राजेंद्र प्रसाद
हमारा जीवन अनेक पड़ावों से गुजरता है। उसको सार्थकता से पार करने के लिए हमारे व्यक्तित्व के निखार और निर्माण के लिए बहुत-से कारकों की आवश्यकता पड़ती है। अगर कहीं भी व्यक्तित्व की नींव ढीली हुई तो हम जीवन के संघर्षों का मुकाबला उतनी मजबूती से नहीं कर पाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ विशेष गुण या विशेषताएं होती हैं।
अपने गुणों और विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न होता है। व्यक्तित्व नवनिर्माण के लिए अन्य बातों के अलावा अनुभव, धीरज, व्यवहार और विवेक मुख्य रूप से महत्त्ववपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। व्यक्ति के इन गुणों का मिलाजुला संयोजन व्यक्तित्व कहलाता है। एक व्यक्ति बनकर जीना महत्त्वपूर्ण नहीं, बल्कि एक वजनदार व्यक्तित्व बनकर जीना अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि व्यक्ति तो समाप्त हो जाता है, लेकिन व्यक्तित्व सदैव जीवंत रहता है।
हमारे व्यक्तित्व की चमक के लिए धीरज, जब हमारे पास कुछ न हो और दूसरा, हमारा व्यवहार, जब हमारे पास सब कुछ हो। हम सूरज की कद्र उसकी ऊंचाई के कारण नहीं करते, बल्कि उसकी उपयोगिता के कारण करते हैं। सबसे पहले जो दूसरे के संपर्क में आएगा, वह है व्यक्तित्व। भीतरी गुण तो बाद की वस्तु है। जाहिर है कि जिंदगी में शख्स बनकर नहीं, बल्कि शख्सियत बनकर जिया जाए, क्योंकि शख्स एक दिन विदा हो जाएगा, मगर शख्सियत हमेशा जिंदा रहती है।
पत्थर भी उसी पेड़ पर फेंके जाते हैं, जो फलों से लदा होता है। किसी को सूखे पेड़ पर शायद ही कोई पत्थर फेंकते देखा गया हो। विचार और व्यवहार बगीचे के वे फूल हैं, जो व्यक्तित्व को महकाते हैं। हमारा व्यक्तित्व जैसा होगा, वैसा ही दुनिया का नक्शा बनाएंगे। महान आदमी वे होते हैं, जो पहले कभी न सोचे गए और न किए गए काम को अंजाम देने के काम में निरंतर जुटे रहते हैं।
कहा जाता है कि बुद्धिमान मनुष्य अपने अनुभवों से सीखता है, जबकि अधिक बुद्धिमान दूसरों के अनुभवों से सीखता है। कष्ट सहने से अनुभव भी मिलते हैं। जीवन में कोशिशें आखिरी सांस तक करनी चाहिए, जिससे लक्ष्य हासिल होगा या अनुभव। मनुष्य के अनुभव को रास्ते का प्रकाश माना जाता है। जिंदगी की हर सुबह कुछ शर्तें लेकर आती है और जिंदगी की हर शाम कुछ तजुर्बे देकर जाती है।
जिंदगी में पीछे देखा जाए तो अनुभव मिलेगा, जिंदगी में आगे देखा जाए तो आशा मिलेगी। दाएं-बाएं देखेंगे तो सत्य मिलेगा, लेकिन अगर भीतर देखेंगे तो आत्मविश्वास मिलेगा। जिंदगी में सही रास्ते दिखाने वाला दोस्त है अनुभव। अगला कदम एक सवाल है, लेकिन उठाए गए पिछले कदम के अनुभव उसके जवाब की ताकत है। वैसे पूरा जीवन एक अनुभव है। समस्याएं सदा नहीं रहतीं, लेकिन वे हमारे अनुभव की किताब पर हस्ताक्षर करके चली जाती हैं।
सुख-दुख अतिथि हैं, बारी-बारी आएंगे, चले जाएंगे। अगर वे नहीं आएंगे तो हम अनुभव कहां से लाएंगे। कटु सत्य है कि सलाह के सौ शब्दों से ज्यादा अनुभव की ठोकर इंसान को मजबूती देती है। तजुर्बा इंसान को गलत फैसलों से बचाता है, मगर तजुर्बा भी गलत फैसलों से ही आता है। तजुर्बा अच्छा है, अगर उसका अधिक मूल्य न चुकाना पड़े।
अच्छे फैसले अनुभव से आते हैं, लेकिन बुरे फैसलों से अनुभव आता है। इसलिए पछताना नहीं चाहिए, बल्कि अपनी गलतियों से सबक लेकर आगे बढ़ जाना चाहिए। अनुभव कहता है कि अगर मेहनत आदत बन जाए तो कामयाबी मुकद्दर बन जाती है। अनुभव के लिए मूल्य चुकाना पड़ सकता है, पर जो शिक्षा मिलती है, वह और कहीं नहीं मिलती। अनुभव सच में एक बेहतरीन स्कूल है, बस कमबख्त फीस बहुत लेता है।
अनुभव बताता है कि मुसीबत के समय में दृढ़ निश्चय पूरी सहायता करता है। अनुभव तर्क से परे है। बहुत से लोग राह में पत्थर ही फेंकेंगे, अब ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उन पत्थरों से क्या बनाते हैं- मुश्किलों की दीवार या कामयाबी का पुल। लगन व्यक्ति से वह करवा लेती है, जो वह कर नहीं सकता था।
साहस व्यक्ति से वह करवाता है, जो वह कर सकता है, मगर अनुभव व्यक्ति से वही करवाता है, जो वास्तव में उसे करना चाहिए। हारे हुए की सलाह, जीते हुए का तजुर्बा, खुद का दिमाग और खुद की कोशिश, कभी जिंदगी में हारने नहीं देती। दुनिया का सबसे फायदेमंद सौदा बड़े बुजुर्गों के पास बैठना है, क्योंकि चंद लम्हों के बदले वह बरसों का तजुर्बा दे सकते हैं।
अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों, विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। दूसरों के अनुभव से जान लेना भी मनुष्य के लिए एक अनुभव है। अच्छा निर्णय अनुभव से प्राप्त होता है, लेकिन दुर्भाग्यवश अनुभव का जन्म अक्सर खराब निर्णयों से होता है। किसी व्यक्ति का ज्ञान उसके अनुभव से ज्यादा नहीं हो सकता।
जो लोग पद, प्रतिष्ठा और पैसे से जुड़े हैं, वे केवल सुख में साथ खड़े रहेंगे और जो लोग वाणी, विचार और व्यवहार से जुड़े हैं, वे संकट में भी खड़े रहेंगे। अनुभव व्यक्तित्व की वाणी है, जो कलम या जीभ के इस्तेमाल के बिना भी लोगों के अंतर्मन को छूती है। चरित्र मनुष्य की इमारत का भीतरी द्वार है, तो व्यक्तित्व बाहरी। हम जैसा दिखना चाहते हैं, वैसे ही बन जाएं।
दूसरों को सुनाने के लिए अपनी आवाज ऊंची नहीं करें, बल्कि अपना व्यक्तित्व इतना ऊंचा और मजबूत बनाएं कि हमको सुनने के लिए लोग बेसब्री से इंतजार करें। भाषा एक ऐसा वस्त्र है, जिसे शालीनता से पहनने की जरूरत है। सही व्यक्तित्व न किसी का अपमान करता है और न उसको सहता है।