कृषि कानूनों के विरोध में किसान पिछले 12 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों की मांग है कि उन्हें एमएसपी की गारंटी दी जाए और इन कानूनों को वापस ले लिया जाए। इस मामले में सरकार कई बार किसानों के साथ वार्ता कर चुकी है। किसानों ने मंगलवार को भारत बंद का आह्वान किया है जिसका असर दिल्ली से पश्चिम बंगाल तक दिखाई दे रहा है।
स्वराज पार्टी के चीफ योगेंद्र यादव ने कहा कि एपीएमसी में सुधार करना गलत नहीं है लेकिन इसे बिगाड़ने का काम न करिए। एनडीटीवी पर रवीश कुमार ने प्राइम टाइम शो में कहा कि रविशंकर प्रसाद ने शरद पवार का जिक्र करते हुए कहा था, 2003 में वाजपेयी सरकार ने एपीएमसी मॉडल में सुधार का विचार कर रही थी। लेकिन कई राज्य सरकारों ने विरोध किया और आम सहमति नहीं बन पाई।
रवीश कुमार ने नीति आयोग की दो रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि एपीएमसी और एमएसपी को खत्म करने की बात हो रही थी। अगस्त 2017 में नीति आयोग ने तीन साल के लिए एक ऐक्शन प्लान तैयार किया था। इसमें लिखा था कि एपीएमसी में सुधार किया जाए और किसानों को मंडी के अलावा फसल बेचने का भी अधिकार दिया जाए। इसके अलावा अधिनियम में बदलाव कर निर्यातक, खाद्य प्रसंस्करण, रिटेल को स्टॉक लिमिट से मुक्त कर दिया जाए।
नवंबर में 2018 में नीति आयोग ने एक और रिपोर्ट लॉन्च की। इसका नाम नए भारत के लिए रणनीति 75 नाम था। इस रिपोर्ट को स्व. अरुण जेटली ने लॉन्च किया। इसमें कहा गया है कि सरकार एमएसपी तय करने वाली संस्था सीएसीपी को खत्म करके न्यूनतम समर्थन मूल्य हटाकर मिनिमम रिजर्व प्राइस की व्यवस्था लाए। इसमें उपज की नीलामी होगी न कि खरीद। प्राइवेट पार्टी को कैसे शामिल किया जाए इसका भी सुझाव है।
नवंबर 2019 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि एपीएमसी मंडी खत्म कर देनी चाहिए। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने भी टाइम्स ऑफ इंडिया में 20 मई 2020 को छपे लेख में कृषि कानूनों की वकालत की थी। अब कृषि कानून को लेकर किसान सड़कों पर उतर आए हैं। उन्हें डर है कि कहीं सरकार इसे खत्म करके नयी व्यवस्था न लागू कर दे और कमान प्राइवेट सेक्टर के पास चली जाए।