आपका सप्ताह कैसा रहा? यह एक बहुत ही सहज प्रश्न होना चाहिए। हालांकि जब भी हम किसी से यह प्रश्न पूछेंगे तो हम पर इन जवाबों की बौछार हो सकती है कि अरे समय ही नहीं मिलता… यहां तो मरने की फुर्सत नहीं है… पता नहीं समय कहां उड़ जाता है..। हम सभी यह दिखाने के प्रति इतने जुनूनी क्यों हो गए हैं कि हम काम में कितने व्यस्त हैं? व्यस्त होना नहीं, बल्कि व्यस्त दिखना कार्य संस्कृति का मुख्य सिद्धांत बन गया है।

खुद को अति व्यस्त बताने वालों का समय वास्तवकि काम में कम बीतता है

एक अध्ययन में पाया गया कि कार्यालयों में खुद को अति व्यस्त बताने वाले कर्मचारी उनके कामकाजी दिन का उनतालीस फीसद अपना वास्तविक काम करते हैं, जबकि उनके दिन का शेष तीन-पांचवां हिस्सा बैठकों, ईमेल और अद्यतन करने में व्यतीत होता है। इन ‘छद्म-उत्पादक’ गतिविधियों पर समय और ऊर्जा खर्च करने से हमारे सहकर्मी यह सोच सकते हैं कि हम अति-संगठित हैं, लेकिन वास्तव में यह दक्षता का एक उथला रूप है।

खुद को और दूसरों को यह सोचकर धोखा दे रहे हैं कि वह अधिक उत्पादक हैं

मूलत: हम खुद को और दूसरों को यह सोचकर धोखा दे रहे हैं कि हम अपनी तुलना में अधिक उत्पादक हैं। अक्सर हम उस काम को करने से बचने के लिए अनुत्पादक काम कर रहे हैं, जिसके बारे में हम सबसे अधिक चिंतित हैं। जीवन-यापन का अनिश्चित माहौल और एक अशांत नौकरी बाजार हमें लगातार व्यस्त रहने के लिए मजबूर कर सकता है, ताकि हम अपरिहार्य दिखें। लोग सोचते हैं कि अगर वे लगातार मांग में रहने और हमेशा ‘चलते’ रहने की इस हवा को पेश कर सकते हैं, तो यह कुछ हद तक उन्हें सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

एक समय ‘आराम की जिंदगी’ सबसे बड़ा ‘स्टेटस सिंबल’ था, लेकिन अब इसे उलट दिया गया है। व्यस्तता एक ‘स्टेटस सिंबल’ बन गई है। लगातार काम करने का यह छद्म हमारे व्यक्तिगत जीवन में भी फैल गया है। कामगारों को अक्सर अपना काम अच्छी तरह से करने के बजाय व्यस्त रहने के लिए पुरस्कृत किया जाता है। हमें लगता है कि व्यस्त दिखने का मतलब है कि हम उत्पादक हैं। और अगर हम उत्पादक हैं तो इसका मतलब है कि हम मूल्यवान हैं। सोशल मीडिया पर यही सब फैलाया जा रहा है।

यानी ‘कड़ी मेहनत’ सिर्फ कड़ी मेहनत के लिए। बस इसलिए कि आप व्यस्त दिखें, ताकि आप काम किए गए घंटों की संख्या के बारे में विनम्रतापूर्वक शेखी बघार सकें। काम में व्यस्त रहने का मौजूदा जुनून पश्चिमी दुनिया के ज्यादातर देशों में आम है। इसके विपरीत, पिछली सदी के दौरान काम के भविष्य के बारे में की गई ज्यादातर भविष्यवाणियां एक ऐसी दुनिया के बारे में थीं, जहां लोग कम काम करेंगे और अपने खाली समय का आनंद लेंगे।

ब्रिटिश अर्थशास्त्री जान मेनार्ड कीन्स ने भविष्यवाणी की थी कि 2030 तक लोग तीन घंटे की शिफ्ट या पंद्रह घंटे का सप्ताह काम करेंगे। इसी तरह, नोबेल पुरस्कार विजेता बर्ट्रेंड रसेल ने कहा कि चार घंटे का कार्यदिवस सभी के लिए पर्याप्त होना चाहिए। लेकिन वास्तविकता बहुत अलग है। जब हम दूसरों को बताते हैं कि हम हमेशा व्यस्त रहते हैं, तो निहित संदेश यह होता है कि हमारी तलाश की जाती है, और इसलिए हम महत्त्वपूर्ण लोग हैं। यह ‘जितना हम व्यस्त हैं, उतना ही सफल दिखते हैं’, मिथक के मुख्य कारणों में से एक है। कभी-कभी व्यस्त दिखना भी एक रणनीतिक व्यवहार होता है, जब हम यह दिखाना चाहते कि हम अब भी प्रासंगिक हैं।

सोशल मीडिया की शुरुआत के साथ खुद को अति व्यस्त दिखाने, बताने और जताने का महत्त्व बढ़ गया है। दूसरी पहचान या डिजिटल स्व का अवचेतन उद्देश्य दूसरों से कथित मूल्य को बढ़ाना है। मगर जब वे वास्तव में अपने जीवन का विश्लेषण करते हैं, तो उन्हें अहसास हो सकता है कि वे जो कर रहे हैं, वह ‘वह नहीं है जो वे करना चाहते हैं।’ व्यस्त होने का मतलब यह नहीं है कि हम काम कर रहे हैं। व्यस्तता उत्पादकता के बराबर नहीं है।

उत्पादकता को केवल तभी ‘उत्पादक’ माना जा सकता है जब कुछ करना किसी लक्ष्य या कार्य को पूरा करने की ओर ले जाए। जो लोग अपने काम में असाधारण होते हैं, उनमें किसी काम/शिल्प के प्रति असंतुलित समर्पण होता है। हम विश्व की किसी जानी-मानी हस्ती को दिन में छह घंटे जिम जाते हुए नहीं देखते। या फिर किसी नामी उद्योगपति या प्रसिद्ध खिलाड़ी, कलाकार को आए दिन यहां-वहां घूमते नहीं देखते। काम हमेशा उतना ही समय लेता है, जितना हम उसे देते हैं। इसका मतलब यह है कि अगर हम यथार्थवादी समय सीमा बनाते हैं तो खुद को तेजी से, कठिन और अधिक उद्देश्य के साथ काम करने के लिए मजबूर करते हैं।

यह समझते हुए कि व्यस्तता का मतलब उत्पादकता नहीं है, हमें सरलता को अपनाने की जरूरत है। उत्पादक लोगों की अपनी दैनिक कार्य सूची में करने के लिए केवल तीन से पांच चीजें होती हैं। व्यस्त लोगों के पास जांच करने के लिए बीस से ज्यादा वस्तुएं होती हैं। वास्तविकता यह है कि हमारे कामकाजी दुनिया में व्यस्तता की समस्या नहीं है, हमारे पास अनुशासन की समस्या है। हमको काम पूरा करने के तरीके में अनुशासन जोड़ने की आवश्यकता है। अन्यथा हम खुद को बार-बार एक ही अजगर को मारते हुए पाएंगे।