क्या एयर प्यूरीफायर तब भी मदद कर सकता है जब एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) का स्तर 400 को पार कर गया हो? दिल्ली में इस वक्त पॉल्यूशन काफी अधिक है और लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली के पल्मोनोलॉजिस्टों का कहना है कि एक एयर प्यूरीफायर धूल, पालतू जानवरों की रूसी, फफूंदी के कीटाणु और कुछ रासायनिक कणों को हटाकर घर के अंदर वायु की गुणवत्ता में सुधार करने में मददगार हो सकता है, लेकिन इनका उपयोग सभी दरवाजे और खिड़कियां बंद करके किया जाना चाहिए। इंडियन एक्सप्रेस ने यह समझने के लिए पल्मोनोलॉजिस्ट से बात की कि एक एयर प्यूरीफायर क्या कर सकता है और इसका उपयोग कैसे किया जाना चाहिए?

पीएसआरआई अस्पताल में पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन के चेयरमैन डॉ. जी सी खिलनानी के अनुसार ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण या अध्ययन नहीं है जो एयर प्यूरीफायर के स्वास्थ्य लाभों को साबित कर सके। किसी को यह नहीं मानना ​​चाहिए कि किसी के लिविंग रूम में रखा एयर प्यूरीफायर पूरे घर की हवा को साफ कर सकता है।

किसी को एयर प्यूरीफायर का उपयोग कैसे करना चाहिए?

डॉ. खिलनानी कहते हैं कि एयर प्यूरीफायर में दो कंपोनेंट होते हैं – एक फिल्टर जो पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों को रोकता है और एक एड्सोर्बेंट जो NO2, कार्बन मोनोऑक्साइड आदि गैसों को सोखता है। एक एयर प्यूरीफायर में दोनों होने चाहिए। यह अच्छी गुणवत्ता का होना चाहिए और कमरे के साइज़ के अनुरूप होना चाहिए।

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एयर प्यूरिफायर को हर समय चालू रखना चाहिए, न कि केवल जब आप कमरे में प्रवेश करते हैं अन्यथा उपयोगिता कम हो जाती है। हवा की दिशा उस क्षेत्र की ओर होनी चाहिए जहां आप बैठते हैं या सोते हैं। कमरे को हर समय बंद रखना चाहिए क्योंकि अगर आप खिड़कियां और दरवाजे खोलते रहेंगे तो इसका प्रभाव कम हो जाएगा।

डॉ. जी सी खिलनानी ने कहा, “एक पल्मोनोलॉजिस्ट और एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो वर्षों से वायु प्रदूषण पर काम कर रहा है, मैं स्वास्थ्य पर वैश्विक वायु प्रदूषण के प्रभावों पर एक विशेषज्ञ समिति का सदस्य भी हूं। इस मुद्दे पर जिनेवा बैठक में भी चर्चा हो चुकी है। जो लोग अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), हृदय रोग, ब्रोंकाइटिस या इम्यूनोसप्रेशन से पीड़ित हैं, और बंद दरवाजों में रहने का जोखिम उठा सकते हैं, उन्हें एयर प्यूरीफायर का उपयोग करना चाहिए, खासकर जब एक्यूआई गंभीर हो। लेकिन ख़राब रखरखाव से हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। जब तक फ़िल्टर को समय-समय पर नहीं बदला जाता, यह गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है।”

क्या एयर प्यूरीफायर दिल्ली में इस तरह के प्रदूषण से निपटने में सक्षम होगा?

खिलनानी कहते हैं, “वास्तव में नहीं, अगर आप लिविंग रूम में एयर प्यूरीफायर रखते हैं और सोचते हैं कि यह हवा को शुद्ध कर रहा है, तो यह गलत है। यह एक बंद कमरा होना चाहिए। जब AQI 400-500 हो या दिवाली पर, तो शायद पूरी रात इसे चलाने के बाद PM 2.5 से 150 तक कम किया जा सकता है। वे 100 प्रतिशत प्रभावकारी नहीं हैं, लेकिन जो लोग अस्वस्थ हैं और उन्हें सांस लेने में कठिनाई हो रही है, उन्हें इसका सही तरीके से उपयोग करने से लाभ हो सकता है।”

एयर प्यूरीफायर विशेष रूप से हाई बाहरी प्रदूषण के समय या श्वसन संबंधी समस्याओं, एलर्जी या अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। हालांकि इसके साइड इफेक्ट्स भी हैं।

एयर प्यूरीफायर कैसे मदद कर सकता है?

इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. निखिल मोदी के अनुसार High-Efficiency Particulate Air (HEPA) फिल्टर वाले एयर प्यूरीफायर 0.3 माइक्रोन तक छोटे 99.97 प्रतिशत कणों को पकड़ सकते हैं। वे श्वसन संबंधी लक्षणों को ट्रिगर करने वाले एलर्जी और जलन पैदा करने वाले पार्टिकल्स को कम कर सकते हैं। सक्रिय कार्बन फिल्टर वाले मॉडल खाना पकाने, सफाई उत्पादों और धुएं से गंध और वीओसी (वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स) को हटाने में भी प्रभावी हैं। नियमित उपयोग से एलर्जी और अस्थमा के लक्षण कम हो सकते हैं क्योंकि कई एयरबोर्न ट्रिगर प्रभावी ढंग से दूर हो जाते हैं। स्वच्छ हवा विशेष रूप से एलर्जी से मुक्त, नींद में सुधार कर सकती है, क्योंकि श्वसन संबंधी परेशानी नींद के साइकिल को प्रभावित कर सकती है।

एयर प्यूरीफायर के संभावित दुष्प्रभाव क्या हैं?

डॉ. मोदी का कहना है कि कुछ एयर प्यूरीफायर (विशेष रूप से आयोनाइजर वाले) थोड़ी मात्रा में ओजोन उत्सर्जित करते हैं, जो फेफड़ों में जलन पैदा कर सकता है और अस्थमा या एलर्जी के लक्षणों को खराब कर सकता है। सुरक्षित ओजोन स्तर के लिए कैलिफ़ोर्निया एयर रिसोर्सेज बोर्ड (CARB) जैसे मानकों द्वारा प्रमाणित मॉडल चुनने की बात कही जाती है।

जब प्रदूषण का स्तर दिल्ली में देखा गया उतना अधिक हो तो फ़िल्टर को कितनी बार बदला जाना चाहिए?

डॉ. मोदी के अनुसार एयर प्यूरीफायर दिल्ली जैसे उच्च प्रदूषण वाले वातावरण में इनडोर एयर क्वालिटी में काफी सुधार कर सकते हैं, जहां AQI अक्सर खतरनाक स्तर तक गिर जाता है। हालांकि अत्यधिक प्रदूषण फिल्टर पर भारी भार डालता है, खासकर उस अवधि के दौरान जब पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5 और पीएम10) का स्तर बहुत अधिक होता है। इन स्थितियों में HEPA फ़िल्टर की लाइफ काफी कम हो सकती है। आमतौर पर यह 6-12 महीनों के बजाय इसे 1-3 महीने में ही बदलने की आवश्यकता होती है।