जनसत्ता 14 नवंबर, 2014: बीते कुछ महीनों से हर दिन यह प्रचार सुना जा रहा है कि ‘अच्छे दिन’ आने वाले हैं और अब देश के ‘विकास’ का समय आ गया है। लेकिन कुछ महीने बीत जाने के बाद यह पता चल चुका है कि किसके अच्छे दिन आने और किसके विकास की बात हो रही थी। ध्यान दे तों ‘अच्छे दिन’ आने के बाद पूंजीपतियों और शेयर बाजार के दलालों का मुनाफा लगातार ऊपर चढ़ रहा है। केंद्र में नई सरकार बनने के पहले ही दिन अंबानी और अदानी ने इस बाजार के बूते 7800 करोड़ का फायदा कमाया था। लेकिन अपने आस-पास समाज में लोगों का सर्वे करें तो गांव में किसानों से लेकर शहर में काम करने वाले मजदूरों के हालात देख कर हम कह सकते हैं कि मजदूरों, किसानों, छात्रों और काम की तलाश में भटकने वाले करोड़ों बेरोजगार नौजवानों के वास्तविक जीवन पर अभी तक ‘अच्छे दिन’ का कोई असर नहीं दिख रहा है।

आज भी आम मेहनतकश मजदूरों और किसानों को विशेषाधिकार प्राप्त अफसरशाही, ठेकेदारों और पूंजीवादी दलालों द्वारा किए जा रहे अपराधों और कानूनों के उल्लंघन के विरुद्ध आवाज उठाने में काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। उनके सामने अपने जिंदा रहने के अधिकारों तक की सुनवाई के लिए अब भी कोई विकल्प नहीं है।

अच्छे दिन आने के बाद कुछ आंकड़ों को देखें तो अनेक दवाइयों के दामों में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। एक ओर बुलेट ट्रेन चलने वाली है और दूसरी ओर आम रेलगाड़ियों का किराया काफी महंगा कर दिया गया है। जनता के लिए चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं में भी लगातार कटौती के संकेत दिख रहे हैं।

इसके साथ ही 1990 से कांग्रेस शासन में जारी निजीकरण-उदारीकरण को और आगे ले जाते हुए काम करने वाली आम आबादी के अधिकारों के लिए बने कानूनों को लगातार और भी कमजोर किया जा रहा है। ताकि ‘मेक इन इंडिया’ के नाम पर साम्राज्यवादियों के सामने देश की ‘वर्क फोर्स’ की बोली लगाने में आसानी हो सके और जनता की मेहनत को निजी मुनाफे की भेंट चढ़ा दिया जाए।

 

राजकुमार, गुड़गांव

 

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