
भाषा हमारे मानस को और उसके साथ हमारे समाज को गढ़ने का काम करती है।
हम इतनी देर से आपस में ही बात कर रहे हैं। चलो, उनकी दुकान पर चल कर इसका विरोध करते…
‘अज्ञेय इन्टेंशनली प्राइवेट आदमी थे।’ यह गगनभेदी टिप्पणी ‘कलम का सिपाही’ लिखनेवाले मुंशी प्रेमचंद के छोटे बेटे अमृतराय ने कलम…
बीसवीं सदी के जो मूल्यबोध इक्कीसवीं सदीं में धूमिल किए गए उनमें ‘आलोचना’ भी है। अपने जन्म के साथ ‘आलोचना’…
पलक झपकते ही सब कुछ हो गया था।
आदत, उपभोक्ता और बाजार की तिगड़ी में एलन मस्क ने मुनाफे का तड़का लगा दिया। एलन मस्क ट्विटर के उपभोक्ताओं…
साहित्य अनेक रूपों में अपने आप में पर्याप्त है। जहां तक साहित्य के निर्माण का सवाल है, उसके लिए संवेदनशील…
सब याद रखा जाएगा…नागरिकता संशोधन कानून विरोध प्रदर्शन से लेकर किसान आंदोलन तक में इंटरनेट के जरिए कई ऐसी कविताएं…
पंडित जी।’‘जी मालकिन।’‘छठ व्रत का दिन नजदीक आ गया, पंचू ने अब तक सूप-दौरा नहीं पहुंचाया।
ज्वाला प्रसाद ने अपनी मिचमिचाती आंखों से देखते हुए कहा- ‘गणेशी, अभी धुंआ उठना भी शुरू नहीं हुआ।’