जीवन एक अमूल्य निधि है। इसके छोटे-छोटे अनुभवों को सहेजना इसे अधिक समृद्ध करता है। इसलिए जीवन की सार्थकता इसी में है कि इसे अपने कार्य और व्यवहार से भी सार्थकता प्रदान की जाए, तभी समग्र रूप से एक सफल जीवन यापन की कल्पना सच होती है। अगर यह सोचा जाए कि एक जीवन तो मेरे सारे सपनों को पूरा नहीं कर सकता, तो ऐसा सोचने वाला व्यक्ति जीवन भर निराशा में डूबा रहता है। ऐसे में वह एक जीवन में प्राप्त हो सकने वाले लक्ष्य को भी नहीं पाता। जीवन की सार्थकता इसमें है कि हमने छोटे-बड़े जो भी कार्य किए हैं, उससे हमें संतुष्टि हो।

अगर इस जीवन को भरपूर सामर्थ्य और समग्रता के साथ जिया जाए तो जीवन सार्थक होगा। ऐसा माना जा सकता है कि जीवन इतना पवित्र, इतना असाधारण और इतना संभावना पूर्ण है कि वह निरर्थक हो ही नहीं सकता। सच है, अगर भरपूर साहस और दैनिक मूल्यों के साथ जीवनयापन किया जाए तो एक जीवन ही बहुत है, लेकिन यह कैसे संभव हो? इस प्रश्न का उत्तर अंगुलियों पर गिने जाने वाले चंद महान कार्यों में नहीं, बल्कि हजारों छोटे-छोटे कार्यों में है, जो हर दिन को पूरी तरह जीने की चेष्टा में है। बस कुछ बातों को आत्मसात करने भर की देर है, फिर जीवन परिपूर्णता के भाव से भर उठेगा।

आवश्यक है चुनौती और पीड़ा को स्वीकार करने की। व्यक्ति को तकलीफों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, अन्यथा न तो मन में आशाएं जागेगी, न हम हिम्मत जुटा सकेंगे। इसी तरह, पीड़ा की अनुभूति आवश्यक है। वरना हम आनंद का अर्थ नहीं समझ पाएंगे। हममें से अनेक अपने टूटे सपनों का दर्द, ठुकराए जाने की कसक और स्वास्थ्य की पीड़ा लिए घूमते हैं। लेकिन समस्या सुलझाएं कैसे? दुख के आगे हार न मानने वाले उपाय सोचना चाहिए। फिर ईश्वर की अनुकंपा से हमें दुख में सहारा देने वाले लोग मिले हैं। पीड़ा जीवन का अंग है। उसे स्वीकार करने का प्रयास अपनी आत्मा के एक अंश खोने जैसा है। टूटी हड्डियों की तरह टूटे दिल भी आखिर जुड़ जाते हैं। इसलिए भरोसा करना चाहिए कि दुख और पीड़ा के आगे भी जीवन है।

पीड़ा का सामना करने के लिए अपनों से निकटता बनाए रखना चाहिए। जिन लोगों के साथ हम अपने जीवन का एक पूरा समय व्यतीत करते हैं, जिनके साथ हम अपने आप को बांटते हैं, उनसे गहरी आत्मीयता से जुड़े रहना चाहिए, क्योंकि जो कुछ हम जीवन में बनाते हैं, एकत्र करते हैं, उसमें बहुत कुछ रेत पर बने महल की तरह है। न जाने कब, कौन-सी लहर बहा कर ले जाए। ऐसे में कोई सहारा देने वाला, बिखराव को समेटकर हाथ थामने वाला हाथ अगर हो तो जीवन की शुरुआत नए सिरे से प्रारंभ करने में देर नहीं लगती। साथ ही सृजनात्मक कार्यों में अपनी उर्जा लगाने की जरूरत है। व्यक्ति अपनी शक्ति और सामर्थ्य से छोटे, मगर सही कार्यों में अपनी ऊर्जा लगाए तो परिणाम संतोषप्रद रहता है। अच्छे और महान कार्य करने का श्रेय किसी वर्ग विशेष तक सीमित नहीं। वैसे भी अच्छा कार्य वही है, जो दूसरों को लाभ और खुद को शांति प्रदान करे। ऐसे छोटे, लेकिन महत्त्वपूर्ण कार्य व्यक्ति को बचाते हैं।

मृत्यु से पहले भी जीवन है। दार्शनिक हारेस कैलेन ने कहा था- ‘दुनिया में ऐसे लोग भी हैं, जो मौत से आतंकित रहते हुए जीते हैं और ऐसे भी हैं, जो जीवन का आनंद लेते हुए समय व्यतीत करते हैं।’ पहली श्रेणी के लोग मरे हुए जिंदा रहते हैं। दूसरे जीवन से भरपूर रहकर मृत्यु का अंगीकार करते हैं। इसलिए दूसरी श्रेणी के लोगों का जीवन सार्थक है, क्योंकि वे महान बनाने वाले कारनामों की खोज में भटकना छोड़ उसकी जगह छोटे, मगर उन क्षणों को भरने का प्रयास करते हैं, जो संतोषप्रद हों। तब शायद इस प्रश्न का उत्तर मिल जाए कि जीवन क्या है?

इस पर भी जीवन ईश्वर या प्रकृति के बिना पूर्ण नहीं हो सकता। हम अपने आप को प्रकृति से बिना जोड़े जीवन की सार्थकता के चरम का अनुभव नहीं कर सकते। हमारे जीवन को दैहिक स्तर मात्र से ऊपर उठने के लिए कुदरत ने बहुत कुछ किया है। कई नैतिक दायित्वों की सीमा तय की हैं। स्वभाववश मानवीय गुणों का विकास किया है और मानव जीवन की किसी नैतिक आचरण के आधार पर परख होती है कि हम हारे या जीते? केवल ईश्वर ही जानता है कि हम क्या हैं। इस आधार पर नहीं कि हमने क्या किया है? ईश्वर न केवल हमें अपनी विफलताओं के लिए क्षमा करता है, बल्कि हमारे हर छोटे कार्यों का श्रेय हमें देता है। उनका भी, जिन्हें हमारे आसपास के लोग भुला चुके होते हैं।

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जीवन में प्रेम का कोई विकल्प नहीं है। प्रेम मनुष्य को अपने आप में संतुष्ट करता है। प्रेम पाने का नहीं, देने का नाम है और देकर ही हम संतुष्ट होते हैं। कुदरत द्वारा मनुष्य को दिया गया यह एक विलक्षण और अद्भुत भाव है, जो मानव को ईश्वर तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करता है। महान और बड़े कार्यों की चिंता और विचार में अपने जीवन को खत्म करने से अच्छा है छोटे, महत्त्वपूर्ण और संतोषप्रद भावों, विचारों और कार्यों को जीवन में जगह दी जाए। यही सार्थक जीवन का आधार बनते हैं।