शंभुनाथ ‘रंगभूमि’ (1925) का अंधा सूरदास उजबक-सा दिखता है, पर पहला आम आदमी है जो अपनी जमीन बचाने के लिए…
वेंकटेश कुमार हिंदी में चार सौ से भी ज्यादा साहित्यिक पत्रिकाएं छपती हैं। लेकिन इस देश में एक भी ऐसी…
चांद खां रहमानी अपूर्वानंद ने ‘ओबामा का गांधी-स्मरण’ (8 फरवरी) में बहुत साहसिक ढंग से सारगर्भित बात कही है। ‘घृणा…
सुधीर चंद्र आज खुशी का दिन है। जीत का दिन। अब तक की जिल्लत और बेचारगी को भुला, अच्छे दिन…
सय्यद मुबीन ज़ेहरा लोगों ने बहुत सोच-समझ कर एक ऐसी पार्टी को सरकार चलाने की जिम्मेदारी सौंपी है, जो दिल्ली…
तरुण विजय घृणा, विद्वेष और घनीभूत ईर्ष्या के बिना क्या राजनीति हो सकती है? उत्तर प्रदेश में जब पचास के…
अपूर्वानंद ‘भारत में पिछले कुछ समय में हर प्रकार के मतावलंबियों को मात्र उनके विश्वास के कारण दूसरे मत के…
कुलदीप कुमार ‘‘महात्माजी, जो कुछ उम्मीद है, बाला साहब देवरस से है। वे जो करेंगे वही आपके लिए होगा। वैसे…
अशोक लाल खुद रामलला के वकील, हमारे कानून मंत्री, रविशंकर प्रसादजी ने मन को एक नूतन दिव्य प्रकाश से धन्य…
गणपत तेली वीरेंद्र जैन ने ‘गुलामी का नाहक भय’ (1 फरवरी) लेख में बताया है कि अभी भाषिक गुलामी की…
अशोक वाजपेयी यह लगभग अभूतपूर्व है, कम से कम हमारे आधुनिक समय में: प्रसिद्ध उद्योगपति नारायणमूर्ति के बेटे ने अपनी…
क्षमा शर्मा चुनाव के दिनों में जितने व्यस्त राजनीतिक पार्टियों के नेता-कार्यकर्ता होते हैं, उससे कम अखबार या टीवी वाले…