जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें पूनम पांडे के विचार।
जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें चंदन कुमार चौधरी के विचार।
जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें राजेंद्र बज के विचार।
जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें एकता कानूनगो बक्षी के विचार।
AI ने हमारी जिंदगी को जितना आसान बनाया है, उतना ही यह सवाल भी उठाया है कि क्या भविष्य में…
जीवन के हर रंग में ईमानदारी की दरकार होती है। इसके बिना जीवन बनावटी और काले लोहे पर दिखावे के…
अगर ‘काफी अकेला हूं’ को इस तरह लिखा जाए- ‘अकेला काफी हूं’ और इसके बाद देखा जाए तब समझ में…
मनुष्य को यह स्वीकार करना होगा कि अतीत को बदला नहीं जा सकता। जो कुछ भी हुआ, अच्छा या बुरा,…
दुर्घटना से देर भली’ का संदेश भी हमारी सुरक्षा के लिए ही है। धीरे चलें, आंख-कान खुले रख कर चलते…
यह एक प्रकार का प्रतीक हो सकता है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपने चेहरे…
जब व्यक्ति का स्वयं पर ही विश्वास नहीं रख पाता, तो वह आत्मसम्मान की कमी महसूस करने लगता है और…
इक्कीसवीं सदी में सभ्यता का विकास-क्रम इस पायदान पर पहुंच गया दिखता है, जिसमें ऐसे सवाल थोड़े विचित्र लगेंगे कि…