फसलों के नुकसान की भरपाई करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से किसान फसल बीमा योजना की शुरूआत की गई थी। यह केंद्र सरकार की महत्‍वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक, पिछले पांच साल में इस योजना के तहत किसानों ने 1,59,132 करोड़ की रकम प्रीमियम के रूप में भुगतान की है, जिसमें से बीमा कंपनियों ने 40,000 करोड़ रुपए कमाए हैं, जबकि बीमा कंपनियों ने 1,19,314 करोड़ रुपए के क्‍लेम का भुगतान किया है।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की ओर से शेयर किए गए डेटा के अनुसार, PMFBY के तहत बीमा कंपनियों ने 2016-17 खरीफ की फसल से 2021-22 तक बीमा कंपनियों ने किसानों से 1,59,132 करोड़ की रकम प्रीमियम के रूप में इक्‍कठा की है। तोमर ने भाजपा सदस्य सुशील कुमार मोदी और टीएमसी के शांतनु सेन द्वारा अलग-अलग पूछे गए संसद के विभिन्न सवालों के अपने लिखित जवाब में इन जानकारियों को शेयर किया है।

कृषि मंत्री ने कहा कि “योजना की शुरुआत के बाद से खरीफ 2021- 22 सीजन तक, किसानों के दावों के रूप में 4,190 रुपये प्रति हेक्टेयर का भुगतान किया गया है। इसके तहत करोड़ों किसान लाभान्वित हुए, लेकिन यह योजना निजी कंपनियों सहित बीमा कंपनियों के लिए भी आकर्षक साबित हुई है।” उन्‍होंने कहा कि देश में PMFBY के कार्यान्वयन के लिए केंद्र सरकार द्वारा अठारह सामान्य बीमा कंपनियों को लिस्‍टेड किया गया है, लेकिन उनमें से विशिष्ट बीमा कंपनियों का चयन पारदर्शी बोली प्रक्रिया के माध्यम से संबंधित राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।

कितने प्रतिशत बीमा का किया जाता है भुगतान?

PMFBY को 1 अप्रैल 2016 से लागू किया गया था, ताकि फसल बीमा कवर के तहत अधिक जोखिमों को शामिल करने और किसानों के लिए इसे और अधिक किफायती बनाने के लिए पिछली योजनाओं को वापस लाया जा सके। इस योजना के तहत, किसानों की ओर से सभी खरीफ फसलों के लिए बीमा राशि का केवल 2% और सभी रबी फसलों के लिए 1.5% का एक समान अधिकतम प्रीमियम का भुगतान किया जाता है। वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के मामले में, किसानों द्वारा भुगतान किया जाने वाला अधिकतम प्रीमियम केवल 5% है।

2018-19 में घटकर 27% हुआ

हालांकि इस योजना को इसके कार्यान्वयन के पहले वर्ष (2016-17) में किसानों द्वारा बहुत अच्छी तरह से प्राप्त किया गया था, जब इसका कवरेज सकल फसल क्षेत्र (GCA) के 30% तक पहुंच गया था, बाद में इसकी लोकप्रियता में गिरावट आई। जीसीए 2018-19 में घटकर 27% जबकि 2019-2020 में 25% हो गया।

कौन कौन से राज्‍य हैं इस योजना के तहत

पंजाब कभी भी इस योजना में शामिल नहीं हुआ जबकि बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, झारखंड, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे कुछ राज्यों ने अलग-अलग वर्षों में इस योजना से बाहर होने का विकल्प चुना। हालांकि, आंध्र प्रदेश इस महीने फिर से इस योजना में शामिल हो गया।