मानव जीवन अनमोल है। शास्त्रों की मानें तो चौरासी लाख योनियों के बाद मानव शरीर मिलता है। हमारे माता-पिता हमारे लिए कितनी मन्नतें और दुआएं मांगते हैं और हमारे लालन-पालन में कितने कष्ट उठाते हैं। हमारी शिक्षा-दीक्षा पर अपनी हैसियत से अधिक खर्च भी करते हैं। वे हमें एक बेहतर और कामयाब इंसान के रूप में देखना चाहते हैं। मानव जीवन के कुछ मायने हैं। हम बुद्धि और कौशल में अन्य प्राणियों से बेहतर हैं। फिर भी अपना समय परनिंदा, ईर्ष्या, राग-द्वेष, शिकायतों और व्यर्थ के कामों में खोते रहते हैं। इस तरह जीने को जीना नहीं माना जा सकता। इस सत्य को स्वीकार करके अपना परिष्कार करने की आवश्यकता है।
अपनी प्राथमिकताएं सुनिश्चित करनी चाहिए कि हमें क्या करना है। उससे ज्यादा हमें यह पता होना चाहिए कि हमें क्या कुछ नहीं करना है। जब हम किशोर से युवा होने की ओर बढ़ते हैं, तब हमारे विचारों में प्रौढ़ता और परिपक्वता आने लगती है। हम किसी विषय, वस्तु, विचार या घटना आदि के प्रति अपना नजरिया बनाने लगते हैं। सच्चे अर्थों में यही दृष्टि निर्माण कहलाता है। यहां हमारे परिवार, गुरुजनों, मित्रों और हमारे द्वारा पढ़ी जा रही किताबों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। यही वे स्रोत हैं, जो हमारे दृष्टिकोण को आधार और आकार देते हैं। हमें सावधानी से इस दिशा में चिंतन-मनन करना चाहिए।
आमतौर पर विद्वानों का समय साहित्य को पढ़ने और मनोविनोद के अन्य साधनों में व्यतीत होता है। इसके विपरीत ऐसे भी बहुत सारे लोग हैं, जिनका समय व्यसनों या बुरी आदतों, सोने और झगड़ा करने में व्यतीत होता है। हमें अपने बारे में गौर करना चाहिए कि हम किस पायदान पर खड़े हुए हैं। पशुओं से अलग होने के लिए कुछ लिप्साओं से अलग होना होगा, तभी हम मनुष्य कहलाने के सच्चे अधिकारी कहे जाएंगे। हम विनम्र हों, मृदुभाषी हों, दूसरों के प्रति संवेदनशील और निज कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक और सचेत हों। सहयोग और सहकार की भावना से प्रेरित हों, मानवीय गुणों को धारण करें। प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें। किसी का अहित करने का विचार मन में न लाएं। मन- वचन और कर्म से अहिंसक रहें, इसी में हमारे जीवन की सार्थकता है। ऐसा करके हम एक सुंदर, सुखद और सहयोगी समाज का निर्माण कर सकते हैं।
काम करते समय अभ्यास पर होना चाहिए मुख्य ध्यान
सोद्देश्य जीवन सरल, सहज और सुंदर होता है। उसे अपने लक्ष्य को पाने की ललक बनी रहती है। वह निराशा में भी आशा की किरण ढूंढ़ लेता है। असफलताओं से घबराता नहीं है। लगन और परिश्रम को अपना पाथेय बना लेता है और जीवन यात्रा में अविराम चलता रहता है। प्रतिकूल धाराओं यानी परिस्थितियों में विचलित हुए बिना जो योजनाबद्ध तरीके से काम करता रहता है, वही विजेता कहलाता है। भारत के एक कामयाब क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का कहना है कि हमें अपना ध्यान परिणाम पर नहीं, बल्कि प्रक्रिया पर केंद्रित रखना चाहिए। परिणाम अपने आप बेहतर होगा। काम करते समय हमारा ध्यान अपने सबसे अच्छे अभ्यास पर होना चाहिए। सकारात्मक सोच और विवेकपूर्ण निर्णय हमेशा हमें आगे रख सकते हैं। जब हम ‘स्व’ से अधिक ‘पर’ के लिए सोचते हैं तो हमारी नीयत पर नियति मेहरबान हो सकती है।
एक पहलू यह भी है कि हमें अपने सभी कार्य और व्यवहार अच्छे लगते हैं और यह स्वाभाविक है, पर हमारे कार्य-व्यवहार से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कितने लोग जुड़े हुए हैं, उन पर इसका कैसा प्रभाव होगा और वे हमारे बारे में क्या सोचते होंगे, बस इतना ध्यान रख लेना चाहिए। हम सही दिशा में आगे बढ़ने लगेंगे। जिस दिन से आप खुद को समझदार और जिम्मेदार नागरिक के सांचे में ढालना शुरू कर देंगे, हमारे जीवन की दशा और दिशा दोनों ही बदल जाएंगे। प्रगति के द्वार खुलने लगेंगे।
दूसरों की खुशी से हमें मिलेगी खुशी
दिन के चौबीस घंटे सबके लिए समान हैं। किसी से वक्त काटे नहीं कटता तो कोई सोकर और कोई रो-रो कर वक्त काटता है। मगर बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें यह समय कम पड़ जाता है। सफलता की इबारत ऐसे लोग ही लिखते हैं। कब, कहां, कितना समय देना है, यह स्पष्ट होना चाहिए। जीवन में स्पष्टता बहुत जरूरी है। वह बातों में, काम में और व्यवहार में आ जाए तो जीवन जीने योग्य हो जाए। काम करने के बाद अपने बारे में हमारी राय जब बेहतर होती है, तब हमारी मनोदशा को चेहरे पर पढ़ा जा सकता है। वहां एक संतोष से भरा मुस्कान दिख सकता है। संसाधनों को सहेजते हुए, सबको साथ लेकर, वस्तुओं का सीमित उपभोग करते हुए, परस्पर संबंधों में खुशियां ढूंढ़ते हुए समझदारी के साथ जीवन को जीना ही सबसे बड़ी कला है। आनंदमय जीवन ही हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य है। अपना संतोष जरूर प्राथमिक होना चाहिए, लेकिन इसका स्रोत यह हो कि हमारे विचार और व्यवहार से दूसरों को थोड़ी खुशी मिले, अपने व्यक्तित्व का हनन होता न लगे। हमसे मिलने वाली दूसरों की खुशी से हमें जो खुशी मिलेगी, उसका स्वाद अलग होगा, हमारे भीतर गहरे तक उतरेगा।