सीमा श्रोत्रिय

जीवन में भावनाएं महत्त्वपूर्ण हैं और इसी कारण मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण की दिशा भी इनसे बनती-बिगड़ती है। हम जितनी जल्दी अपनी या किसी की भावनाओं का अनुमान लगा सकें, उतना अच्छा रहेगा। जो आदमी दूसरों की भावना का आदर करना नहीं जानता, उसकी दूसरों से सद्भावना की आशा व्यर्थ है।

मोटे तौर पर धैर्य और मौन जिंदगी के शक्तिशाली हथियार हैं। धैर्य जहां मानसिक ताकत देता है, वहीं मौन भावनात्मक रूप से ताकतवर बनाता है। प्रेम को समझाना है तो तन की नहीं, मन की आंखें खोलनी चाहिए, क्योंकि सच्चा प्रेम रूप से नहीं, भावना से जुड़ा मिलेगा। अगर सकारात्मक भावना की समझ है तो हम जीवन के हर पल का आनंद लेंगे, चाहे वह दबाव हो या खुशी।

काम से ज्यादा उसके पीछे की भावना का महत्त्व है। कभी-कभी अपराध की भावना मनुष्य में तब उत्पन्न होती है, जब वह खुद को समाज से उपेक्षित महसूस करता है। व्यक्ति किसी के पास तीन कारणों से आता है- भाव से, अभाव से और प्रभाव से। अगर भाव से आया हो तो उसे प्रेम देना चाहिए, अभाव से आया हो तो मदद करनी चाहिए और अगर प्रभाव से आया हो तो प्रसन्न हो जाना चाहिए।

भावनाएं हमें आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और क्रियात्मक तौर पर प्रभावित करती हैं। आध्यात्मिक जीवन में ध्यान के द्वारा हम अपने आपको स्वतंत्र कर लेते हैं, जिसमें ईश्वरीय स्वरूप की अनुभूति होती है। भक्ति में भावना प्रधान है। आदमी साधनों से नहीं, साधना से श्रेष्ठ बनता है। इसी तरह भवनों से नहीं, भावना से श्रेष्ठ बनता है और उच्चारण से नहीं, उच्च-आचरण से श्रेष्ठ बनता है। अच्छी सोच, अच्छे विचार और अच्छी भावना मन को हल्का करती है। हम सकारात्मक भावनाओं से उद्वेलित हैं तो लाभ में रहेंगे। नकारात्मक भावनाओं के नियंत्रण में हैं तो क्षति उठानी पड़ेगी।

मन की भावना को संभालने वाला इंसान हमेशा जिंदगी की ऊंचाइयों में सबसे ऊपर होता है। मित्रता और रिश्तेदारी सम्मान की कम, भाव की भूखी ज्यादा होती है, बशर्ते लगाव दिल से होना चाहिए, दिमाग से नहीं। तभी कहा जाता है कि रिश्तों की सिलाई भावना से हुई है तो टूटना मुश्किल है और अगर स्वार्थ से हुई है तो टिकना मुश्किल है।

यथार्थ में भावना हमारे रिश्तों को संभालती है, अन्यथा हम स्वार्थ की कश्तियों को संभालने में ही लगे रहते हैं। रिश्तों में भावना से ही संभावनाएं बनती हैं। रिश्ते बरकरार रखने की शर्त है कि भावना देखें, संभावना नहीं। निस्संदेह दूरियां किसी रिश्ते को नहीं तोड़ सकतीं और नजदीकियां कभी रिश्ते नहीं बना सकतीं। अगर भावनाएं सच्चे हृदय से हों तो रिश्ते रिश्ते रहते हैं, फिर चाहे वे मीलों दूर क्यों न हों।

अपने-पराए की पहचान यही है कि जो भावनाएं समझे, वह अपना और जो उन्हें न समझे, वह पराया। जो दूर रहकर पास हो, वह अपना और जो पास रहकर दूर हो, वह पराया। जिंदगी को देखने का सबका अपना-अपना नजरिया है। इसीलिए जिसको हमारी जरूरत न हो, उसको जबरन प्रेम प्रदर्शित न करें, क्योंकि वहां हमारे साथ हमारी भावनाएं कुचली जाएंगी।

मन के भाव भावनाओं पर टिके हैं। मन का भाव सच्चा है, उसका हर काम अच्छा है। वस्तु का जिस भाव से चिंतन किया जाता है, वह उसी प्रकार अनुभव में आने लगती है। भावनाएं चुप रहकर छिपा सकते हैं, लेकिन भूल जाते हैं कि हमारी आंखें बहुत कुछ बोल देती हैं। भावनाओं का कहां द्वार होता है, जहां मन मिले, वहीं हरिद्वार होता है। हमारी इच्छाएं जैसी होती हैं, वैसी भाव-भंगिमाएं मुख-मंडल पर दिखाई देने लगती हैं।

कहते हैं कि भाषाओं का अनुवाद हो सकता है, भावनाओं का नहीं। उन्हें तो बस समझना पड़ता है। भावनाएं शब्दों से प्रकट होती हैं। हर बात दिल से लगाई जाएगी तो रोते रहना पड़ेगा। इसलिए सुखी रहने के लिए ज्यादा भावुक नहीं बनना चाहिए और हर बात को दिल से नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि लिखने वाला भावनाएं लिखता है और लोग केवल शब्द पढ़ते हैं।

व्यक्ति के भीतर भावनाएं वास्तव में आंतरिक संदेश देती हैं कि हम जिस स्थिति में हैं या हम जो कर रहे हैं, वह हमारे हमारी मान्यताओं और इच्छाओं के निमित्त है या नहीं। भावनाएं अतरात्मा को अभिव्यक्त करती हैं। कई बार अच्छी भावनाओं से वे कार्य सिद्ध हो जाते हैं, जिनमें हम निपुण नहीं होते। वहीं, नकारात्मक भावनाओं से वह कार्य भी पूर्ण नहीं कर पाते, जिनमें हम पारंगती का गुमान पाले रहते हैं।

अपनी भावनाओं को संतुलित और नियंत्रित रखना जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक है। बुरी भावनाओं से निपटने का सबसे आसान उपाय है उन्हें समझना, न कि उन्हें नकारना या उनके साथ बहना। सबसे पहले हम खुद से यह पूछें कि हम जो भावना महसूस कर रहे हैं, वह क्या है, कैसी महसूस हो रही है और वह हमें क्या बताना चाहती है! उसकी प्रकृति और स्वरूप को समझकर हमें उसके साथ संतुलन बनाना चाहिए। कई बार भावनाओं के अतिरेक में बहकर हम अहित कर बैठते हैं। इसलिए भावनाओं के प्रवाह की थाह से कोई सही राह चुनना ही समझदारी है।