वर्तमान दौर आधुनिकता और तकनीक का है। मशीनी युग में पैसा कमाने की होड़ और प्रतिस्पर्धा में अपनापन, मौलिकता, संस्कृति, सभ्यता, संस्कार आदि चकाचौंध के गुबार में लगभग लुप्त हो गए हैं! घर आने वाले मेहमानों का अभिवादन करते हुए पूरी तरह औपचारिकता निर्वाह सभ्यता को कठघरे में खड़ा करती प्रतीत होती है।
छोटे-बड़े का मान-सम्मान, माता-पिता का आदर, बुजुर्गों का सम्मान वगैरह ऐसा लगता है कि पीछे छोड़ दिया गया है। सब असहाय नजर आते हैं। बच्चों के भीतर ऐसा ढांचा बनने की मुख्य जवाबदेही माता-पिता की ही होती है। वे बच्चों को अच्छे संस्कार दे, बड़ों के प्रति सम्मान का भाव रखना सिखाएं, अतिथि का सम्मान करें आदि!
भारतीय संस्कृति को अनवरत जीवंत रखने के लिए माता-पिता को भी बच्चों के सामने घर में बुजुर्गों का सम्मान रखना चाहिए! अक्सर घरों मे बुजुर्ग उपेक्षा के शिकार होते हैं और अपना दर्द लिए परिवार में सिमट कर जीवन बिताते हैं। जबकि बुजुर्गों का हर संभव आदर-सम्मान जरूरी है। अक्सर माता-पिता मोबाइल में इतने लगे रहते हैं कि बच्चे भी संस्कार से दूर भागते हैं।
जबकि होना यह चाहिए कि बच्चों की मोबाइल लत को माता-पिता प्रेम और परिवार में समय देकर मुक्त करने की सार्थक सोच रखें। बच्चों को साथ में लेकर भोजन, चिंतन, मनन, पारिवारिक परंपराएं आदि का ज्ञान कराना जरूरी है। बच्चों मे उचित संस्कार ही उनके भविष्य को प्रगति के मार्ग पर ले जाएंगे। यह पाठशाला घर ही होता है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि अच्छे संस्कारों के अभाव में परिवार बिखर जाते हैं, टूट जाते हैं। फिर देर से नींद खुलने पर एक दूसरे पर दोषारोपण के सिवाय और पछताने के अलावा कुछ भी नहीं रह जाता! बच्चों को कर्तव्य और जवाबदेही का पाठ पढ़ाएं। निश्चित ही भविष्य उज्ज्वल होगा!
योगेश जोशी, बड़वाह, मप्र।
खुशी का ठौर
मन में एक जिज्ञासा हो सकती है कि कहां बसती है खुशी। असली खुशी हमारे भीतर बसती है। हम अपेक्षाएं छोड़ कर वर्तमान में जिएं, असफलता में सफलता को देखें तो परिणाम इसके खुशी के आएंगे। खुशमिजाजी आदमी का बेशकीमती गहना हैं, क्योंकि बाहरी खुशी तो क्षणिक होती है, लेकिन भीतर की खुशी बहुत आनंद और सुकून देने वाली होती है। जीवन को खुशी देने के लिए हर वक्त तैयार रहना चाहिए। यह बहुत ही सार्थक बात है और सत्य को खोजने की नई राह भी दिखलाती है।
यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि जीवन को कैसे खुश बनाएं। यानी जीवन में कैसे खुशियां भरें। इधर-उधर बहुत देखने और दुनिया के रंगमंच आदि पर भी नजरें डाले के बाद भी कहीं से इसका उत्तर मिल पाना संभव नहीं हो पाता। फिर ध्यान आ सकता है कि भगवान महावीर ने अनेकांत का सिद्धांत दिया। तो क्यों नहीं इसी को अपना कर अपने प्रश्न का पाया जाए। हर आत्मा की खुशी एक दूसरे से अलग होती है।
