मुझे अपने बारे में और बताइए’, अगर आपसे यह सवाल पूछा जाए, तो जवाब क्या होगा? बताएंगे कि आप क्या करते हैं या आप इस बारे में बात करेंगे कि आप कौन हैं? बहुत कम लोग वास्तव में खुद को जानने के लिए समय निकालते हैं। वे जीवन भर लगातार चीजों का पीछा करते रहते हैं। पैसा, प्रतिष्ठा, आराम और आनंद, ये सबको चाहिए। वे आमतौर पर अपने भीतर के आत्म और उसकी वास्तव में जरूरतों की उपेक्षा करते हैं। खुद को जानने और प्रामाणिक रूप से जीने में बहुत शक्ति है।
सुकरात ने भी सहस्राब्दियों पहले कहा था- ‘खुद को जानना ज्ञान की शुरुआत है।’ खुद को जानने का मतलब है कि आपकी ताकत और कमजोरियां क्या हैं और आपके लिए क्या महत्त्वपूर्ण है, यह समझना। यह आपके विचारों, भावनाओं और प्रेरणाओं के बारे में जागरूक होने के बारे में है, जो आपको बेहतर विकल्प बनाने और अधिक प्रामाणिक तथा पूर्ण जीवन जीने में मदद करता है। आपको आईने में देखना पसंद नहीं है। क्यों? लक्ष्य खुद की आलोचना करना नहीं है, बल्कि खुद के अलग-अलग हिस्सों को पहचानना है, अच्छे और बुरे दोनों ही।
हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो सूचनाओं, विचारों और एजंडों से भरी हुई है। जितना अधिक समय आप उन पर ध्यान केंद्रित करने में लगाएंगे, उतना ही वे आपके विचारों, व्यक्तित्व और कार्यों को आकार देंगे। दुनिया को यह तय नहीं करना चाहिए कि आप कौन हैं। यह पूरी तरह से आप पर निर्भर है। आपको अपने दिमाग में जो कुछ भी घुसने देना है, उसके प्रति सख्त होना चाहिए। आप ही एकमात्र इंसान हैं जो आपको संपूर्णता में जान सकते हैं। हर दूसरे व्यक्ति के पास आपके बारे में सिर्फ अपनी धारणाएं हो सकती हैं।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप सही निर्णय लें, यह पता लगाएं कि आप कौन हैं। जब आप खुद को जान जाते हैं, तो जीवन काफी आसान हो जाता है। यह भावना हमें जीवन में अपना रास्ता तलाशने और हमारे अनुभवों को अर्थ देने में मदद करती है। इसके बिना हम ‘खोया हुआ’ महसूस करते हैं। जब हम दूसरों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और खुद की उपेक्षा करते हैं, तो हम खुद को और अपनी जरूरतों को पहचानने और महत्त्व देने में विफल हो जाते हैं। हम शर्मिंदा और अयोग्य महसूस करते हैं और परिणामस्वरूप खुद के कुछ हिस्सों को दफना देते हैं। खुद को खोजना कोई लंबा-चौड़ा विज्ञान नहीं है, एक प्रक्रिया भर है।
प्रसिद्ध दार्शनिक लाओत्से ने लिखा है, ‘यदि आप दूसरों को समझते हैं, तो आप होशियार हैं। यदि आप खुद को समझते हैं तो आप प्रबुद्ध हैं।’ यदि आप अपने बारे में या अपनी पसंद, इच्छाओं, मूल्यों या व्यक्तित्व के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानते, तो जानिए आपके पास समस्याओं का पिटारा है। खुद को खोजने और परिभाषित करने की खोज कभी खत्म नहीं हो सकती। अगर आप खुद को समझ नहीं पा रहे हैं, तो कुछ खो रहे हैं, लेकिन ध्यान रहे कि पूर्ण आत्म-ज्ञान का सपना अप्राप्य है और इसे हठधर्मिता से प्राप्त करने से आप भ्रमित भी हो सकते हैं।
मनुष्यों की खुद को स्पष्ट और सटीक रूप से देखने की क्षमताएं सीमित हैं। कुछ व्यवहार और दृष्टिकोण अचेतन मन से उत्पन्न होते हैं, आपकी जागरूकता के क्षेत्र से बाहर। पूर्वाग्रह भी एक बाधा है। आत्म-ज्ञान की खोज तब भी मुश्किल होती है जब कोई व्यक्ति सोच-समझ कर, जानबूझ कर ऐसा करता है। ध्यान लगाना, समस्याओं को लिखना या खुद से कठिन सवाल पूछना बहुत फायदेमंद हो सकता है। लेकिन सक्रिय, सचेत आत्मनिरीक्षण का एक नकारात्मक पक्ष भी है- अत्यधिक चिंतन करना या किसी समस्या पर अड़े रहना। बार-बार उस पर विचार करना, जो चीजों को बदतर बना सकता है।
लोग अपने जीवन में अच्छी चीजों के बारे में बहुत अधिक सोच कर भी खुद को कमजोर कर सकते हैं। कभी-कभी लोग अपने मन में आने वाले कारणों के आधार पर अपनी भावनाओं के बारे में एक नई कहानी बनाते हैं। आत्मनिरीक्षण किसी पुरातात्विक खुदाई की तरह है, संभव है आप अपने बारे में ऐसा कुछ जान लें, जिससे अब तक नितांत अपरिचित थे। अथवा ऐसा भी हो सकता है कि आप को अपने बारे में ऐसा कुछ भी न मिले, जिस पर आप गर्व कर सकें या उससे शक्ति और प्रेरणा पा सकें। दोनों ही स्थितियों में आप यह जान जाएंगे कि आखिर आप क्या हैं।
जिस तरह एक अच्छे उपन्यास में एक ही सत्य नहीं होता, उसी तरह एक व्यक्ति में भी कई सत्य होते हैं। अपने बारे में पूरी तरह से सटीक कहानी की तलाश करने के बजाय (जो असंभव है), लोगों को एक ऐसी कहानी बनाने की कोशिश करनी चाहिए जो सकारात्मक और कुछ हद तक वास्तविकता पर आधारित हो। एक बार जब आप वास्तव में खुद को जान लेते हैं, तो कोई भी आपको आपके बारे में कुछ नहीं बता सकता। स्वयं को क्रियाशील होते हुए देखें, उसके बारे में जानें, उस पर नजर रखें, उसके प्रति जागरूक रहें। उसे नष्ट करने, उससे छुटकारा पाने या उसे बदलने की कोशिश न करें- बस उसे देखें, बिना किसी विकल्प या विकृति के।