प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता है। वह जीवन के हर सोपान में अपने आप को उत्तम स्थिति में रखना चाहता है। लेकिन जीवन की सफलता मनुष्य के संघर्ष और उसके आचरण में अंतर्निहित विनम्रता पर भी निर्भर करती है। मनुष्य अगर सब कुछ प्राप्त करके भी विनम्र नहीं है तो उसका जीवन अधूरा है। रावण बहुत बड़ा विद्वान और शास्त्रों का ज्ञाता माना जाता था, लेकिन उसके जीवन और आचरण में विनम्रता न होकर दंभ और अहंकार समाविष्ट था, इसलिए वह अपने अहं और विनम्रता विहीन जीवन के कारण मारा गया।

विनम्रता मनुष्य का वह गुण है, जो मनुष्य के निजी जीवन में समाजीकरण की प्रक्रिया में उसके द्वारा आत्मसात किया जाता है। मनुष्य अपनी विचार-सीमा में अहंकारी, स्वार्थी, लालची और पद प्राप्त करने वाला लोभी हो जाता है, लेकिन धीरे-धीरे वह सामाजिक परिवेश में अपने आसपास के ज्ञानी, साधु और सच्चे सद्गुणी नागरिकों के संपर्क में आकर अपने लोभ और लालच की अहंकारी गतिविधियों में सुधार लाकर सहिष्णु, सौहार्द, करुणा, सहयोग आदि गुणों को अपने में समाहित कर विनम्रता के सद्गुण को ग्रहण कर सकता है।

विनम्रता सही मायने में सामाजिक अच्छाई की परिणति है। सद्गुण और विनम्रता दरअसल, महान लोगों द्वारा ग्रहण किया हुआ वह अलंकार है जो उसे लोक और परलोक में सर्वमान्य रूप से स्थापित करता है। तुच्छ मानसिकता वाला व्यक्ति अपनी छोटी-छोटी गतिविधियों में रहकर अपने आप को सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञानी समझकर कुएं के मेंढ़क की तरह ‘अधजल गगरी छलकत जाए’ की कहावत को सिद्ध करता है।

साधारण-सी बात है कि हम अपने लिए किस सामान्य व्यवहार और शिष्टाचार की अपेक्षा करते हैं? जाहिर है, कि हमें भी उसी स्तर की विनम्रता अपने व्यवहार में लानी चाहिए। महान और ज्ञानी व्यक्ति के व्यक्तित्व में विनम्रता झलकती है। ऐसे लोग उसे प्रदर्शित करने से परहेज करते हैं, क्योंकि विनम्रता उनके संपूर्ण व्यक्तित्व में समाहित होती है।

यह किसी भी सज्जन व्यक्ति की जीवन शैली होती है। ऐसे उदाहरण हमारे आसपास बिखरे मिल जाते हैं कि अगर हम किसी विनम्र व्यक्ति की प्रशंसा करें तो आमतौर पर वे उसे स्वीकार न कर, अपनी विशेषताओं के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को श्रेय देते हैं। वहीं कुछ लोग अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने से नहीं अघाते हैं। ज्ञानी व्यक्ति अपनी उपलब्धि को समाज की बेहतरी के लिए उपयोग में लाता है, न कि उसे केवल अपने या अपने करीबी या परिवार के लिए ही सीमित रखता है। ज्ञान तथा सद्गुणों की खोज में रहने वाले व्यक्ति के जीवन में नई-नई उपलब्धियां अपने आप आने लगती हैं।

जिस तरह फलदार वृक्ष सदैव झुके हुए होते हैं, उसी तरह विनम्र और ज्ञानी व्यक्ति भी बहुत अधिक विनम्र और देश, समाज और राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होता है। ज्ञानी व्यक्ति केवल सूचनाओं का केंद्र नहीं होता, बल्कि ज्ञान उसे विनम्र और सद्गुणी बनाता है। विनम्रता मनुष्य के जीवन में अच्छे मार्ग को प्रशस्त होता है। इस गुण से लैस व्यक्ति ही समाज में उचित स्थान और सम्मान का हकदार बनता है। इसी से मनुष्य समाज के हर पहलू में उसका पात्र बनकर उसे ग्रहण करने का अधिकार रखता है। इसलिए विनम्र और ज्ञानी व्यक्ति समाज में सदैव सम्मानित और उच्च स्थान प्राप्त करने वाला व्यक्ति बन जाता है।

विनम्र व्यक्ति में नेतृत्व गुण संभावित होता है, क्योंकि ज्ञानी और विनयशील व्यक्ति को अपने नेतृत्व कर्ता के रूप में समाज स्वीकार करता है। ऐसा व्यक्ति अपने विचारों को आमजन पर अधिरोपित नहीं करता, बल्कि उनके विचारों को उनके सुझावों को प्राप्त कर नए-नए समाधान भी निकालता है। महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपना साधन घोषित करते हुए स्वतंत्रता के लिए इसे अपना अस्त्र बनाया था।

सत्य और अहिंसा विनम्र व्यक्ति के दो अमोघ अस्त्र की तरह होते हैं, जो विनम्रता को और प्रभावशाली बनाते हैं। विनम्र व्यक्ति सदा संतोषी और परम सुखी होता है, क्योंकि उसकी अपनी कोई महत्त्वाकांक्षा, इच्छा, लोभ, जलन या प्रतिस्पर्धा नहीं रहती है। वह अवगुणों से दूर रहकर अपने को परिमार्जित कर लेता है और समाज के विकास के लिए समर्पित भी रहता है। महात्मा बुद्ध के संदर्भ में कहा जाता है कि जब वे ज्ञान की खोज में देशाटन कर रहे थे, तब लोगों ने उन्हें अनेक प्रकार की यातनाएं दीं, पर बुद्ध बिना विचलित हुए अपनी खोज में लगे रहे और अपने अथक प्रयास, विनम्रता और ज्ञान के दम पर महापरिनिर्वाण की स्थिति को प्राप्त किया।

जिस तरह शक्ति को दबाया जा सकता है, लेकिन समाप्त नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार विनम्रता कुछ समय के लिए कमजोर प्रतीत हो सकती है, पर अपनी क्षमता, व्यापकता और पर्वत के समान कठोर तत्त्वों के कारण वह हर बाधा को पार कर मनुष्य को सफलता दिलाने में सक्षम होती है। इसी विनम्रता और कठोर श्रम के चलते महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार की बाधा को दूर कर दिया और भारतवासियों को अपनी विनम्रता के जरिए स्वाधीनता दिलाई।

विनम्र व्यक्ति को संस्कृति स्थायित्व प्रदान करती है और आने वाले मार्ग की बाधाओं को समाप्त कर देती है। मसलन, अहंकार का भाव अस्थायी और क्षणभंगुर होता है। किसी भी राष्ट्र, संस्कृति और समाज के स्थायित्व के लिए उसका विनम्र और सहिष्णु होना आवश्यक है। इसीलिए यह माना जाता है कि मनुष्य, समाज, देश के लिए विनम्रता सर्वश्रेष्ठ अवदान है।