अपनी खुशी के अनुसार सबको जीने का हक होता है। इसलिए जीवन को खुश बनाने की कोशिश भी स्वयं को करनी होगी। बस अपनी आत्मा के जुनून को पहचानना जरूरी है। वह जुनून ऐसा होता है, जिसके पूरे होने से आत्मा को सुकून ही सुकून मिलता है। वह ऐसा कोई भी पल जो दिया जा सकता है, जिसमें शांति मिले और उसे पाने के लिए सदैव तत्पर रहा जाए। फिर जीवन खुद ही खुश बन जाएगा, जहां होगा सिर्फ आनंद। इसमें किसी दूसरे की जरूरत नहीं होगी। भीतर ही भीतर जीवन को खुश बनाया जा सकेगा।
प्रदीप छाजेड़, नागौर, राजस्थान।
प्राथमिकता की कसौटी
हम खुद तो अच्छा करना चाहते हैं, पर दूसरों को अच्छा करते हुए नहीं देखना चाहते है। कमियां ढूंढ़ते हैं। चार वाक्यों को जोड़कर एक कहानी बना लेते हैं। असल में यह सब करते हुए हम किसी अन्य व्यक्ति की नजर में गलत होने से पहले खुद की नजर में गलत हो रहे होते हैं। जबकि दोहरापन, जलन, ईर्ष्या, छल-कपट- ये सब एक दिन व्यर्थ लगने लगते हैं। अपने विकास में इन चीजों का कोई अर्थ नही रहता।
आजकल लोग आसमान की तरफ देखना भूल गए हैं। सप्तर्षि को ढूंढ़ना भूल गए हैं। टूटते हुए तारों को देख कर इच्छित चीज मांगना भूल गए हैं। असल में इंसान, इंसान होना भूल गया है। याद रखना चाहिए कि कुछ भी बनने से अधिक जरूरी है एक इंसान बनने को ज्यादा प्राथमिकता देना। खुद के लिए अच्छे बनना चाहिए। अपने कर्तव्य के प्रति, अपनी पढ़ाई-लिखाई के प्रति, अपने आने वाले कल के प्रति। इस प्रश्न से मुक्त होकर कि आज के दौर में अच्छे लोगों की कद्र क्यों नही है।
नीलाक्ष, वाराणसी।
अनोखी पहल
एक समय था जब मनुष्य गांव-शहरों में और वन्यजीव जंगलों में बसा करते थे। लेकिन आज वह स्थिति नहीं रह गई है। इसकी एकमात्र वजह वन्यजीवों को जंगलों में पर्याप्त भरण-पोषण नहीं मिल पाना है। उत्तराखंड में ‘बीज बम’ का जो प्रयोग हुआ है, वह सार्थक सिद्ध होता दिख रहा है, क्योंकि विभिन्न प्रजाति के जीवों को जब फल, सब्जी आदि अपनी रुचि के अनुसार जंगल में ही प्रचुर मात्रा में मिल जाएं तो वे भला आबादी की ओर क्यों रुख करेंगे?
वन्यजीव का संरक्षण देश में एक बड़ी आवश्यकता है। ‘बीज बम’ का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के सान्निध्य में जंगलों में ही कद्दू, तोरी, मक्का शहतूत आदि के बीज बिखेर कर उन्हें फलदायी बनाया जाना है, ताकि जीवों को भरपेट भोजन जंगल में ही उपलब्ध हो सके।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, इंदौर, मप्र।
चीन को जवाब
चीन ने बार-बार अरुणाचल प्रदेश के लोगों को नत्थी (स्टेपलर) वीजा देकर भारत और विश्व को यह संकेत देने का प्रयास किया है कि अरुणाचल तिब्बत का अंग होने के कारण चीन का हिस्सा है। इस बार भी उसने चीन में होने वाली एक खेल स्पर्धा में अरुणाचल प्रदेश के खिलाड़ियों को नत्थी वीजा दिया है। प्रतिक्रियास्वरूप भारत ने अरुणाचल के खिलाड़ियों को चीन जाने से रोक दिया।
इससे भारत ने अपने क्षोभ को तो प्रकट कर दिया, लेकिन खिलाड़ियों को जो निराशा हुई, वह क्षति भी नहीं होनी चाहिए। इसके लिए भारत को भी चीन की हरकतों के मद्देनजर उचित तरीके से जवाब देना चाहिए।
नरेंद्र टोंक, मेरठ।