एक घना जंगल था। उसके बीचों-बीच एक सुंदर नदी बहती थी। उसकी जलधारा पूरे वातावरण को मोहक बनाए रखती थी। नदी का नाम मोहिनी था। कल-कल, छल-छल करती इठलाती जलधारा किसी का भी मन अपनी ओर खींच लेती। जंगल के सारे जीव-जंतु सब उसी नदी का मीठा निर्मल नीर पीकर अपनी प्यास बुझाते। जो कोई भी एक बार नदी का जल पी लेता वो मोहिनी की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाता था। मोहिनी भी सबकी प्यास बुझा कर स्वयं को धन्य समझती थी। वो इसे अपना धर्म मानती, प्यासे की प्यास बुझाने में उसे बड़ा आनंद आता। उसे स्वयं पर बिल्कुल भी घमंड नहीं था।
मोहिनी के तट पर आम का एक वृक्ष था। उसका नाम आमी आम था। आमी के फल बहुत रसीले और मीठे होते थे। आम के मौसम मेंजंगल के सभी पशु-पक्षी आमी की टहनियों में चढ़े रहते। आमी भी इस दौरान अपनी टहनियों को झुका कर जंगल के सभी वासियों को फलों का उपहार देता। जंगल के जीव और पक्षी आमी की खूब तारीफ करते थे। इससे आमी को खूब प्रसन्नता होती थी। इस सबके बावजूद आमी ने हमेशा अपनी विनम्रता बनाए रखी।
आमी और मोहिनी में बड़ी गहरी दोस्ती थी। आमी की जड़ें मोहिनी की अंजुरी से मीठा जल सोख कर ही अपनी प्यास बुझाती थीं। मोहिनी के जल की मिठास का कारण आमी के रसीले फल भी थे। जो समय-समय पर मोहिनी की गोद में गिर जाया करते थे। आमी और मोहिनी की मित्रता पूरे जंगल में मशहूर थी।
जंगल में बद्दू बंदर भी रहता था। वह आमी और मोहिनी की दोस्ती से बहुत चिढ़ता था। उसने आमी और मोहिनी की दोस्ती खत्म करने के लिए एक चाल चली। एक बार बद्दू आमी की डाली पर चढ़ा हुआ था। वो जोर-जोर से आमी की टहनियों को हिलाता, और उसके पत्तों को नोच रहा था। इससे आमी को बहुत कष्ट हो रहा था। थोड़ी देर तक परेशान होने के बाद आमी ने कहा, ‘ये क्या कर रहे हो। बद्दू तुम बहुत बुरे हो। तुम्हें फल खाना हो तो खाओ, पर मेरी पत्तियों को इतनी बुरी तरीके से तो ना नोचो।’
‘मोहिनी ठीक कहती थी। आमी खुद को बड़ा परोपकारी समझता है। लेकिन वो ऐसा है नहीं। बस दिखावा करता है, दिखावा।’ बद्दू अपनी चाल का पासा फेंकते हुए बोला। ‘अच्छा तो ये सब कहती है मोहिनी मेरे बारे में। मैं तो उसे अपना सबसे अच्छा दोस्त समझता हूं।’ आमी ने आश्चर्य करते हुए कहा। बद्दू मोहिनी की बातों को सुना अनसुना कर वहां से चला गया। लेकिन आमी के मन में मोहिनी के लिए गांठ पड़ चुकी थी।
उधर बद्दू मोहिनी के तट पर जाकर पानी पीता है और मोहिनी के आंचल में ही कुल्ला कर देता है। उसमें थूकता है। मोहिनी को बहुत बुरा लगा। इस तरह की हरकत ने उसे बहुत दुखी किया। उसने कहा, ‘अरे बद्दू भैय्या ये सब क्या है। अगर तुम्हें पानी पीना है तो आराम से पियो। पर ये गंदगी तो ना करो।’
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‘हां! तो आमी सही था। वो बिल्कुल ठीक ही कह रहा था, कि मोहिनी को अपने मीठे पानी पर बहुत ज्यादा घमंड है। वो एक घमंडी नदी है’। बद्दू ने अपनी चाल का दूसरा तीर निशाने पर छोड़ते हुए कहा। ‘अच्छा! मेरा दोस्त ये सब कुछ सोचता है मेरे बारे में। मुझे विश्वास नहीं होता है। अभी सबक सिखाती हूं उसको।’ मोहिनी ने गुस्से में कहा। बद्दू मोहिनी के गुस्से को भांप चुका था। वो तुरंत वहां से भाग गया।
अब आमी और मोहिनी एक-दूसरे के आमने-सामने थे। उन दोनों के माथे पर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था। वे एक-दूसरे को भला-बुरा बोल रहे थे। बिना सोचे विचारे वे अपनी दोस्ती खत्म करने पर तुले थे। ठीक उसी समय वहां से एक साधु महाराज गुजरते हैं। वे दोनों से लड़ने का कारण पूछते हैं। दोनों ही अपनी-अपनी बात साधु महाराज के सामने रखते हैं। उन दोनों की बात सुनकर साधु महाराज मुस्कुराए। थोड़ी देर सोचने के बाद वे बोले, ‘आमी और मोहिनी तुम दोनों आपस में लड़ नहीं रहे, बल्कि लड़वाए गए हो।’
आमी और मोहिनी को साधु की बात सुन कर आश्चर्य हुआ, उन्होंने एक स्वर में प्रश्न किया, ‘वो कैसे महाराज’। ‘अरे बद्दू ने तुम दोनों के कान भरे हैं। तुम दोनों से एक-दूसरे के बारे में बुरा-भला कहा, और तुम उसकी बातों में आ गए। क्या तुम दोनों ने एक-दूसरे से ठंडे दिमाग से बात करने की कोशिश की?’
दोनों ने शर्मिंदा होकर न में जवाब दिया। साधु महाराज ने दोनों के शर्मिंदा भरे स्वर को सुन कर कहा,‘यही तो है दिक्कत। कोई भी आकर हमारे कान भर जाता है और हम लोग आपस में लड़ने लग जाते हैं। बिना विचार किए कि आखिर सच्चाई क्या है।’
अब आमी और मोहिनी को सच का अहसास हुआ। दोनों ने एक-दूसरे से माफी मांगी, और फिर से दोस्ती का हाथ बढ़ा लिया। इसी खुशी में मोहिनी ने साधु महाराज को पीने को मीठा जल दिया। आमी ने रसीले आम भेंट किए। साधु महाराज जल पीकर और मीठे आमों से पेट भर कर अलख निरंजन करते हुए सघन वन की ओर चले गए।