self awareness, empathy, human behavior, self knowledge
दुनिया मेरे आगे: क्या हम सच में दूसरों को जानते हैं – या सिर्फ अपने मन का चित्र देख रहे हैं? क्या ‘सब जानने’ का भ्रम ही हमें सीखने से रोकता है?

जनसत्ता अखबार के स्तम्भ ‘दुनिया मेरे आगे’ में आज पढ़ें एकता कानूनगो बक्षी के विचार।

जनसत्ता- दुनिया मेरे आगे
दुनिया मेरे आगे: ईमान की राह से जब मन भटकाने लगे, तब खुद को कैसे संभालें, एक सच्चे और सादे जीवन की सबसे बड़ी कसौटी

जीवन के हर रंग में ईमानदारी की दरकार होती है। इसके बिना जीवन बनावटी और काले लोहे पर दिखावे के…

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दुनिया मेरे आगे: अतीत का बोझ क्यों ढो रहे हैं हम? जीवन को हल्का बनाने के 3 आसान उपाय

मनुष्य को यह स्वीकार करना होगा कि अतीत को बदला नहीं जा सकता। जो कुछ भी हुआ, अच्छा या बुरा,…

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दुनिया मेरे आगे: सुख-दुख का गणित सरल है, जब बारिश नहीं गिनते, तो संकट क्यों गिनें? बस अवसरों और उपहारों को याद करें, जीवन हो जाएगा आसान

दुर्घटना से देर भली’ का संदेश भी हमारी सुरक्षा के लिए ही है। धीरे चलें, आंख-कान खुले रख कर चलते…

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दुनिया मेरे आगे: मुखड़े पर मुखड़ा, क्या हमारा असली चेहरा कहीं खो रहा है? नकली और असली का मनोवैज्ञानिक ताना-बाना

यह एक प्रकार का प्रतीक हो सकता है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपने चेहरे…

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दुनिया मेरे आगे: खुशी और आजादी, संबंधों में मधुरता कायम रखने के लिए त्याग की होती है जरूरत

जब व्यक्ति का स्वयं पर ही विश्वास नहीं रख पाता, तो वह आत्मसम्मान की कमी महसूस करने लगता है और…

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