डॉ. मुनीश रायजादा
इंडिया अगेेंस्ट करप्शन (आईएसी )। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम। जिसके गर्भ से आम आदमी पार्टी (आप) का जन्म हुआ। लाखों लोग अपनी रोजी-रोटी छोड़ कर आईएसी के साथ सड़कों पर उतर गए थे। भ्रष्टाचार मुक्त भारत की मांग करते हुए। जब आप अस्तित्व में आई तो ईमानदार राजनीतिक पार्टियों की कमी पूरी करने का लक्ष्य रखा गया। यह पार्टी लाखों कार्यकर्ताओं के समर्पण और बिना एक भी पैसा लिए की गई मेहनत का नतीजा थी। पिछले साल फरवरी में जब पार्टी को दिल्ली चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत मिला तो ऐसा लगा कि पार्टी राजनीति को साफ-सुथरी करने की मूल भावना को साकार करने के लिए तैयार है। एक सपने के साथ सफर शुरू हुआ। पर अब हालत यह है कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व के प्रति बगावत तक हो चुकी है।
बीते कुछ महीनों में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिससे पार्टी के मूल मूल्यों को लेकर सवाल उठाए गए। इनमें से एक बात जेडीयू को खुला समर्थन देना भी था। पार्टी के अंदर विरोध के स्वर दबाए जाने लगे। महाराष्ट्र इकाई को भंग किया जाना भी इसी का एक उदाहरण है। इस कदम के बाद मयंक गांधी जैसे आवाज उठाने वाले नेता ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दिया। ऐसे माहौल में आप की नेशनल काउंसिल की बैठक (23 नवंबर को) काफी अहमियत रखती है। नेशनल काउंसिल पार्टी की सबसे बड़ी इकाई है और राष्ट्रीय कार्यकारिणी चुनने व संविधान में बदलाव करने जैसे बड़े अधिकार इसके पास हैं। इसकी बैठक में शामिल होने के लिए कुछ गिने-चुने सदस्यों को ही न्योता भेजा गया। पार्टी के संविधान के मुताबिक 33 फीसदी हाजिरी के साथ ही कोरम पूरा हो जाता है और बैठक की जा सकती है। इस नियम का फायदा उठाते हुए चुनिंदा सदस्यों को ही बैठक में बुलाया गया। पार्टी संविधान में यह भी लिखा है कि नेशनल काउंसिल की बैठक का एजेंडा कम से कम 21 दिन पहले बांटना होगा, ताकि सदस्यों को तैयारी का मौका मिले। लेकिन इस नियम का भी पालन नहीं किया गया। नेशनल काउंसिल की पिछली बैठक इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज हो चुकी है। बैठक स्थल पर बाउंसर तैनात किए गए थे। प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को अपमानजनक तरीके से बाहर निकाल दिया गया था। इस पार्टी को बनाने वाले कार्यकर्ताओं ने कभी ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं की होगी।
नेशनल काउंसिल की यह मीटिंग इसलिए भी अहम है क्योंकि राष्ट्रीय कार्यकारिणी का कार्यकाल अब खत्म होने जा रहा है। संविधान कहता है कि किसी सदस्य को लगातार दो बार एक ही पद पर नहीं चुना जाएगा। इसके मद्देनजर नेताओं के लिए यह बैठक ऐसा अवसर हो सकती है जिसका इस्तेमाल वे उन नेताओं को आगे बढ़ाने के लिए कर सकते हैं, जिन्हें अभी तक मौका नहीं मिला है। मुहिम को मजबूत बनाए रखने के लिए काबिल नेताओं की ज्यादा से ज्यादा बड़ी फौज रखना जरूरी है। आप एक ऐसी पार्टी है जिसने कई सारे काम पहली बार किए हैं। यह पहली पार्टी है जिनसे अपने दानदाताओं की सूची अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक की। मोहल्ला सभाएं आयोजित कर लोगों से सरकार चलाने का तरीका पूछने वाली यह पहली पार्टी है। आप ने कई मोर्चों पर लोगों की अपेक्षाएं पूरी की हैं। लेकिन अब पार्टी अपने चाहने वालों के बीच आधार खो रही है। हालांकि, सब कुछ होने के बावजूद पार्टी के कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल के साथ एकजुट होकर खड़े हैं। अब यह नेतृत्व का दायित्व बनता है कि गुमनाम और बेआवाज कार्यकर्ताओं को उचित महत्व दे और पार्टी को उन मूल्यों पर लाए जिनके बूते पार्टी वजूद में आई थी।
(मुनीश राजयादा आम आदमी पार्टी से निलंबित हैं। वह एनआरआई सेल के को-कन्वीनर थे। यहां लिखे विचार उनके निजी हैं।)
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