राजेंद्र मोहन शर्मा

नया वर्ष जिस तरह इस बार आया है, उसी तरह फिर आएगा और जाएगा। यह पहली बार नहीं बदल रहा है, न ही आखिरी बार। रुकना चाहिए कि न यह कयामत की रात है, न ही दुनिया मिटने का वक्त। हां, फिर भी यह है तो नया वक्त। समय चक्र में प्रवहमान मनुष्य अपनी गरिमा, सौंदर्यबोध, रहस्य और मानसिक सोच को बयां करता ही है। मनुष्य के जीवन में शरीर विज्ञान, साहित्य-कला में सबकी अपनी-अपनी परिभाषा है। वैसे व्यक्ति के मन की आंखों से सब बयां हो ही जाता है। फिर चाहे वह आश्चर्य, रहस्य, हिंसा, प्रतिहिंसा, प्रतिशोध, क्रोध, आक्रोश या असहमति हो या हो असीम शांतिभाव, सकून, भक्तिभाव, मैत्रीपूर्ण संबंध, आस्था, प्रेम, प्यार, आकर्षण की सकारात्मकता, सम्मान, संवेदनात्मक भाव की अभिव्यक्ति। व्यक्ति के व्यक्तित्व के गुणों की झलक इनसे दिखाई दे ही जाती है।

मन ही है गुण-अवगुण रहस्य का दर्पण। वक्त ही वह झरोखा है, जो अंतर्मन को अभिव्यक्त कर उसे अर्थपूर्ण परिभाषित प्रदान करता है। विज्ञान तकनीक, मनोविज्ञान और आचरण विज्ञान ने सभी रहस्य और आधुनिक विज्ञान अनुसंधान ने आधुनिक वक्त के सभी रहस्य बयां कर ही दिए हैं और यह क्रम सतत जारी है।

याद रखना चाहिए कि फिर भी होगा बहुत कुछ अच्छा

इसी नए वक्त के साथ हम देखें कि समय भी बदलेगा कैलेंडर, तिथियां, सब बदल जाएंगे। पर क्या दिशाएं भौगोलिक स्थितियां और सारे नक्षत्र भी बदल जाएंगे नव वर्ष के साथ? दरअसल हम बैठे रहें या चलते रहें, संबंधों को सहेजे रहें या यादों के पहाड़ लिए रहें, कुछ तो है जो यथावत नहीं होगा। हां, हो सकता है कि किसी का साथी उसे हासिल हो गया होगा और किसी का साथी कहीं और जा चुका होगा। हो सकता है कुछ मित्र अमित्र हो चुके होंगे, पैसा भी घट या बढ़ सकता है। लेकिन यकीन रखना चाहिए कि फिर भी होगा बहुत कुछ नया जो पहले कभी न हुआ। नया वर्ष चिड़िया नहीं हैं जो सदा चहचहाता रहेगा। न ही यह तन पर चिपका अपना कोई कपड़ा है, जो फटने पर भी साथ नहीं छोड़ता।

इसलिए इस नए वर्ष में अनगिनत संभावनाओं और आशंकाओं के बीच में खुद की खुद के लिए तैयारी करते रहना चाहिए। अपनी हताशा को हटाकर स्वागत करना होगा नए वर्ष का। शायद मौसम बदल जाए, कोई प्रेम कहीं खिल जाए, जिंदगी अभी और सकुशल चल जाए। ‘धर दीनी चदरिया ज्यों की त्यों धर दीनी’ ये भाव कबीर का था। लेकिन कुछ महाज्ञानी भी जब यही दावा दोहराएं तो समझ जाइए कि यहां दिखाने के दांतों से चदरिया हटाई है, बाकी खाने के दांतों से तो वे चबाए जा रहे हैं। और मौका पाते ही उसी चादर की पोटली बांध कर ले जाने को तैयार बैठे हैं। यह दूसरी बात है कि जैसे शादी या ब्रह्मचर्य, आदमी चाहे जो भी रास्ता चुन ले, उसे बाद में पछताना ही पड़ता है। वैसे ही चदरिया ओढ़ें या धर दें, पछतावा तो होना ही है।

अनुभव बताता है दुनिया उन्हीं की खैरियत पूछती है जो पहले से खुश हों। जो तकलीफों का रोना रोते हैं, उनके तो फोन नंबर तक खो जाते हैं लोगों से। बस याद रखने की जरूरत है कि किसी भी हाल में खुद को कभी बिखरने मत देना है। लोगों का क्या? लोग तो गिरे हुए मकान की र्इंटें तक ले जाते हैं। आस्था और नैतिकता का लबादा ओढ़े अजीब तरह के लोग हैं इस दुनिया में। अगरबत्ती भगवान के लिए खरीदते हैं और खुशबू खुद की पसंद की ले जाते हैं। इसलिए लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं, अगर यह भी हम ही सोचेंगे तो लोग क्या सोचेंगे। हमें अपना काम करना चाहिए और लोगों को अपना काम करने देना चाहिए। समय की घाट एक खामोश पत्थर है, जिसने नदी के हजार नखरे देखे हैं, लेकिन जिंदगी का जिंदगी से वास्ता जिंदा रहे। हम रहें जब तक हमारा हौसला जिंदा रहे।

याद रखने की जरूरत है कि जो कभी संघर्ष से परिचित नहीं होता, इतिहास गवाह है वह कभी चर्चित नहीं होता। यह हमेशा मजेदार है कि जो निशुल्क है, वही सबसे ज्यादा कीमती है। नींद, शांति, आनंद, हवा-पानी और सबसे ज्यादा हमारी सांसें। अच्छे लोगों की संगत में रहना चाहिए, क्योंकि सोने-चांदी के दुकानदार कचरा भी किराने की दुकान पर बिकने वाले बादाम से महंगा होता है। आदमी विकास की रफ्तार बढ़ा कर जंगल को छोड़ आया कब का। मगर जिंदगी में कुछ भी न बदला। उससे उम्मीद क्या हो, जिसने उम्र काटी हो खातों में और बही में। औपचारिकता छोड़ कर मस्ती में आ जाइए। ये आरती-अजानें याद सबको है, लेकिन बिसरा दिया खुदा को लोगों ने बंदगी में। इतिहास में हम रो चुके थे, जिनको कब्रों में दफ्न करके वे लम्हे हंस रहे हैं इस दौर की सदी में। मस्तमौला जिंदगी तो यह है कि उतने ही ठहाके लगाएं खुल कर, जितना दुखों ने आपको धकेला हो बेबसी में।