मेघा राठी
जीवन में कुछ लोग ऐसे भी आते हैं जिनके बर्ताव और व्यवहार के कारण हम बहुत दुखी हो जाते हैं। कई बार तो बेहद अप्रिय स्थिति का सामना करते हैं और बहुत बार उनके द्वारा अपमानित भी महसूस करते हैं। फिर भी कई बार चाह कर भी हम वैसे लोगों से दूर नहीं हो पाते। हालांकि दिमाग बार-बार सचेत करता है कि अमुक व्यक्ति हमारे लायक नहीं। उसे हमारी कद्र नहीं है, हमारी भावनाओं को समझना उसके लिए जरूरी नहीं।
कई मौकों पर अपने साथ हुई अपमानजनक या दुखी कर देने वाली घटना कुछ समय तक बहुत बुरी लगती है, उससे दुख भी पहुंचता है। लेकिन इस तरह की घटना के कुछ समय व्यतीत होने के बाद हम फिर से उन बातों और व्यवहार को भूल जाते हैं या फिर परिस्थितियों को देखते हुए माफ कर देते हैं और अपने साथ अवांछित व्यवहार करने वाले को अपने जीवन में शामिल कर लेते हैं।
एक सामान्य, सहज और संवेदनशील व्यक्ति के लिए किसी को माफ कर देना एकदम स्वाभाविक है। मानवीय संवेदना वाले व्यक्ति से यही अपेक्षा की जाती है। लेकिन सवाल है कि आखिर इसकी सीमा क्या हो। आखिर ऐसा क्यों होता है कि कोई इंसान हमारे दुर्व्यवहार करने की वजह से हमारी नजरों से गिर जाता है, मगर कई बार वह हमारे दिल से नहीं उतर पाता। दरअसल, हमने उसे अपने जीवन में खुद से भी ज्यादा अहमियत दे दी होती है।
इतनी कि उसके आगे हमें हमारी अपनी तकलीफ भी कम लगती है। उसका हमारे जीवन में होना ज्यादा जरूरी लगने लगता है, अपने आत्मसम्मान से भी ज्यादा। जबकि यह गलत है। अगर हम सही हैं, निष्पक्ष होकर आपने विचार कर लिया है कि गलती हमारी नहीं है और हमें बेवजह ही अपमानित या प्रताड़ित किया गया है, तब हमें अपने स्वाभिमान पर भी कायम रहना आवश्यक हो जाता है। यह व्यक्तित्व की गरिमा के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि गरिमा और सम्मान से वंचित जीवन का मोल वही समझ सकता है, जिनसे यह छीना गया हो।
दरअसल, एक बार हम सहन करने की आदत डाल लेते हैं और विरोध नहीं करते हैं या फिर विरोध के बाद फिर कमजोर पड़ जाते हैं तो यह लगातार कई बार चलता रहता है तो यकीनन यह स्थिति हमारे साथ ताउम्र बनी रहेगी। हमारी मानसिकता और व्यवहार में घुल जाएगी। हमारा अपमान करना, हमें दुखी करना लोग जायज समझने लगेंगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि हम भावनाओं के हाथों मजबूर हैं। वे कुछ भी करें, कुछ समय की नाराजगी के बाद हम उनको क्षमा कर देंगे और इंतजार करेंगे फिर एक नए जख्म का।
सवाल है कि क्यों इंतजार करना अपनी तकलीफ के लिए! क्या हमारा अपने प्रति कोई कर्तव्य नहीं? खुद को खुश रखने की जिम्मेदारी भी हमारी खुद की है। कोई और हमें खुशी देने नहीं आएगा। खुद ही तलाशना होगा हमें अपनी प्रसन्नता का स्रोत और यह अन्य कहीं भी बाहरी जगत में नहीं मिलेगा। यह स्रोत हमारे ही अंदर है। अगर हम अपनी संवेदनाओं के साथ-साथ सम्मान की भी रक्षा कर सके तभी हमारी भावनाओं की अहमियत है।
अन्यथा हमारी भावनाएं दूसरों के जीवन का अवसर बन जाती हैं। किसी भी वजह से दुर्व्यवहार या अपना झेलते हुए खुद अकेला महसूस करने से बेहतर है कि खुद से दोस्ती की जाए, कुछ पल स्वयं के साथ बिताया जाए। प्रकृति के पास जाकर महसूस किया जाए उसकी संवेदनाओं को। उसमें अपनी खोज की जाए। अपनी तलाश हमें कई नई दुनिया से रूबरू कराता है। अपना चित्त को इतना दुर्बल कतई नहीं होने दिया जाए कि कोई हमारे निश्छल स्नेह को अपने हाथों का खिलौना बना ले।
यह समझना वक्त का तकाजा है कि जो भी इंसान हमारी अहमियत को नहीं समझता, उसे नजरों से उतारने के साथ ही साथ दिल से भी उतारने की जरूरत है। सही है कि यह बहुत आसान नहीं है, लेकिन प्रयास यह जरूर करना चाहिए कि अपने स्वाभिमान पर उस व्यक्ति की जरूरत को हावी न होने दिया जाए।
दुनिया बहुत सुंदर है और इसे हम बहुत कुछ दे सकते हैं। किसी एक व्यक्ति या रिश्ते के कारण अपनी सामर्थ्य को कम नहीं करना चाहिए। नजर से उतरने वाला व्यक्ति अगर दिलोदिमाग से नहीं भी उतर पा रहा, तब भी अपनी और खुद के स्वाभिमान की अहमियत को उसके ऊपर रखने की जरूरत है।
कई बार नए बहाने लेकर लौटने वाले की फितरत में शामिल हो चुका होता है यह सब। अगर हम यह सोच रहे हैं कि इस बार यह दर्द अंतिम होगा, तो हम गलत हैं। व्यक्ति पहली बार गलती कर सकता है, लेकिन उसे पहली बार में ही समझ जाना चाहिए कि उसने गलत किया है। अगर वह अगली बार भी वही करता है तो इसका मतलब ही है कि ऐसा करना उसकी फितरत में शामिल है।
जब जागें, तभी सवेरा है। जीवन में दुख घोल देने वाले रिश्तों और लोगों को छोड़कर आगे निकल जाना ही उचित है। जीवन चलने का नाम है और सबसे बड़ी बात कि खुद के लिए अपनी जिम्मेदारी समझना हमारी जिम्मेदारी भी है… अपने दिल को खुशी और सुकून देने के लिए।