दुनिया मेरे आगे: सान्निध्य की स्नेहिल छांव से दूर हो रहे बुजुर्ग

एकल परिवार की अवधारणा ने एकल संतान तक ही सीमित रहने की मनोवृत्ति विकसित की है। इसका परिणाम यह है…

दुनिया मेरे आगे: विस्तार और संकुचन, जीवन को खूबसूरती से समेटना और संभावनाओं को जन्म देना है बड़ी बात

समेटने की प्रवृत्ति प्रकृति के भीतर भी देखने को भरपूर मिलती है। एक ओर वह विस्तार भी कर रही होती…

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दुनिया मेरे आगे: विवेक के साथ विनम्रता की जरूरत, शिक्षा का आधार है ज्ञान और डिग्री

शिक्षा का औपचारिक ढांचा तभी सार्थक है, जब वह हमें डिग्री के साथ-साथ ज्ञान और विवेक भी प्रदान करता है।…

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दुनिया मेरे आगे: भरोसे की शक्ति और मन की गांठ, इंसान को कमाना पड़ता है अपने हिस्से का विश्वास

उम्मीदें टूट रही हैं। मन में गांठें पड़ रही हैं। रिश्तों में मनमुटाव का ऐसा असर हो रहा है कि…

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दुनिया मेरे आगे: स्वाद बनाम सेहत, जश्न में फास्ट फूड बनाम पुराने समय का हलवा पूरी और पुदीने की चटनी

यह बेवजह नहीं है कि पारंपरिक भोजन और भोजन शैली की जगह अब तेजी से सिकुड़ती जा रही है। लोगों…

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दुनिया मेरे आगे: पहचान का संकट, जहां हमें पहुंचना था, वहां हमसे पहले पहुंच रहा बाजार

जीवन जीने के लिए करोड़ों की संपत्ति नहीं, बल्कि रिश्तों में आपसी सद्भाव, प्रेम, विश्वास और एक-दूसरे के प्रति सम्मान…

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दुनिया मेरे आगे: चरित्र मनुष्य की इमारत का भीतरी द्वार है तो व्यक्तित्व बाहरी

सुख-दुख अतिथि हैं, बारी-बारी आएंगे, चले जाएंगे। अगर वे नहीं आएंगे तो हम अनुभव कहां से लाएंगे। कटु सत्य है…

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