चैतन्य नागर
अक्सर ऐसी जानी-मानी हस्तियों की तस्वीरें दिख जाएंगी, जो साठ साल की उम्र या उसके आसपास होने के बावजूद बेहद स्वस्थ और किसी युवक की तरह चुस्त-दुरुस्त दिखते हैं और सेहत के प्रतीक बन जाते हैं। दूसरी तरफ ऐसे लोग भी दिख जाते हैं, जो अरबों कमाने के बाद भी सेहत से इतने परेशान होते हैं कि कम उम्र में ही किसी का कुर्सी से उठ कर अभिवादन भी नहीं कर पाएं। मधुमेह, खराब गुर्दे के कारण चलना भी मुश्किल हो जाता है। धन, सेहत, शोहरत- सबकी अपनी-अपनी भूमिका है जीवन में, लेकिन बहुत कम लोग हैं जो संतुलित तरीके से जी पाते हैं, जिनके पास जरूरत के हिसाब से अधिक धन भी हो, सेहत और सुकून भी।
अमीरी के कई सकारात्मक पहलू हैं, पर आमतौर पर अमीर सृजनात्मक नहीं होते
दरअसल, अमीरी और समृद्धि एक ही चीज नहीं है। बहुत अमीर व्यक्ति कई आतंरिक क्लेश से पीड़ित रह सकता है। हो सकता है, उसका कोई साथी न हो। अमीरी के कई सकारात्मक पहलू हैं। पर आमतौर पर अमीर उतने सृजनात्मक नहीं होते और सृजनशील लोगों को पैसों की तंगी बनी रहती है। जीवन की बुनियादी जरूरतें पूरी करने के अलावा धन हमें जीवन के अन्य लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करता है। परिवार के लोगों की शिक्षा, इलाज, यात्रा वगैरह की जरूरतें भी पूरी करता है। पैसा हमें ज्यादा स्वतंत्र भी बनाता है, हमारी प्रतिभा को खिलने का अवसर देता है। इसकी मदद से हम दुनिया की कई खूबसूरत जगहों पर जा सकते हैं। लेकिन उनका आनंद लेने के लिए जिस फुर्सत और जिज्ञासु मन की दरकार है, वह शायद पैसा छीन लेता है। धन की अपनी अनगिनत सीमाएं हैं।
दूसरों के जीवन में सार्थक बदलाव लाने की ताकत देता है धन
धन दूसरों के जीवन में सार्थक बदलाव लाने की ताकत देता है, पर धनी लोग अक्सर कृपण भी हो जाते हैं। धन स्वाभाविक रूप से इंसान को दरियादिल नहीं बनाता। यह रिश्ते बनाने का समय और अवसर दे सकता है, पर उन्हें बनाए रखने की जगह, इसके लिए आवश्यक समानुभूति और स्नेह नहीं खरीद सकता। अक्सर धन और उससे जुड़ी भागमभाग लोगों को क्लांत, पलायनवादी, आत्मकेंद्रित और एकाकी बना डालता है।
‘हमारी बुनियादी जरूरतें पूरी हो जाएं तो बहुत अधिक धन बहुत ज्यादा खुश नहीं करता’
धन से संपन्न और भीतर से विपन्न लोगों की कहानियां अक्सर हम इधर-उधर पढ़ते सुनते रहे हैं। एमहर्स्ट कालेज के मनोविज्ञान की प्रोफेसर कैथरीन सैंडरसन ने लिखा है, ‘हम हमेशा सोचते हैं कि अगर थोड़ा अधिक धन होता, तो हम अधिक खुश होते, पर जब हमें वह धन मिल जाता है तो हम सुखी नहीं होते।’ इसी तरह हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डैन गिल्बर्ट का कहना है कि ‘एक बार हमारी बुनियादी जरूरतें पूरी हो जाएं तो बहुत अधिक धन हमें बहुत ज्यादा खुश नहीं करता’। गिल्बर्ट की किताब ‘स्टमब्लिंग आन हैप्पीनेस’ काफी मशहूर है।
महंगी चीजों से शुरुआत में तो हम उत्तेजना का अनुभव करते हैं, पर जल्दी ही उनकी आदत पड़ जाती है। इसके बाद खोज होती है, अधिक महंगी चीजों की, और अधिक उत्तेजना की। धन का प्राचुर्य मन को एक मायाजाल में फंसा देता है। यह गहरी प्रज्ञा को जन्म नहीं देता। यह हमारे भीतर कामना, तृष्णा की प्रकृति को समझने की ललक पैदा नहीं करता। इच्छाओं की ‘ट्रेडमिल’ पर बस हम हांफते-भागते चले जाएं और अचानक हृदयाघात का शिकार होकर गिर पड़ें, शायद धन का देवता इसी ‘मनोरंजक क्षण’ की प्रतीक्षा में रहता है! अर्थशास्त्री इसे ‘हेडोनिक ट्रेडमिल’ कहते हैं। समस्या धन से अधिक हमारे भीतर है।
शास्त्रों में जीवन के चार तत्त्व चिह्नित किए गए हैं- अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष। इनमें अर्थ या धन सबसे निचली सीढ़ी पर आता है। शायद जीवन की कला इन चारों तत्त्वों के बीच संतुलन और समन्वय में ही है। शेली अपनी एक मशहूर कविता में कहते हैं- ‘जो नहीं होता हम उसके लिए ही तड़पते हैं’। अमीर सेहत के लिए, सेहतमंद लोग धन के लिए और गरीब बुनियादी जरूरतों के लिए बेचैन रहता है। आवश्यकताओं का भी एक अधिक्रम होता है। एक के बाद दूसरी, फिर तीसरी। एक अंतहीन सफर है कामनाओं का।
कितने पैसे जरूरी हैं, यह सवाल तो बना रहेगा, पर पैसे के लिए हम कितनी कीमत चुका रहे हैं, यह भी एक बड़ा सवाल है। ऐसा न हो कि धन के लिए अपना जमीर, दिलोदिमाग, अपनी आत्मा गिरवी रख देना पड़े। संतुलित मानसिक अवस्था ही सबसे बड़ा धन है। जीवन में किसी भी एक वस्तु के लिए अपना सब कुछ स्वाहा न कर देने वाली प्रज्ञा जिनके पास है, शायद वही धनी है और समृद्ध भी।
मशहूर शख्सियत स्टीव जाब्स ने आखिरी वक्त में लिखे एक लेख में कहा था- ‘कारोबार की दुनिया में मैं शिखर पर पहुंचा, पर जीवन में काम के अलावा मेरे पास कोई सुख नहीं। मेरी संपत्ति बस एक तथ्य है मेरे जीवन का, जिसका मैं आदी हो चुका हूं। इस पल मैं, अपने बिस्तर पर पड़ा हुआ, इस बात को समझ रहा हूं कि मेरी शोहरत और संपत्ति, जिन्हें लेकर मुझे इतना गर्व था, सब कुछ धुंधला हो चुका है, मौत के सामने सब कुछ निरर्थक हो गया है’। एक गरीबी रेखा होती है। अमीरी की भी कई रेखाएं होती हैं।