सरस्वती रमेश
स्पर्श जिसे आम भाषा में छूना भी कहते हैं, एक जादुई क्रिया है। छूने से चट्टानी भावनाओं के विशाल हिम पिघल कर पानी हो जाते हैं। दर्द की शिलाएं टूटकर मिट्टी हो जाती हैं। अजनबीयत के धुंधलके में पहचान की किरणें फूटती हैं। नफरत की दीवारें ढहती हैं। स्पर्श से भरोसा जगता है। उम्मीद बंधती है और अंधेरे में भी रोशनी की लड़ियां जल उठती हैं, क्योंकि छूना स्नेह की मौन, लेकिन सबसे ताकतवर भाषा है।
प्रेम के जिस अहसास को शब्द और भाषा कहने में असमर्थ होते हैं, उसे एक स्पर्श से बयां किया जा सकता है। प्रेम में स्पर्श का जादू कुछ ऐसा होता है कि प्रथम अहसास से उपजे भाव आजीवन स्मृति में दर्ज हो जाते है। प्रेम की नरमी शुचिता बताने के लिए महज एक मुलायम स्पर्श काफी होता है। जब मन में अथाह प्रेम भरा हो तो कुछ बोलने की जरूरत नहीं होती।
बस उस भाव में शामिल हो जाया जाए, जिनसे प्रेम है। हमारे भीतर मन में जो भी है, वह सब उस तक पहुंच जाएंगी, क्योंकि स्वर, व्यंजन से सजी भाषा मनुष्य ने बनाया है और स्पर्श की भाषा ईश्वरीय है। अपने नवजात के प्रेम में डूबी मां जब उसे अपनी गोद में समेटती है तो शिशु के जीवन का स्रोत क्या होता है?
हमारे पूर्वज भी स्पर्श के महत्त्व को अच्छी तरह जानते थे। इसलिए चरण छूकर प्रणाम और सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ससुराल से आई बेटी अपनी मां और भाभियों से ‘भेंटाती’ है, यानी गले मिलती है। रामकथा के मुताबिक, जैसे वन में राम के साथ उनके छोटे भाई भरत मिले थे।
उस वक्त भरत का हृदय इतना विह्वल था कि वे शब्दों में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थ थे।आलिंगन के स्पर्श से उन्होंने अपनी सारी पीड़ा बड़े भाई तक प्रेषित कर दी। सुबह उठकर धरती को छूकर प्रणाम करना, सूर्य को जल से अर्घ्य देना और मिट्टी में नंगे पांव चलने के पीछे भी स्पर्श का विज्ञान है। असल में शोध बताते हैं कि मिट्टी के स्पर्श से धरती की ऊर्जा पूरे शरीर में संचारित होती है।
एक नवजात से स्नेह जताने का सबसे पहला माध्यम स्पर्श ही होता है। मां की गोद पाते ही बच्चा महफूज महसूस करता है। रोता-बिलखता शिशु भी गोद में उठाते ही शांत हो जाता है। बच्चे की परवरिश में मां के स्पर्श का अहम रोल होता है। असल में मां और बच्चा स्पर्श की भाषा से ही एक दूसरे की भावनाओं को समझते हैं। जब एक मां शिशु की हथेलियों में अंगुली फंसाती है तो शिशु मुट्ठी भींचकर उस छुअन का प्रत्युत्तर देता है। बस यहीं से शुरू हो जाती है छुअन के अहसास की यात्रा। बच्चे बड़े हो जाएं तब भी मां स्पर्श के माध्यम से अपनी ममता जताना नहीं भूलती।
विशेषज्ञ कहते हैं कि जिन बच्चों को मां का प्यार और दुलार भरा स्पर्श मिलता है, वे मानसिक रूप से मजबूत और भावनात्मक रूप से सुलझे हुए होते हैं। जबकि मां-पिता के स्पर्श से वंचित बच्चों में नकारात्मक भावनाएं अधिक होती हैं। जर्मनी में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि अगर मरीजों के सिर पर प्यार से हाथ फेरा जाए तो उनके स्वस्थ होने की रफ्तार बीस गुना बढ़ जाती है।
यह अलग बात है कि आजकल एक दूसरे के करीब होने पर भी कोई बीमारी हो जाने की आशंका जताई जाने लगी है। जबकि चिकित्सा के मामले में स्पर्श की भूमिका पहले से सिद्ध रही है। मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की भी राय है कि स्पर्श में जादू होता है। डाक्टर डेविड ईगलमैन के कथनानुसार, ‘मनुष्यों में स्पर्श गैर-मौखिक संचार का एक शक्तिशाली माध्यम है। दैनिक जीवन में कुछ नया सीखने से लेकर किसी से संवाद करने तक स्पर्श की भूमिका काफी अहम है।’
देखा जाए तो प्रकृति में घटित होने वाली सभी घटनाएं स्पर्श की भाषा से ही संचालित होती हैं। हर सुबह धूप की चमकीली किरणें धरती का स्पर्श करती हैं तो पेड़-पौधे बढ़ने लगते हैं। फूलों की पंखुड़ियां चटखने लगती हैं। फल पकने लगते हैं। हवाएं फूलों कलियों और पत्तियों का स्पर्श कर उनकी गंध साथ में लेकर चल पड़ती हैं। इस तरह स्पर्श से जीवन चक्र चलता रहता है।
एक फिल्म आई थी ‘कोई मिल गया’। उसमें दूसरे ग्रह का एक प्राणी धरती पर आया दिखाया जाता है। वह धरती की भाषा और लोगों से अनजान है। जब पहली बार फिल्म का नायक उसे देखता है तो अपनी मित्रता जताने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा देता है। उसे छूते ही दूसरे ग्रह का प्राणी फौरन स्पर्श की भाषा समझ लेता है।
सच यह है कि स्पर्श के तरीके से व्यक्ति की भावनाएं स्पष्ट हो जाती हैं कि वह अच्छी भावना से छू रहा है या बुरी भावना से। छूने के तरीके से यह भी पता लगाया जा सकता है कि उसमें किस रस की प्रधानता है। प्रेम, वात्सल्य, क्रोध, भय, करुणा या घृणा। एक दृष्टिबाधित व्यक्ति छूकर ही इस दुनिया को महसूस करता है। इसके रंगों को पहचानता है। इसकी खूबसूरती को अपनी अंगुलियों के माध्यम से देखता है। कई बार किसी बेहद खूबसूरत कृति को आंखों से देखने के बाद भी हम छूकर देखना चाहते हैं, क्योंकि हमारी अंगुलियों में भी अदृश्य आंखें होती हैं जो स्पर्श के माध्यम से संप्रेषण करती हैं।