कृष्ण कुमार रत्तू

इन दिनों बदलते हुए परिवेश में जिस तरह से जिंदगी जीने के ख्वाब और सोच को हमने अपने आसपास अपनाया हुआ है, क्या वह जिंदगी की मूलभूत जीने की समय सारणी में कहीं दिखाई देती है? इन दिनों जल, जीवन, जंगल, हवा और पहाड़ हमसे दूर हो रहे हैं। कंक्रीट के नए शहरों ने हमारी जिंदगी के उन पहलुओं को हमारी प्राकृतिक संस्कृति से बिल्कुल अलग कर दिया है, जिसमें भारतीय जीवन अपनी जीवंतता के साथ रचता बसता था।

पूरी दुनिया में चल रही बदलाव की आंधी

यह समय का अद्भुत कालखंड है और यह पूरी दुनिया में बदलाव की आंधी की चकाचौंध है, जिसने नई सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के संजाल की इस परिक्रमा ने हमारी पूरी नस्ल को बदल दिया है। अब हमारी आने वाली नस्लें इंटरनेट की नस्लें हैं और उन्हें चौबीसों घंटे इंटरनेट की दुनिया के साथ और मोबाइल के स्क्रीन के साथ जिंदगी जीने और इस भौतिकवादी ‘पैकेज’ की दुनिया में जिस तरह से उलझाया गया है, वह अपने आप में कम संताप नहीं है।

अगली पीढ़ी कैसी होगी, यह पता नहीं

अनुमान और आकलन बताते हैं कि सन 2050 में पूरे विश्व में अगली पीढ़ी के जो चेहरे हम देखेंगे, उनके दिलोदिमाग में प्रकृति के बारे में वह सोच नहीं होगी, जो रही है। आज विकासशील देशों में और अफ्रीकी, दक्षिण एशियाई देशों में अगर भारत की बात करें तो हम उन देशों में शामिल हैं, जहां जंगल बेतहाशा से कट रहे हैं और तेजी से हमारे हिमालयी क्षेत्र के हिमनद जल में तब्दील हो रहे हैं। इसके लिए दोष किसी का है तो वह हमारी अपनी मानसिकता का है कि हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ पर आमादा हो गए हैं और इसके बारे में कभी सोचते नहीं हैं।

प्राकृतिक स्रोतों के साथ जारी है खिलवाड़

जिस सांस लेने की हवा की अब महानगरों में हम बात करते हैं, वह इस स्थिति में पहुंच गई है कि अब सांस लेने की दिक्कत आने लगी है। इधर जल, धरती और जंगल की बात जिस तरह से हमने घोर उदासीनता के साथ नष्ट करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, वह चौंकाती है कि एक तरफ हम विश्वगुरु बनने की ओर बढ़ने का दावा कर रहे हैं, दूसरी तरफ हमने अपने प्राकृतिक स्रोतों के साथ यह खिलवाड़ किया है। खुले आकाश में जीने की परिकल्पना और खुली हवा में सांस लेने का दृश्य कहां है?

हवा के जहरीली होने के कारण बढ़ रही सांस की बीमारियां

अभी आने वाले दिनों में जब दिवाली के मौसम में यह पर्यावरण को धुएं और जहरीली गैसों की मार पड़ेगी, उसका अनुभव बहुत सारे लोगों को होगा। इस समय हवा के जहरीली होने के कारण होने वाली सांस की बीमारियां हैं। विमानपत्तन पर ऐसी धुंध होती है कि हवाई जहाज भी विशेष प्रणाली के जरिए उतारने की नौबत आ जाए। यह हाल है हमारा त्योहारों के इस मौसम में। जिस तरह से हमने धुएं  के साथ जहरीली गैसों के इस वातावरण का निर्माण किया है वह पर्यावरणीय मापदंडों पर आदमी को जिंदा रखने के लिए बिल्कुल सुरक्षित नहीं है।

विज्ञान ने जहां इतनी तरक्की की है कि इसने हमारी नई सूचना संचार की नई प्रौद्योगिकी के साथ रोबोट से लेकर आभासी दुनिया तक को हमारे सामने रख दिया है। हम अंतरिक्ष अभियानों की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन क्या यह सोचा है कि कूड़े के अंबार में लिपटे हुए हमारे शहर और गंदगी से पटे हुए नदी-नालों के साथ-साथ हमारे लिए हवा और पहाड़ों के गिरने और उनके ध्वस्त होने का सिलसिला कितनी देर तक हमारे सांसों को जिंदा रख सकता है?

यह जीवन और इसकी उम्मीदें खत्म होती जा रही हैं और पर्यावरणीय मुद्दों से हम जिस तरह से विमुख होकर एक नई दुनिया में गुम हैं, जिसमें पंचतारा संस्कृति भोजन की नई प्रणाली और वातानुकूलन का बेहद  इस्तेमाल है। यह हमारी जिंदगी की नवीनता और आगे बढ़ाने की तरक्की का एक जरिया हो सकता है, लेकिन क्या हमने सोचा है कि यह पर्यावरणीय समस्याओं को आने वाली पीढ़ियों के लिए कड़वी होती धरती सौंपेगा? गैसों से धुंधला, मैला होता आकाश और बीमारियों के साथ के चलते भी हम नहीं समझे तो फिर कैसा अच्छा वक्त बनाने का दावा कर रहे हैं?

यह सवाल देश की समूची आबादी के लिए जिंदा रहने के सवाल से बहुत आगे है, क्योंकि हम जिंदा रहे तो देश है, समाज है और अगर हमने पर्यावरण के मुद्दों पर सोचने-समझने का तरीका नहीं बदला और गांव की सौंधी मिट्टी की महक के साथ अपनी सांस्कृतिक चहल-पहल और मानवीय सरोकारों को बचाने की ओर नहीं ध्यान दिया तो फिर हम समझ सकते हैं कि आने वाले दिन पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर और खत्म होते प्राकृतिक संसाधन, जिसमें पहाड़, जल, जंगल और वह सब कुछ शामिल है जो आदमी को जिंदा रखता है। इस तरह के ही माहौल में ही क्या हम कल जिंदा रहेंगे?

दरअसल, जिंदगी को बचाने की प्रक्रिया पर्यावरण को बचाने में ही निहित है। यही समय के कालचक्र में सामने दीवार पर लिखी हुई इबारत है, जिसको अब पढ़ना होगा और आने वाली पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य, उनकी सांसों और उस हवा के लिए सोचना होगा कि वह प्रकृति के दिए जीवन की तरह जिंदा रह सके।