वरुण गांधी बीजेपी के सांसद हैं। बीजेपी सांसद से अलग उनकी बड़ी पहचान ये है कि वह इंदिरा गांधी के पोते और संजय गांधी के बेटे हैं। मेनका गांधी उनकी मां हैं। वरुण गांधी खुद भी मानते हैं कि गांधी सरनेम ने उन्हें बहुत फायदा पहुंचाया है। वरुण का कहना है कि अगर मेरा सरनेम गांधी नहीं रहता तो मैं 29 साल की उम्र में सांसद बन पाता क्या भला।

यूं तो वरुण गांधी बीजेपी में हैं लेकिन माना जाता है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व खासतौर पर पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह उनको कुछ खास पसंद नहीं करते। कई मौकों पर वरुण गांधी का नाम बड़े पदों के लिए सामने आया लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। हाल ही में नरेंद्र मोदी कैबिनेट के विस्तार के समय भी इस तरह की चर्चा थी कि वरुण गांधी को मंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन ये चर्चा भी महज एक कयास बनकर रह गई।

बताया जाता है कि वरुण गांधी को उनके कुछ बयानों के कारण ही पार्टी में साइडलाइन किया गया है। वरुण रोहिंग्याओं के मुद्दे पर अपनी पार्टी लाइन से अलग बयान दे चुके हैं। वहीं वह पार्टी में युवाओं को ज्यादा मौका ना देने की बात करके भी संगठन को नाराज कर चुके हैं।

ऐसा ही एक वाकया साल 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान का है। तब वरुण गांधी को बीजेपी ने पीलीभीत की जगह सुल्तानपुर से चुनाव लड़वाया था। सुल्तानपुर से वरुण चुनाव लड़ने गए तो पीलीभीत से अपने कार्यकर्ताओं को साथ ले गए थे। स्थानीय भाजपा नेताओं से उन्होंने दूरी बना रखी थी। सुल्तानपुर में उन्होंने बीजेपी के किसी बड़े नेता को चुनाव प्रचार के लिए भी आमंत्रित नहीं किया था।

एक चुनावी सभा में वरुण जब मंच से बोल रहे थे, तो नीचे मौजूद लोग और बीजेपी समर्थक मोदी-मोदी के नारे लगाने लगे। वरुण गांधी को लोगों का मोदी-मोदी चिल्लाना पसंद नहीं आया। वह अपनी नाराजगी को छिपा नहीं सके और मंच से ही  समर्थकों को डांटने लगे कि ये मोदी-मोदी क्या है?

खैर यह चुनाव तो वरुण गांधी जीत गए थे लेकिन उसके बाद जब अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, तो उन्होंने वरुण गांधी को पार्टी के महासचिव पद से हटा दिया था। उसके बाद से वरुण लगातार पार्टी के अंदर ही हाशिये पर नजर आ रहे हैं।

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