सोवरन गोल्ड बॉन्ड्स (Sovereign Gold Bonds) निवेश के लिहाज से बढ़िया विकल्प साबित हो सकते हैं। ये बढ़िया रिटर्न देने के साथ टैक्स में भी छूट दिलाते हैं। फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स इन्हें फिजिकल गोल्ड की तुलना में बढ़िया इन्वेस्टमेंट का ऑप्शन मानते हैं, क्योंकि मैच्योरिटी तक ये कैपिटल गेन्स टैक्स को प्रभावित नहीं करते। अच्छी बात है कि आठ साल के टेन्योर से पहले इसे छोड़ने का विकल्प भी निवेशकों के पास रहता है, जबकि उन्हें इनमें सोने की कीमतों से जुड़े रिटर्न पाने का मौका मिलता है।
सरकार के वास्ते भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इन गोल्ड बॉन्ड्स को जारी करता है और ये एक ग्राम सोने या उससे अधिक की यूनिट्स में होते हैं। सोवरेन गोल्ड बॉन्ड्स में 2019-20 सीरीज 4 का सबस्क्रिप्शन सोमवार (नौ सितंबर, 2019) से लिया जा सकता है, जिसके लिए 3890 रुपए प्रतिग्राम तय किया गया है। हालांकि, जो निवेशक डिजिटल/ऑनलाइन मोड से इनके लिए आवेदन करेंगे और पेमेंट करेंगे, उन्हें 50 रुपए प्रतिग्राम के हिसाब से सरकार डिस्काउंट भी देगी।
Income Tax Rules on Sovereign Gold Bonds:
1- गोल्ड बॉन्ड होल्डिंग पर मिलने वाला ब्याज टैक्सेबल होता है। मान्य टैक्स स्लैब के अनुसार, इंटरेस्ट इनकम किसी भी व्यक्ति की आय और टैक्स से जुड़ी है। पर यहां इंटरेस्ट के तौर पर आने वाली इनकम पर कोई टीडीएस (Tax Deducted on Source) नहीं कटता। मौजूदा समय में शुरुआती निवेश राशि पर 2.5 फीसदी सालाना ब्याज इन बॉन्ड्स पर मिलता है और इसे निवेशक के बैंकखाते में अर्धवार्षिक (साल में दो बार) पहुंचाया जाता है।
2- सोवरेन गोल्ड बॉन्ड्स आठ साल के लिए होते हैं। मैच्योरिटी तक कोई कैपिटल गेन्स टैक्स लागू नहीं होता। गोल्ड बॉन्ड्स पर यह अतिरिक्त इनकम टैक्स बेनेफिट है, जो कि निवेशकों की रुचि नॉन फिजिकल गोल्ड की ओर मोड़ने के लिए किया जाता है।
3- कैपिटल गेन्स टैक्स पर मिलने वाली छूट और गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्यूचुअल फंड्स सरीखे और किसी इंस्ट्रूमेंट पर नहीं मिलती है।
4- अगर कोई निवेशक आठ साल के टेन्योर से पहले ही ऐसे गोल्ड बॉन्ड छोड़ना चाहता है, तब वह यह काम दो तरीकों से कर सकता है। पहला- एक्सेंचज की लिस्ट में आए बॉन्ड्स को बेचकर। दूसरा- बॉन्ड जारी होने की तारीख के बाद पांच साल पूरे होने पर उस व्यक्ति को कैश/बॉन्ड भुनाने का मौका मिल जाएगा। इन दोनों ही स्थितियों में कैपिटल गेन्स टैक्स लागू होगा।
5- सोवरन गोल्ड बॉन्ड अगर खरीदने की तारीख से लेकर तीन साल के भीतर कभी भी एक्सचेंज के जरिए बेचा गया, तब उसे शॉर्ट टर्म माना जाएगा। ऐसे मामले में गेन्स (अगर है तब) को ग्रॉस टोटल इनकम में जोड़ दिया जाएगा और इनकम टैक्स स्लैब के मुताबिक उस पर कर कटेगा। लॉन्ग टर्म गेन्स (तीन साल के बाद के गोल्ड बॉन्ड्स) पर 20.8 फीसदी (सेस भी शामिल) लगता है।