तलाक की प्रक्रिया की दौरान, अक्सर तर्कपूर्ण सोच पर भावनाएं हावी हो जाती हैं, ये स्थिति वैवाहिक संपत्तियों के विभाजन को जटिल बना देती है। ऐसे मामलों में नुकसान उठाने वाली अधिकतर महिलाएं ही होती हैं। खासतौर पर वो महिलाएं जो अपनी शादी के दौरान वित्तीय फैसलों में हिस्सा नहीं लेती हैं और संयुक्त संपत्तियों में उनके हिस्से के संबंध में उदासीन बनी रहती हैं।

जानें अपने अधिकारों को: कानून के मुताबिक, महिला के नाम पर किया गया कोई भी निवेश तलाक की स्थिति में उसकी निजी संपत्ति का हिस्सा होता है। इससे पहले, बेनामी सं​पत्ति निरोधक अधिनियम के तहत महिला को ही ऐसे किसी निवेश में अकेले स्वामित्व का हक होता था। अब, दिल्ली हाई कोर्ट के बेनामी एकट पर आदेश के बाद, पति के द्वारा अपनी कमाई के ज्ञात स्रोत से पत्नी के नाम खरीदी गई संपत्ति को बेनामी नहीं समझा जाएगा और वह उसमें हिस्सेदारी का दावा कर सकता है।

जानकार बताते हैं कि यदि खरीदी गई वस्तु पत्नी को उपहार के तौर पर दी गई है तब वह वस्तु की अकेली हकदार होगी। अगर कोई वस्तु तोहफे के तौर पर पत्नी को दी गई है तो ऐसी स्थिति में पति अपनी पैसे से खरीदे होने के बावजूद वस्तु पर कोई भी दावा नहीं कर सकता है। यदि शादी के वक्त या फिर शादीशुदा रहते हुए यदि महिला को कोई तोहफा मिला है तो वह उसकी संपत्ति है। उसे स्त्रीधन के तौर पर जाना जाता है। यदि पति और पत्नी दोनों शादीशुदा रहते हुए उसका उपयोग कर रहे थे, तलाक की स्थिति में उसे पत्नी से संबंधित माना जाएगा।

इसे ऐसे समझें, किसी महिला को उसके पिता ने शादी के वक्त कार गिफ्ट की थी। इस कार का उपयोग महिला और उसका पति दोनों कर रहे थे। इसके अलावा वह जिस फ्लैट में रह रही थी। वह पति के नाम पर था। कई बार महिलाएं जानकारी न होने के कारण ऐसी गलती कर बैठती हैं। महिलाएं कार पर दावा इसलिए नहीं करती हैं क्योंकि वह सोचती हैं कि उनका पूर्व पति कार का सह मालिक है। महिलाएं सिर्फ फ्लैट के बदले में समझौते के आधार पर मिलने वाली राशि को ही अपना समझ बैठती हैं जबकि उनका हक दोनों ही वस्तुओं पर था।