प्रभात कुमार
जिस दौर में विज्ञान अपने विकास की ऊंचाई पर पहुंचता और साबित करता दिख रहा है, जीवन के लगभग सभी क्षेत्र इससे प्रभावित और संचालित दिखते हैं, उसमें भी कई लोगों को यह कहते और मानते हुए देखा जा सकता है कि चमत्कार होते हैं। तांत्रिकों या बाबाओं के चमत्कारों को सही मानने वाले लोग हमें अपने आसपास ही मिल सकते हैं।
मगर इससे इतर एक दूसरे मोर्चे पर ‘चमत्कार’ अलग तरीके से जगह पा रहा है। विज्ञान के जरिए चमत्कार। हालांकि पहले भी जो चमत्कार होते रहे, उसके पीछे विज्ञान ही रहा, बस समस्या यह रही कि उन चमत्कारों में विज्ञान को परदे के पीछे रखा गया। दरअसल, विज्ञान की दुनिया में जगह बनाने के लिए मेहनत करनी जरूरी है। फिर बहुत से चमत्कार किए जा सकते हैं।
दूसरी ओर, इस सवाल का भी जवाब मिलना चाहिए कि विज्ञान के ज्ञान और चमत्कारों से मानवता का भला किस हद तक हो पाया। मौजूदा उदाहरण कृत्रिम बुद्धिमता है, जिससे परेशान होने की खबरें आनी शुरू हो गई हैं। इस बारे में भ्रम है कि नकली बुद्धि वाले इस इंसानी उत्पाद से नैसर्गिक बुद्धि वाले इंसान की किस्मत बनी या बिगड़नी शुरू हो गई!
क्या हम अपनी किस्मत या अच्छी किस्मत के कारण मेहनत करते हैं या निरंतर मेहनत ही हमारी किस्मत में होती है या किस्मत बना देती है? इस संदर्भ में एक मशहूर फुटबाल खिलाड़ी की बात याद आती है। जब उनसे पूछा गया कि क्या उनके द्वारा किए गए गोल किस्मत की देन हैं, तो उन्होंने कहा कि बिल्कुल, मैं जितना ज्यादा अभ्यास करता हूं, उतना ही किस्मतवाला बनता जाता हूं।
धन-दौलत, प्रसिद्धि, नौकरी, उच्च पद, यानी किसी भी तरह की सफलता मिल जाए तो उसे अच्छी किस्मत के साथ जोड़ दिया जाता है। एक नन्ही-सी जान के रूप में सभी बच्चे हर तरह की संभावना लेकर दुनिया में जन्म लेते हैं। वे ऊर्जा से भरे होते हैं। ज्यों-ज्यों उनका विकास होता है, अलग-अलग तरह के पारिवारिक माहौल, वित्तीय स्थिति, शिक्षा से उनमें विचार उगते हैं। उनका घर ही उनके जीवन की पहली वास्तविक पाठशाला होता है।
यह भी देखा गया है कि कितने ही मामलों में मेहनत बेचारी होकर रह जाती है और पारिवारिक, राजनीतिक, धार्मिक या अन्य किस्म के जुगाड़ कितनी ही किस्मतें बदल देते हैं। सामयिक जागरूकता, चतुराई और चपलता सफलता दिला देती है। यह माना जा सकता है कि सिर्फ मेहनत से काम करना काफी नहीं है, चुस्त और चौकन्नी मेहनत करना ज्यादा जरूरी है। ऐसे में मेहनत करने की शैली बहुत महत्त्वपूर्ण है। जीवन की परिस्थितियां सबसे बड़ी अध्यापक होती हैं। वे खूब सिखाती हैं। यह इस पर निर्भर है कि हम कितनी संजीदगी से सीखते हैं।
सफल लोगों के पास भी चौबीस घंटे होते हैं। उनकी किस्मत उनको एक लम्हा भी ज्यादा नहीं देती। वे जो भी करते हैं, इसी समय सीमा के भीतर करते हैं। यानी वे अपने समय का सदुपयोग करते हैं। ऐसा करना वे अपने अभिभावकों से सीखते हैं और अभिभावक वही सिखाते हैं, जो उन्होंने सीखा है। उस सीख में अपनी जिंदगी के सकारात्मक अनुभव जोड़ते जाते हैं।
किसी कारणवश जो लोग ऐसा नहीं कर पाते, अपनी किस्मत को दोष देते हैं। दरअसल, वे वक्त की नब्ज पर काबू नहीं रख पाते। ऐसा वे अपने हालात और पारिवारिक स्थितियों के कारण आत्मसात करते होंगे। अगर किसी व्यक्ति, स्थिति, घटना, प्रवचन या प्रेरक किताब से उनका नजरिया बदल जाए तो वे फिर से सफलता की राह पर निकल सकते हैं।
जिंदगी सभी को अवसर देती है। सवाल यह है कि क्या उन अवसरों को पहचान कर, स्वीकार कर वांछित प्रयास किए गए। उतनी मेहनत की, जितनी जरूरी थी या फिर अवसर पहचानने में नासमझी, देर या भूल हुई और अवसर हमारे हाथ से निकल गए! इसका विश्लेषण करना भी लाजिमी है। आजकल यह प्रवृत्ति भी जोर पकड़ती जा रही है कि हर क्षेत्र में भावी विजेता बच्चे का जन्म पारिवारिक या किसी प्रसिद्ध ज्योतिषी के बताए शुभ समय पर करवाएं, ताकि नवजात के साथ उच्चकोटि की शानदार और जानदार किस्मत भी जन्म ले ले। अब तो ज्यादातर कामकाजी माताएं शिशु जन्म से पहले होने वाला दर्द सहना नहीं चाहतीं। अस्पताल की दवाई लेने की कोशिश करती हैं, फिर आपरेशन से बच्चे का संसार में प्रवेश होता है। इससे अभिभावकों के अभिभावक भी सांसारिक रूप से सुरक्षित महसूस करते हैं।
भारतीय परिवेश में किस्मत बनाने के लिए ठोस उपाय बताने वालों की काफी सक्रिय भूमिका रहती है। यह भी दिलचस्प है कि भाग्य बनाने के लिए महंगे से महंगे रास्ते उपलब्ध हैं। इंसान जब अपने हिसाब से मेहनत कर परेशान हो जाता है, उसे मनचाहा फल नहीं मिलता तो वह भाग्यवादी होकर, मजबूरन इन रास्तों पर चलना शुरू करता है। वह दूसरों की मेहनत और जुगाड़ों के साथ अपने प्रयासों की तुलना नहीं करता, इसलिए उसके जीवन में कुंठा और निराशा की अस्वादिष्ट खिचड़ी पकती रहती है।
किस्मत बनाए रखने में राजनीति की काफी सक्रिय भूमिका देखी गई है। हमारे देश में मतदाताओं की किस्मत को राजनीति ने संभाला हुआ है। उन्हें निवाला दिया जा रहा है और किस्मत शासकों की पकाई जा रही है। इसमें राजनीतिक कौशल के कुशल प्रबंधन की मेहनत की संजीदा भूमिका है। मेहनत का रास्ता मुश्किल है, लेकिन यह हर मुश्किल का हल है। मेहनत का कोई विकल्प नहीं। मेहनत कर लें तो किस्मत चाहे न बदल पाएं, लेकिन जिंदगी बना सकते हैं और बदल भी सकते हैं।