वेदों, उपनिषदों, महाकाव्यों, लोक-कथाओं के अनुसार सृष्टि के उद्भव के समय चारों ओर जल ही जल था। इस जल का इधर-उधर बिखरना, बहना, भाप बनकर उड़ जाना और फिर भी पृथ्वी के लगभग तीन चौथाई भाग को घेरे रखना एक जादू जैसा लगता है। मगर सच यही है कि हमारे जीवन की गति पानी से ही है। हम अगर स्थिर हैं तो सीधे-सादे अर्थों मे शव हैं और शव निष्प्राण होता है, लेकिन अगर हमारे शरीर की एक नाड़ी में भी गति है तो वहां एक आशा जगती है और हम फिर से इस दुनिया में रमने की कोशिश करते हैं। दरअसल, जल हमेशा गतिमान रहता है और फिर वह चाहे नदी हो, नाला हो या बरसात हो। आकाश से टपकती बूंदें केवल हम इंसानों को ही नहीं, वन्य-जीवों को, घरेलू पशुओं को, पंख फैलाए उड़ते पक्षियों को, पेड़-पौधों को, जंगल के मजबूत वृक्षों को, कोमल टहनियों को, पत्तों को, फल-फूलों को और यहां तक कि शुष्क और पथरीले पहाड़ों को भी एक नया जीवन देती हैं।

बारिश के मौसम में जब बूंदें बादलों के घर से पृथ्वी पर आ रही होती हैं, तो हम सहज ही महसूस करते हैं कि हमारा जीवन बदल रहा है। आकाश से बरसती ये बूंदें निर्मल होती हैं, कोमल होती हैं। इनके अंदर एक संगीत छिपा होता है जो हमें आह्लादित करता है, हमारे हृदय में आनंद उत्पन्न करता है। भीगते हुए फूलों, झूमते हुए पौधों और अविरल बहती धाराओं को देखकर हमारे मन में गहरे तक छिपी कलुषित भावनाएं कहीं दूर बह जाती हैं। ये बूंदें हमें उत्साहित करती हैं और हम अपनी कल्पनाओं को शब्दों में रचना और गुनगुनाना प्रारंभ कर देते हैं। हमारे मन में अनेक कविताओं का झरना-सा फूट पड़ता है। ढोल-मंजीरा, डफली-घूंघरू सबके सब एक नए अंदाज में हमारे कदमों को थिरकाने लगते हैं। हमारे होठों पर राग मल्हार अपने आप उतर आता है और हाथों की तालियां, पैरों की थिरकन एक ऐसा माहौल बना देती हैं कि चारों तरफ बूंदों की छमछम गूंजने लगती है।

मेह की बूंदों से जमीन के भीतर भी आहट होती है और नई कोंपलें जन्म लेने लगती हैं, जिन्हें देखकर हमें जीवन की यह सच्चाई पता चलती है कि जल ही जीवन है। जल का स्वभाव चंचल होता है और इसी से हमें वह शक्ति मिलती है कि हम अपने जीवन की तमाम उदासियों को मंझधार में छोड़ दें और खुद अपना और दूसरों का जीवन संवारें। जल भरी बूंदों के आगमन से हमारे आसपास एक उत्सव-सा जन्म ले लेता है। वृक्षों की झूमती डालियां और पक्षियों का कलरव हमें इस उत्सव का आमंत्रण देता प्रतीत होता है। हमें अपनी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता याद आने लगती है। इस बीच आकाश पर उभरते हुए इंद्रधनुष के रंगों में हम खो जाते हैं और अपने जीवन में उन अलग-अलग रंगों से भविष्य की कल्पनाओं में रंग भरने लग जाते हैं। शांत होकर टपकती बूंदें हमें आध्यात्मिकता और परोपकार के मार्ग पर आगे बढ़ने को प्रेरित करती हैं।

जिस तरह हम पानी का स्वभाव जानते हैं और बारिश के बीच कहीं आने-जाने के लिए पगडंडियों को खोजते हैं, संकरे रास्तों पर आवागमन करते हुए अपने आपको संभालते रहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि जरा सी लापरवाही हमारे जीवन को कष्ट में डाल सकती है, ठीक उसी तरह हमें अपने स्वभाव पर भी विचार कर लेना चाहिए। ये बूंदें हमें सिखाती हैं कि समय हमेशा एक-सा नहीं रहता और हमेशा ही इसमें उतार-चढ़ाव आता रहता है। कभी अनुकूल, तो कभी प्रतिकूल। यह हमारे सामने के हालात के मुताबिक तय होता है। समय कभी भी हमारे वश में नहीं रहता और न ही हमें समय की उपेक्षा करनी चाहिए। कुत्सित प्रवृत्ति के चलते धन संचय से अधिक इन बूंदों का संचय करना आवश्यक है, क्योंकि यही हमारे भविष्य को सुरक्षित रखेगा।

यह ध्यान रखने की जरूरत है कि आखिर ये बारिश की बूंदें हमेशा तो टपकेंगी नहीं, इसलिए इससे हमें जो जल प्राप्त होता है उसको बचाने की आदत भी हमें अपना लेनी चाहिए। वैसे भी प्रकृति का हमें हमेशा आदर करना चाहिए। विकास जरूरी है, मगर घने जंगलों को विकास के नाम पर साफ कर देने से किसी का हित नहीं हो सकता। जंगल और पेड़ों का न होना दुनिया में कैसी तबाही ला सकता है, यह एक स्वयंसिद्ध तथ्य रहा है। हमारे बुजुर्ग फरमाते हैं कि घने वृक्षों पर देवता निवास करते हैं और वही हमारा ध्यान भी रखते हैं।

इसीलिए वृक्षों को पूजा जाता है। दरअसल, इनके प्रभाव से ही हमें बारिश की बूँदें मिलती हैं और फल-फूल, औषधि, हार-सिंगार, भवन-निर्माण आदि सामग्री भी प्राप्त होती है। आखिर ये बूंदें प्रकृति का ही उपहार हैं, आज मिली हैं तो इन्हें संभालना हमारा परम दायित्व है। ये बूंदें जब हमें खुशियों का भंडार सौंपती हैं, तो निश्चित ही हमें इन खुशियों को समेट लेना चाहिए, ताकि भविष्य में हम इन खुशियों को आवश्यकताओं के अनुसार बांट सकें और समाज को हमेशा प्रसन्न और आनंदित रखने के प्रयास में हम भी योगदान दे सकें।