अगर हौसले बुलंद हों तो सारी कायनात हमारे सुर में सुर मिलाने लगती है। अंतर्मन में उत्साह का संचार सफलता की पृष्ठभूमि तैयार कर देता है। किसी नेक काम को करने के इरादे से आत्मबल इतना सशक्त हो जाता है कि असंभव शब्द कहीं पीछे छूट जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी मन, वचन और कर्म की एकाग्रता से सिद्धत्व को प्राप्त किया जा सकता है। इतिहास पुरुषों का विभिन्न क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान इसका उदाहरण है। ठेठ आखेट युग से आज के औद्योगिक एवं वैज्ञानिक दौर तक की विकास यात्रा यों ही पूर्ण नहीं हो सकी है।
अगर कुछ कर गुजरने का जुनून और दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो उल्लेखनीय सफलता हासिल करना कठिन नहीं है। मानव सभ्यता के विकास का क्रम भी इसी के सहारे आज की उन्नत अवस्था को प्राप्त कर सका है। यह सिलसिला आज भी जारी है और आगे भी चलता रहेगा। आगे बढ़ने की चाहत के साथ कठिन रास्तों को तय करने वाले लोगों के उदाहरण हमें अपने आसपास भी देखने को मिल जाते हैं। लेकिन हम अपनी दृष्टि जितनी विशाल करेंगे, उतनी ही महान शख्सियत के बारे में जान पाएंगे। वैसे भी आजकल के दौर में असंभव तो कुछ भी नहीं रह गया है।
यह सब हौसलों की बुलंदी का ही परिणाम है कि कल तक जो कल्पना से भी परे था, आज सहज संभव नजर आने लगा है। ऐसा नहीं है कि यह सब पलक झपकते ही संभव हो गया हो। हौसला मतलब- हिम्मत, हर व्यक्ति के अंदर यह छिपी हुई शक्ति होती है, जिसका खुद को एहसास करना होता है। जो कार्य हम आसानी से करने की उम्मीद नहीं रखते और कोई दूसरा उसे अंजाम तक पहुंचाता है तो वह उसका हौसला ही है। इसका मतलब है कि उस व्यक्ति ने अपने भीतर की ताकत को पहचान लिया है।
दरअसल, तमाम तरह के विकास के कारक तत्त्वों में बड़े से बड़ा जोखिम उठाने का माद्दा सन्निहित है, जिसके परिणामस्वरूप निरंतर अनुसंधान कार्यों के साथ-साथ वृहद स्तर के उद्योगों की स्थापना संभव हुई है। व्यवसाय का तेज गति से विस्तार हुआ। रोजगार के नए-नए आयाम स्थापित होने लगे और आम नागरिकों के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सुधार हुआ। दुनिया भर में तरक्की की रफ्तार निरंतर तेज होती जा रही है।
कल तक हमारा देश कृषि प्रधान होने के बावजूद खाद्यान्न पूर्ति के लिए विदेशों पर निर्भर रहा करता था, लेकिन देखते ही देखते हर एक क्षेत्र में बुलंद हौसले के साथ हम आगे बढ़ते रहे। इस स्थिति के मूल में राजनीतिक नेतृत्व के साथ-साथ व्यापार व्यवसाय, शिक्षा एवं चिकित्सा जगत के पुरोधाओं का बुलंद हौसला ही था, जिसकी बदौलत विभिन्न क्षेत्रों में जोखिम लेने की क्षमता का विस्तार हुआ। दरअसल, हर एक क्षेत्र में बड़े लक्ष्य को सामने रख कर कार्य योजनाएं बनाई गर्इं, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए।
आज हम शहरी परिवेश को देखें या ग्रामीण, हर तरफ आमूल परिवर्तन की स्थिति दिखाई देती है। शहर और अधिक विकसित हो रहे हैं, तो विभिन्न नगर, गांव एवं कस्बों में भी आम नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार देखा जा सकता है। तकनीक घर-घर दस्तक दे चुकी है, नागरिकों की बौद्धिक क्षमता बढ़ी है। कृषि कार्य का आधुनिकीकरण हो गया है, व्यापार व व्यवसाय का स्वरूप भी बदल गया है। आज हर क्षेत्र में देश की विकासात्मक तस्वीर साफ देखी जा सकती है।
यह सब दशकों की लंबी साधना का परिणाम है, जो हौसले से ही संभव हो सका है। सफलता के लिए सिर्फ प्रतिभा होना ही काफी नहीं है, इसके लिए सही कदम उठाने के साथ सोच में स्पष्टता और बुलंद इरादा भी चाहिए। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति और हालात से मुकाबला करने का साहस हो तो फिर कोई भी ताकत लक्ष्य को हासिल करने से डिगा नहीं सकती।
बदलते वक्त के साथ व्यक्ति विशेष की जीवन शैली में परिवर्तन आना स्वाभाविक है। समाज विशेष की जीवन शैली में परिवर्तन भी स्वाभाविक हो सकता है, लेकिन करोड़ों नागरिकों की जीवन शैली में व्यापक बदलाव यूं ही नहीं आ जाता। इसके लिए कई मोर्चाें पर बुलंद हौसलों की जरूरत पड़ती है। व्यापक स्तर पर जोखिम उठाने की क्षमता विकसित करनी पड़ती है और इस क्षमता को सही दिशा देकर सकारात्मक परिणाम पर केंद्रित कर लक्ष्य को पाना होता है।
सकारात्मक सोच के साथ अपने-अपने क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ने की और अधिक इच्छाशक्ति जागृत करना बुलंद हौसलों की पहचान है। अपनी कमजोरी या लाचारी को लेकर किसी और को दोष देने की बजाय अपने आत्मबल को मजबूत बनाने की दिशा में विचार करना चाहिए। देश-दुनिया के हर एक क्षेत्र में जितने भी सफलतम व्यक्तित्व हैं, गहराई से देखें तो उनके लिए परिस्थितियां कभी भी आसान नहीं थी। उनकी सफलता के पीछे उनके बुलंद हौसलों का बड़ा हाथ रहा है।