अतीत चाहे कैसा भी गुजरे, उसकी यादें सदैव सुखद ही होती हैं। मुंशी प्रेमचंद का यह कथन हमेशा सच प्रतीत होता है। हम जैसे-जैसे जीवन जीते जाते हैं, चाहे वह बचपन, जवानी या बुढ़ापे का दौर हो और कितना भी मुश्किलों से भरा हुआ क्यों न हो, जब उसकी यादें किसी संदर्भ में सामने आती हैं तो पता नहीं कहां से वे पहाड़ की तरह कभी न खत्म होने वाली मुश्किलें भी सुखद यादों के रूप में बदल जाती हैं। इसके साथ ही जब भी कभी हम एकांत में उन यादों के बारे में सोचते हैं तो एक मीठी-सी खुशी, जो कि मई की कड़ी धूप में एक ‘बदली’ यानी बादल के टुकड़े के आ जाने से मिलती है, मन पर छा जाती है। अब इसे मन की अवस्था कहें या विचारों की शक्ति जो समय बीत जाने के बाद अलग रूप में हमारे सामने अक्सर प्रस्तुत हो जाती है। कई बार ऐसी ही अनुभूति हरसिंगार के फूल देखने और उनकी सुगंध लेने के बाद होती है।
हरसिंगार के फूल आमतौर पर सितंबर-अक्तूबर के महीने में आने शुरू हो जाते हैं और दिसंबर-जनवरी तक रहते हैं। हालांकि ये सफेद पंखुड़ियों वाले और लाल डंडी वाले फूल बेहद नाजुक और थोड़े समय के लिए ही रहते हैं, पर इसकी खुशबू की कशिश हमारे अंतर्मन में अपनी अमिट छाप छोड़ जाती है और हम जीवन भर इससे मुक्त नहीं हो पाते हैं। आज भी हरसिंगार के फूल अतीत की यादों में धकेल देते हैं और अपने किसी प्रिय जगह में इन फूलों के साये में बिताए दिनों की कथा याद दिलाते रहते हैं।
जब पहली बार किसी ने सुबह-सुबह कभी आंगन को इन फूलों से भरा हुआ पाया होगा तो हो सकता है कि उसे ऐसा लगा हो कि किसी ने एक थाल में ‘बतासे’ लाल रंग की बिंदी लगा कर रख दिए हों। इन फूलों की मोहक खुशबू भले ही कुछ समय के लिए ही क्यों न हो लेकिन उन क्षणों को यह अत्यंत आकर्षक बना देती हैं। इन फूलों का उगना शुरू होना इस बात को इंगित करता है कि बस अब त्योहारों का मौसम आने वाला है और चहुंओर हर्ष का वातावरण बिखरने वाला है। गणेश उत्सव हो या नवरात्रि पूजा या फिर दीपावली का पूजन, हरसिंगार के फूलों से जब हमारे आराध्यों का शृंगार किया जाता है तो उसकी आभा कुछ निराली ही होती है, जिसका वर्णन शब्दों में संभव नहीं है।
जिस आंगन में इसके फूल खिले होते थे, वहां चाहे परीक्षा की तैयारी करनी हो या फिर परीक्षा के परिणाम आने के बाद का मंथन, सभी कुछ इस हरसिंगार के पेड़ के नीचे कुर्सी पर बैठकर किया जाता था। जब किसी बच्चे के परिणाम अनुकूल नहीं होते थे और जीवन में हताशा छाने लगती थी तो ये फूल हंस कर अपना जीवट दिखाते थे और इशारों-इशारों में और बेहतर प्रयास करने को प्रोत्साहित करते और मानो यह कहते थे कि हम हवा के तमाम थपेड़ों और बाधाओं के बीच रोज सुबह बिना अवरोध के नई ऊर्जा से ओतप्रोत उदित होते हैं, वैसे ही एक कर्मयोगी की तरह कार्य पूरी तल्लीनता और समर्पण भाव से करना चाहिए, किसी परिणाम की परवाह किए बगैर।
उन दिनों डाकिया बाबू द्वारा लाए गए प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए दिए जाने वाले साक्षात्कार के बुलावे या किसी परिजन की खुशहाली की चिट्ठी, सभी कुछ का गवाह हरसिंगार के पेड़ बनते थे, जहां लिफाफे खोले जाते और चिट्ठियां पढ़ी जाती थीं। उसके बाद मन में उठने वाली अनंत अनुकूल और प्रतिकूल भावनाओं का साक्षी यह परम मित्र हरसिंगार ही था। अगर पीछे मुड़कर जीवन को टटोला जाए तो लगता है कि वे ढेरों सपने जो इसके सान्निध्य में बैठकर देखे गए, चाहे वह पूरे हुए हों या नहीं, लेकिन उनकी यादों की रोचकता आज भी उतनी ही ताजी है, इन फूलों की तरह। जैसे ये फूल कुछ पल जीकर भी लंबी दास्तान सुना जाते हैं, वैसे ही हमने जीवन रूपी किताब के कुछ पन्ने इस तरह से लिखे कि हमारी आने वाली पीढ़ी इससे प्रेरित हो सके और अपने जीवन को एक सार्थक दिशा दे पाए। तभी हम अपने आप पर गर्व महसूस कर पाएंगे।
दरअसल, जीवन ‘काटने’ के बजाय जिंदादिली से ‘जिया’ जाना चाहिए और अपने पथ में आने वाली हर एक मुश्किलों को एक मौके की तरह भुनाना चाहिए। मुश्किलें जहां दुख देती हैं, वहीं कई बार जिंदगी के लिए बेहतर सबक भी दे जाती हैं। यह हमारा सकारात्मक या नकारात्मक नजरिया ही होता है, जिससे कि हम अपने जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से अपना जीवन तो सुखद व शांतिप्रिय गुजरता ही है, साथ ही हमारी इस स्थिति की छाप हमारे निकट रहने वालों पर भी गहरा असर डालती है। संदर्भ से लिया जाए तो एक फिल्म ‘आनंद’ के एक प्रसिद्ध संवाद को याद किया जा सकता है कि ‘बाबू मोशाय, जिंदगी लंबी नही, बड़ी होनी चाहिए’। यों तो समूची प्रकृति ही अपने मूल में यही संदेश देती है।
ठीक इसी तरह हरसिंगार के फूल भी ये सिखाते हैं कि जीवन चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो, लेकिन वह कुछ ऐसे जिया जाए कि हमारी शख्सियत इतनी प्रबल और प्रखर हो जाए, जिससे हमारे न होने की ‘रिक्तता’ संबंधित लोगों के भीतर लंबे वक्त तक बनी रहे और जब कभी हमारे किस्से लोगों की यादों में सफर करें, तो वे उनकी आंखों में नमी लाकर हमारी जिंदादिली को भी याद करें।