पत्रकारिता, सामाजिक संघर्ष और कविता—तीनों माध्यमों में जीवन की अलग-अलग परतें झलकती हैं। अनिल माहेश्वरी की ‘पत्रकारिता का रोमांच’ हमें जमीनी सच्चाई और मीडिया की जटिलताओं से रूबरू कराती है। मनीषा आवले चौगांवकर की ‘एक अनिर्मित पथ मेरा’ समाज में स्त्रियों की स्थिति और वैचारिक लेखन की संवेदनशीलता को सामने लाती है। वहीं, सरला माहेश्वरी की ‘ओ शरद के चांद’ कविता के माध्यम से जीवन और यथार्थ का गहरा विमर्श प्रस्तुत करती है। तीनों किताबें मिलकर पाठक को सोचने, महसूस करने और आत्मनिरीक्षण करने के लिए प्रेरित करती हैं।

पत्रकारिता का रोमांच

सिंथेटिक दूध का अनैतिक व्यवसाय आज आसानी से पैसा कमाने का हर जगह फलता-फूलता व्यवसाय बन गया है। लेकिन अनिल माहेश्वरी ने सन 1993 में इस खतरनाक मिलावट की स्थिति का जमीनी आकलन कर अपनी रपट पेश कर दी थी। इसके लिए उन्होंने मिलावटी यानी सिंथेटिक दूध के चलन को लेकर कई खुलासे किए थे।

एक खुलासा यह भी था कि हर बड़े त्योहार, मसलन दिवाली, दशहरा और होली आदि पर मिलावटी दूध के बारे में खूब खबरें आती हैं। इन खबरों के पीछे कारपोरेट दिमाग चलता रहता है। वे लोग ऐसे अवसर पर अपने दुग्ध उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए खुले दूध की गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न लगवाया करते हैं। यह बात लेखक इसलिए दावे के साथ कह पाए कि उन्होंने मौके पर बात को समझने का प्रयास किया था।

अपनी इस पुस्तक में उन्होंने पत्रकारिता के उन अवरोधों को बताया है, जिनका पता जमीन पर ही लगता है। अनिल माहेश्वरी की पुस्तक ‘पत्रकारिता का रोमांच’ एक पत्रकार की चूक और उसकी सफलता के बीच की महीन रेखा को दर्ज करती है। एक वरिष्ठ पत्रकार के अनुभव से पत्रकारिता में इस क्षेत्र में आने वाले नए लोग काफी सीखेंगे।

प्रकाशक: सेतु प्रकाशन प्रा. लि., सी-21 सेक्टर-65, नोएडा<br>मूल्य: 425 रु

एक अनिर्मित पथ मेरा

आज हम विरोधाभासी समय में जीवन जी रहे हैं। समाज में स्त्रियों की स्थिति में वास्तव में कितने बदलाव हुए, यह विचारणीय है। अक्सर हम ज्ञान और सकारात्मक ऊर्जा की बातें करते हैं, लेकिन असली संघर्ष को संघर्षों की नकली कथाओं से अलग करके देखना चाहिए। स्त्रियों की यह दुनिया पृथ्वी पर बसने वाली अलग-थलग नहीं, बल्कि पुरुषों में एक साथ गुंथी है। उनका इतिहास मनुष्य के इतिहास का अविभाज्य हिस्सा है।

साहित्य की दुनिया में हाल के वर्षों में लेखिकाओं के बीच कविता-कहानी लेखन में रुचि तो खूब देखी गई, लेकिन वैचारिक गद्य लेखन की दिशा में कमी महसूस की गई थी। इस कमी को दूर करने का कार्य युवा लेखिका मनीषा आवले चौगांवकर ने किया है। इनके वैचारिक निबंधों से गुजरते हुए यह महसूस होता है कि लेखिका के पास एक सजग संवेदन दृष्टि है, जिसके सहारे वे अपने समकालीन समय को देख रही हैं।

किसी भी रचनाकार की कसौटी उसका गद्य होता है। वह अपनी भावनाओं को किस तरह अभिव्यक्त कर रहा है, यह उसके गद्य से ही पता चलता है। इससे उसकी सोच का भी पता चलता है कि वह समाज को किस दिशा में ले जाना चाहता है। वैचारिक निबंध एक तरह से सामाजिक दशा-दिशा का आईना होते हैं और इस कसौटी पर लेखिका की यह किताब महत्वपूर्ण है।

प्रकाशक: इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड, सी-122 सेक्टर-19, नोएडा
मूल्य: 400 रु

ओ शरद के चांद

विज्ञान और कविता का अंतर यही है कि विज्ञान प्रमाण की चिंता करता है, जबकि कविता विमर्श और अनुभव को व्यक्त करती है। कविता के लिए उस यथार्थ का क्या महत्व जो कोई विमर्श न पैदा करे। केवल सौंदर्यात्मक आनंद या भावनात्मक संप्रेषण कविता के विषय नहीं हो सकते। इस दृष्टि से सरला माहेश्वरी का कविता संग्रह ओ शरद के चांद विशेष महत्व रखता है।

कवयित्री का मानना है कि कविता अगर हमें ही प्रकाशित नहीं कर पाती है, तो वह किसी भी अर्थ का संप्रेषण नहीं कर सकती। कविता का यह आत्मप्रकाश किसी बाहरी अनुकरण से नहीं, स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है। इस संदर्भ में ‘शब्द और हम’ कविता की इन पंक्तियों पर गौर किया जा सकता है:

‘शब्द प्रकाश है/ जो सुनते हैं हम/ शब्द नहीं/ बोलते हैं हम/ होंगे कहां शब्द/ गर नहीं होंगे हम! शब्द की सूरत सीरत/ सब हैं हम/ फिर क्यों उन्हीं से/ डर जाते हैं हम!’

इसके जरिए जीवन में संजीदगी के कुछ स्रोतों पर विचार करने की कोशिश की गई है। प्रतीकों, रूपकों और बिंबों के माध्यम से निरंतर परिवर्तित होती कविता की लाक्षणिक गतिशीलता उसकी जीवंतता का परिचायक है। वहीं कभी-कभी इनसे ही उसकी जड़ता का प्रदर्शन होता है। इस संग्रह की कविताओं में इन सूक्ष्मताओं को दर्ज करने की संवेदना स्पष्ट दिखाई देती है।

प्रकाशक: सूर्य प्रकाशन मंदिर, ए-1, जवाहर नगर, बीकानेर
मूल्य: 300 रु