चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर 2 अक्टूबर से बिहार में पैदल यात्रा निकालने जा रहे हैं। इससे पहले वह छोटी-छोटी गोष्ठियों के जरिए लोगों से मुलाकात कर रहे हैं। उनका कहना है कि वह अभी कोई पार्टी बनाने नहीं जा रहे हैं लेकिन लोगों से मिलकर उनकी समस्याओं को जानने की कोशिश कर रहे। अपनी गोष्ठी के दौरान उन्होंने एक समाचार चैनल से बातचीत की।
इस दौरान पत्रकार ने प्रशांत किशोर से सवाल किया कि इससे पहले भी आप एक बार बिहार आए थे लेकिन आप कहीं और का मुख्यमंत्री बनाने चले गए। बिहार की जनता कैसे भरोसा करें कि आप यहां पर ही रहेंगे। कौन सी विद्या की कसम खाकर कहेंगे कि बिहार छोड़कर नहीं जाएंगे? प्रशांत किशोर ने इसके जवाब में हंसते हुए कहा, ‘ नेता भगवान और संविधान की शपथ लेने के बाद भी बात नहीं मानते हैं। किसी के शपथ लेने और कसम खा लेने से उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।’
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि मैंने साल 2011 से साल 2021 तक चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम किया। बंगाल विधानसभा और तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद मेरी ओर से ऐलान किया गया कि मैं यहां काम नहीं करूंगा। उन्होंने आगे बताया कि 1 साल का समय मैंने यह तय करने के लिए लिया कि आगे हमें क्या करना है।
प्रशांत किशोर ने कहा कि उन्होंने अपने आसपास के सभी ऑप्शन को देखते हुए इस बात पर फैसला लिया कि वह बिहार में काम करेंगे। उनका कहना है कि वह बिहार में एक नई राजनीतिक व्यवस्था को खड़ा करना चाहते हैं, जिससे बिहार की दशा और दुर्दशा में सुधार किया जा सके।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि उनके मन में बिहार को लेकर जो पर परिकल्पना है, उसे सही मायनों में उतारने के लिए थोड़ा वक्त लगेगा।
उन्होंने कहा कि बाद फरवरी 2020 में बिहार आए थे लेकिन उसके बाद कोविड महामारी आ गई थी, उस समय बिहार में चुनाव की हो रहे थे। राजनैतिक लोग दूसरे राज्यों में फंसे अपने लोगों को बचाने के बजाय चुनावी सभा कर रहे थे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बिहार विधानसभा 2020 का बहुत महत्व नहीं था क्योंकि बिहार की जनता को समय चुनाव के बजाय अपने लोगों की चिंता थी कि उन्हें वापस कैसे लाया जाए।