राजेंद्र प्रसाद

समय, समाज, व्यक्ति और देश के साथ-साथ पूरा संसार बदल रहा है। इस तेजी से बदलते सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवेश में लगभग हर चीज बदल रही है और यहां तक कि व्यक्ति का मन-मस्तिष्क, सोच-विचार और तौर-तरीकों में परिवर्तन की अच्छी और बुरी बयार बह रही है।

अन्य बातों के अलावा बहुत से लोग जिद को लेकर बहुत संजीदा हो गए हैं। गलतफहमी में वे जिद को भी संकल्प या दृढ़ता मानने लगे हैं, जबकि उनमें जमीनी फर्क है। गहराई से सोचें तो जिद और विकार भी साथ कुछ चीजें प्रसाद रूप में आती हैं, जिनमें मनमर्जी, स्वार्थ, संकीर्णता, मूर्खता, लालच, अपमान, अहंकार, अकड़ आदि करने की आदतें भी शुमार हैं।

देखा गया है, जो व्यक्ति जिद का आचरण करता है, वह मनमर्जी को जरूर अपनाता है। जब जन्म और मरण मनमर्जी से नहीं होता तो जीवन की व्यवस्थाएं हमारी मर्जी से कैसे हो सकती हैं? कई बार तथाकथित सिद्धांत परेशानी का कारण बनते हैं। इसलिए हरेक चीज या जिद को सिद्धांत से नहीं बांधना चाहिए। जिद तो अच्छी बात की भी कभी-कभी खतरनाक परिणाम दे जाती है।

जिंदगी में जिद व्यक्ति को सहारा नहीं देती, बल्कि ऐसे गहरे गड्ढे में डाल देती है, जहां से निकलना मुश्किल हो जाता है। इससे ज्यादातर अहंकार, मनमर्जी और मूर्खता में बढ़ोतरी भी होती है। जिद से हुई गलतियों का अहसास केवल पछतावा नहीं है, बल्कि सोच और काम करने का तरीका जिम्मेदार है। उसका सबक तब मूल्यवान है, जब आगे जिद के कारण गलतियां न करें।

वास्तविकता यह भी है कि जिद, गुस्सा, गलती, लालच और अपमान खर्राटों की तरह होते हैं, जो दूसरा करे तो चुभते हैं, पर स्वयं करें तो अहसास तक नहीं होता। श्रेष्ठ वही है, जिसमें जिद नहीं, दृढ़ता हो। यकीनन ज्यादा कुछ नहीं बदलता उम्र के साथ, बस बचपन की जिद समझौतों में बदल जाती है। बहुत सौदे होते हैं संसार में, मगर सुख बेचने वाले और दुख खरीदने वाले नहीं मिलते।

कटु सत्य है कि मूर्ख, अड़ियल और जिद्दी लोग अपने बारे में हमेशा पक्के होते हैं कि वे सही हैं, मगर बुद्धिमान हमेशा सोचते रहते हैं कि कहीं मैं गलत तो नहीं हूं! जिद पर अड़ने के लिए जरूरी नहीं कि हम एक-दूसरे से सहमत हों, लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं कि परस्पर एक-दूसरे या बड़ों का आदर न करें। इससे स्वार्थ का बढ़ना भी बहुत हद तक संभव है।

सभी को साथ रखना चाहिए, लेकिन साथ में कभी स्वार्थ नहीं रखा जाए। कहा भी जाता है कि अगर जीवन में कभी मौका मिले तो सारथी बनने का प्रयास करना चाहिए, स्वार्थी नहीं। मतलबी दुनिया में एक से एक स्वार्थी होते हैं। किसी को नीचा दिखाने में खुद न जाने कितने गिर जाते हैं। कद्र तभी होती है, जब मतलब के रिश्ते और रिश्तों का मतलब समझ में आता है।

स्वार्थ में मतलब की बात सब समझते हैं, पर बात का मतलब कोई नहीं समझता। स्वार्थ और अहंकार जब तक नहीं छोड़ा जाए, तब तक व्यवहार नहीं सुधर सकता। कुछ गलत फैसले जिंदगी का सही मतलब समझा जाते हैं। संसार में कुछ लोग सच्चे सारथी होते हैं और कुछ लोग छिपे स्वार्थी होते हैं। इंसान बहुत स्वार्थी है। पसंद करे तो बुराई नहीं देखता, नफरत करे तो अच्छाई नहीं देखता। सांप अपनी सुरक्षा के लिए डंसता है और इंसान अपने मतलब के लिए। स्वार्थ में अच्छाइयां ऐसे खो जाती हैं, जैसे समुद्र में नदियां।

इंसान जिद के कारण बात-बात पर इतनी गलत सोच बना लेता है कि वह संकीर्णता के रस में डूब जाता है। जहां थोड़ा-सा नरम रुख अपनाने से समस्या खत्म हो सकती है, लेकिन अपने स्वभाव के कारण वह उस समस्या को तो बनाए रखता ही है, साथ ही और जुड़ी हुई समस्याओं को भी आमंत्रित कर लेता है और आपसी संबंधों तक को दांव पर लगा देता है। जिद्दी व्यक्ति अगर लालची हो तो और भी घातक है।

उसे हित-अनहित कुछ नजर नहीं आता। मन में बैठी बात को पूरा करने का नशा होता है, जिससे कई बार विनाश की नौबत दस्तक दे जाती है। उसे अच्छे निभ रहे रिश्तों का भी खयाल नहीं रहता और खटास भी इसी कारण आ सकती है। जबकि यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अपने जन्म के साथ जुड़े नातों के अलावा हम कई ऐसे लोगों के साथ रिश्ते में जाते हैं, जिन्हें हमने चुना होता है, उनमें अपनी संवेदनाओं को झोंका होता है। इसमें जिद ऐसे कारक के रूप में अपनी भूमिका निभाता है, जो कई बार बिना किसी आधार के भी दो लोगों के बीच कड़वाहट घोल जाता है।

अकड़ अगर पकड़ से ज्यादा हो तो गहरे से गहरा रिश्ता भी टूट जाता है। कहा भी जाता है कि शीशा और पत्थर संग-संग रहें तो कोई बात नहीं, मगर शर्त इतनी है कि दोनों जिद न करें टकराने की। स्वभाव की समीक्षा करते रहना चाहिए कि हम कहीं भी जिद्दी न बनें। एक-एक दिन में भी सुधार से बहुत बड़ा बदलाव आता है।

इसलिए बिगड़ती परिस्थितियां जरूर संभालनी चाहिए और जिद को सम्मान या पहचान का विषय नहीं बनाना चाहिए। दुखद है कि बहुत बार पता नहीं क्यों लोग रिश्ते तोड़ देते हैं, लेकिन जिद नहीं। ऐसा करते हुए यह गांठ भी बांध लेनी चाहिए कि पेड़ जब सूख जाता है तो परिंदे भी बसेरा नहीं करते।