महेश परिमल
पिछले वर्ष के अंत में हममें से बहुत सारे लोगों ने कई छोटे-बड़े संकल्प लिए होंगे। कई योजनाएं बनाई होंगी। कई सपने देखे होंगे। नए-नए विचारों को पाने के लिए नए विकल्प तलाशे होंगे। हमने तय कर लिया होगा कि नए वर्ष के शुरू होते ही हम नई ऊर्जा के साथ अपने संकल्पों की यात्रा को यादगार बनाएंगे। नए वर्ष के आते ही हमने उस पर अमल करना शुरू भी कर दिया होगा।
पर सप्ताह भर बीतते-बीतते हमारे संकल्पों के सारे तटबंध टूटने लगे होंगे। जीवन के वास्तविक धरातल पर रहकर हमने अपनी आंखों से देखे कि किस तरह से संकल्पों का अवसान होता है। कैसे सिर्फ नाम के लिए किए गए संकल्प दरकिनार हो जाते हैं। यह जिंदगी का उसूल है कि संकल्प को पूरा करने के अवसर बहुत कम मिलते हैं। इसके विपरीत संकल्पों को तोड़ने उसे पूरा न होने देने के लिए अवसर बहुत होते हैं।
अक्सर ऐसा ही होता है जब हम कोई नया काम शुरू करने को होते हैं, तो उसमें हिम्मत बंधाने वाले कम, लेकिन अड़ंगा लगाने वाले कई लोग सामने आ जाते हैं। कई लोग तो भविष्यवाणी तक कर देते हैं कि इस काम में आप कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे। कई लोग ऐसे दावे लिखकर भी दे देते हैं। पर बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो हमारे सिर पर अपना हाथ रखकर अपने होने का अहसास दिलाते हैं।
ऐसे लोगों की बदौलत ही हम उस काम को शुरू करते हैं और यह तय है कि वह काम धीरे-धीरे अपनी पहचान बनाता है। इसलिए शुरू में कामयाबी नहीं मिलती। इसमें धैर्य रखना होता है। हालांकि यह सच है कि लोगों के उलाहने सुनकर कई बार धैर्य भी धराशायी होने लगता है। यही समय होता है, जब हमें संभलने की आवश्यकता होती है। अगर इस समय नहीं संभल पाए, तो समझ लेना चाहिए कि हम कामयाबी को छूकर लौट आए।
अगर हमने नया काम शुरू किया है और लोग हमारी आलोचना कर रहे हैं, हमें फटकार रहे हैं, काम करने से रोक रहे हैं, तब हमें यह समझना चाहिए कि हम निश्चित रूप से कुछ ऐसा कर रहे हैं, जो पहले कभी नहीं हुआ। इस दौरान हम एक छोटा-सा संकल्प ले सकते हैं कि अपने काम से काम रखेंगे। दुनिया वाले कुछ भी कहें, हम अपना रास्ता नहीं छोड़ेंगे।
बस यहीं यह शुरू हो जाता है… हमारी कामयाबी का सफर। संकल्प की पहली शर्त यही है कि हम अपने आप तक ही सीमित रहें। हम अपने इस छोटे-से संकल्प को सदैव याद रखें। फिर हम स्वयं देखेंगे कि कामयाबी किस तरह से हमारे करीब आती है। अपने संकल्प को याद रखने का सबसे अच्छा तरीका है, उसे लिखकर अपनी सबसे जरूरी और महत्त्वपूर्ण जगह पर रख दिया जाए, ताकि रोज हमें हमारा संकल्प याद आ जाए।
संकल्प यानी अपने आप से किया जाने वाले वादा। दूसरों से किया जाने वाला वादा एक बार तोड़ा जा सकता है, भुलाया जा सकता है, पर अपने आप से किया गया वादा तोड़ना जरा मुश्किल होता है। इस वादे में समाई होती है हमारी चाहतें, आकांक्षाएं। अगर हम कभी खुद को ईमानदारी के आईने में देखें, तो पाएंगे कि हम जब भी नाकाम हुए हैं, उसमें हमारी ही कहीं न कहीं कोई गलती थी।
भले ही यह गलती हमने अनजाने में हुई हो। पर गलती की सजा तो मिलनी ही होती है। तब वह हमें नाकामी के रूप में मिल जाती है। अब इस विफलता से हमें क्या सीखना है, यह समय ही बताता है। हर विफलता अपने साथ नया अनुभव भी लेकर आती है। हमें विफलता पर कम और नए अनुभव पर अधिक विश्वास करना चाहिए। यह नया अनुभव ही हमें कामयाबी की मंजिल तक पहुंचाएगा।
बात संकल्पों से शुरू होती है, जो विफलता, वादा, धैर्य और अनुभव पर समाप्त हो सकती है। संकल्पों के तटबंध तभी टूटते हैं, जब हम उसके आधार को खो देते हैं। संकल्पों का आधार हम स्वयं ही हैं। खुद पर विश्वास करना, यानी सफलता की एक सीढ़ी चढ़ना होता है। इस पर पूरी शिद्दत के साथ चलना यानी हमने सफलता की ओर दूसरा कदम बढ़ाया। धैर्य को अपना साथी मान कर चलते चलना चाहिए, धीरे-धीरे हम मंजिल पा ही जाएंगे।
तब हमें लगेगा कि जिन लोगों ने हमें इस मुकाम तक न पहुंचने देने में अपना योगदान दिया, वास्तव में वे ही लोग अनजाने में हमारे साथी बने। जो हितैषी होते हैं, वे बोलते कुछ नहीं, बस अपने होने का अहसास कराते हैं। हमें हमारी राह में अवरोध उत्पन्न करने वाले ही चुनौती देने का काम करते हैं। हम उन चुनौतियों का सामना करते हैं, यही हमारी सफलता है। याद रखने की जरूरत है कि हर सफल व्यक्ति अपनी नाकामियों से ही कुछ न कुछ सीखता है।
