम में मगन और खामोश रहते हैं। मगर इनके मौन रहने से इतना नुकसान कभी नहीं होता, जितना वैसे लोगों की मुखरता से हो जाता है जो बस बोलते ही जाते हैं।
शब्दों ने किसी को अगर कुछ नैतिक बल दिया है तो बहुत कुछ लिया भी है। हम आए दिन देखते हैं कि हमारे आसपास कुछ लोग शब्दों को बरतने में चूक कर जाते हैं। वे कोई एक ऐसा शब्द कह देते हैं कि मन की तकलीफ बढ़कर सौ गुना हो जाती है। किसी विचारक ने कहा भी है कि तन के दर्द से मन की पीड़ा सौ गुना ज्यादा दुख देती है। उदाहरण के लिए, चुनाव प्रचार के समय नेताओं के शब्द, यानी उनके वादे। मगर जब ऐसे शब्द या वादे खोखले साबित होते हैं तो बहुत उदासी महसूस होती है और दर्द होता है। यह बेवजह नहीं है कि नेताओं के शब्द पर एक लतीफा तक बन चुका है कि नेता यह बता सकते हैं कि कल क्या होगा… अगले पांच साल में क्या क्या होगा..! उसके पांच साल बाद वे यह भी कुशलता से बता सकते हैं कि ऐसा क्यों नहीं हुआ। कहा जाता है कि राजनीति का सारा खेल शब्दजाल ही है। जनता की तालियों के बीच नेता बोल कर चल देते हैं, पर जनता उन्हीं शब्दों से कितनी छलनी होती है, इससे किसी को कुछ भी लेना-देना नहीं होता।
सुकरात ने कहा था कि शब्द का गलत उपयोग आत्मा में बुराई उत्पन्न करता है। वे एक के बारे में नहीं, समूचे समाज की बात कर रहे थे। शब्द का गलत उपयोग करना वह है जो महज स्वार्थ और प्रचार के लिए किया जाता है, मुनाफे के लिए, बिना यह जिम्मेदारी लिए कि शब्दों का क्या मतलब है। जब भाषा का उपयोग शक्ति प्राप्त करने या पैसे कमाने के लिए किया जाता है, तो वह गलत होता है। यह झूठ बोलना अनेक जीवन को दुविधा में डाल देता है। हालांकि राजनीतिक फायदा उठाने वालों की सोच, छल, नकारात्मक सोच से अब लोगों ने उनके शब्दों को गंभीरता से लेना बंद कर दिया है।
अब समस्या शब्द की नहीं, संप्रेषण की भी हो चली है। जीवन पर हावी तकनीक की दुनिया में ‘इमोजी’ ही शब्द बनती जा रही हैं। इसके आगे सारे शब्द बेअसर, बेचारे, अनुपयोगी बन कर रह जाते हैं। लोग अब मोबाइल संदेशों में बात करते हुए शब्दों का इस्तेमाल कम करते हैं। मगर आत्मीयता के चिह्न तो केवल शब्द में ही पाए जाते हैं। शब्द वास्तव में ताकत के प्रतीक होते हैं। इसीलिए शब्दों की महिमा को अपरंपार और अक्षर को नश्वर बताया गया है। शब्दों की धार तलवार से भी ज्यादा तेज होती है। तलवार की धार से एक बार आदमी भले ही बच जाए, मगर शब्द की मार उसे कहीं का नहीं छोड़ती। यही कारण है कि संभलकर बोलने और उपयुक्त शब्द इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। जो संभलकर बोलेगा, वह वाहवाही भले न लूटे, पर जीतेगा वही, यह तय है। संसार पर राज वही करता है जो अपने शब्दों का सही इस्तेमाल जानता है और कब, कहां, क्या शब्द बोला जाए, इसे समझता है। हमारे बुजुर्ग भी हमेशा यही कहते हैं कि कभी भी किसी को दिल दुखाने या चुभने वाली बात न करें। सच यह है कि समय बीत जाता है, वह मौका भी चला जाता है, पर बातें यानी शब्द याद रहते हैं।
आजकल कुछ अभिभावक भी अपने बच्चों के प्रति चिंता के कारण उनसे कुछ न कुछ बेमानी बोल देते है। दरअसल. वे बालक के पालक हैं। उनके मन में ममता है, इसलिए उनके शब्द हमेशा हृदय से निकलते हैं। उनके मन में अपनी संतान के लिए असल नाराजगी नहीं होती। इसलिए अपने बच्चों के लिए उनका वह गुस्सा बस शब्दों में होता है, हृदय में नहीं। मगर कई बार बच्चे इसे समझ नहीं पाते और कोई गलत कदम तक उठा लेते हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं कि जब माता-पिता ने बच्चे को सत्रह अठारह साल बहुत ही प्यार से पाला-पोसा, उसकी हर इच्छा पूरी की। मगर एक पल में कभी कोई मतभेद हुआ या अभिभावक ने कुछ कहा तो कई बार वह घर छोड़ कर ही चला जाता है।
कबीर का कहना है कि मनुष्य को हमेशा सोच-समझकर ही बोलना चाहिए। मधुर वाणी और अच्छे स्वर में बोला बोला जाने वाला हर एक शब्द अच्छा लगता है। ऐसे शब्द सुनने वाले के लिए औषधि का काम करता है। इसके विपरीत अगर मनुष्य कड़वे शब्द बोलता है तो कटु वाणी में बोला गया शब्द कभी-कभी सुनने वाले को आघात पहुंचा सकता है।